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लोपामुद्रा n. अगस्त्य ऋषि की पत्नी, जो विदर्भ राजा की कन्या थी । एक वैदिक मंत्रद्रष्टी के नाते लोपामुद्रा का निर्देश ऋग्वेद में प्राप्त है [ऋ. १.१७९.४] ;[वृहद्दे. ४.५७] ।
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स्त्री. विना . अगस्ति ऋषीची स्त्री .
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लोपामुद्रा n. महाभारत में इसे वैदर्भ राजा की कन्या कहा गया है, एवं दो स्थान पर इसके पिता का नाम विदर्भराज निमि दिया गया है । पार्गिटर के अनुसार, विदर्भराजवंश में निमि नामक कोई भी राजा न था, एवं लोपामुद्रा के पिता का नाम निमि न हो कर भीम था, जो विदर्भदेश के क्रथ राजा का पुत्र था [पार्गि. १६८] । विदर्भराज की कन्या होने के कारण, इसे वैदर्भी नामान्तर प्राप्त था । इसके जन्म के संबंध में एक कल्पनारम्य कथा महाभारत में प्राप्त हैं । अपने पितरों को मुक्ति प्रदान करने के लिए, अगस्त्य ऋषि के मन में एक बार विवाह करने की इच्छा उत्पन्न हुई । किन्तु उसके योग्यता की कोई भी कन्या उसे इस संसार में नजर न आई । फिर अपनी पत्नी वनाने के लिए, उसने अपने तपोवल से एक सुंदर कन्या का निर्माण किया, एवं पुत्र के लिए तपस्या करनेवाले विदर्भराज के हाथ में उसे दे दिया । यहीं कन्या लोपामुद्रा नाम से प्रसिद्ध हुई ।
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लोपामुद्रा n. धीरे धीरे यह युवावस्था में प्रविष्ट हुई । सौ दासियाँ एवं सौ कन्याएँ इसकी सेवा में रहने लगी । अपने शील एवं सदाचार से यह अपने पिता एवं स्वजनों को संतुष्ट रखती थी । एक दिन महर्षि अगस्त्य विदर्भराज के पास आये, एवं उसने लोपामुद्रा से विवाह करने का अपना निश्वय प्रकट किया । राजा इसका विवाह अगस्त्य जैसे तपस्वी के साथ नहीं करना चाहता था, किंतु महर्षि के शाप के डर से वह उसे इन्कार भी नही कर सकता था । अपने माता पिता को संकट में पडा देख, लोपामुद्रा ने अपने पिता से कहा, ‘आप मुझे महर्षि के सेवा में दे कर अपनी रक्षा करे’ । तब इसके पिता ने इसका विवाह अगस्त्य ऋषि के साथ करा दिया । विवाह के पश्रात् इसने अगस्त्य ऋषि की आज्ञा से अपने राजवस्त्र एवं आभूषण उतार दियें, एवं वल्कल एवं मृगचर्म धारण कियें । पश्चात् अगस्त्य इसे ले कर गंगाद्वार गया, एवं घोर तपस्या में संलग्न हुआ । यह पति के समान ही व्रत एवं आचार का पालन करने लगी, एवं तप करनेवाले अगस्त्य की सेवा कर इसने उसे प्रसन्न किया ।
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