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कबंध नाचणें
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लढाईत एक लाख सैनिक मेले म्हणजे एक कबंध उठून नाचूं लागते अशी समजूत आहे. यावरून एखाद्या लढाईत भयंकर कापाकापी, मनुष्यहानि होणें
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कबंध n. दंडकारण्य का एक राक्षस । इसका सिर इसकी छाती में था । इस लिये इसे कबंध (शिरविरहित) नाम दिया गया । जटायुवध के बाद राम तथा लक्ष्मण, सीता की खोज में वन में घूम रहे थे । खोजते खोजते वे कौचवन के पूर्व में तीन कोस दूर स्थित मातंग मुनि के आश्रम समीप पहुँचे । वहॉं उन्हें बहुत जोर की ध्वनि सुनाई पडी । यह ध्वनि कबंध राक्षस की थी । एक कोस की दूरी पर रह कर भी यह राम लक्ष्मणों को दिखा । जब यह भक्ष्य के लिये हाथ फैला रहा था, तब उस में रामलक्ष्मण पकडे गये । राम लक्ष्मणों के पास तरवारें थीं । राम को छूट जाने के लिये कह कर, लक्ष्मण स्वयं मरने के लिये तैयार हो गया । परंतु उसे धीरज दे कर राम ने रोका । अपने आप ही भक्ष्य उसके पास आया, इससे राक्षस को अत्यंत आनंद हुआ । उसने ऐसा कहा भी । परंतु लक्ष्मण, ने कहा कि, क्षत्रिय के लिये ऐसी मृत्यु अयोग्य है । तब राक्षस को क्रोध आया तथा वह इन्हें खाने के लिये प्रवृत्त हुआ । तब राम ने इसका बायॉं हाथ तोड दिया तथा लक्ष्मण ने इसका दाहिना हाथ तोड दिया । तब गतप्राण हो कर यह नीचे गिर पडा । तदनंतर इसके शरीर से एक दैदीप्यमान पुरुष निकल कर आकाश में गया । तब राम ने पूछा कि तुम कौन हो । तब इसने कहा कि, “मैं विश्वावसु नामक गंधर्व हूँ । ब्राह्मण के शाप से यह राक्षसयोनि मुझे प्राप्त हुई थी । सीता का हरण रावण ने किया है । तुम सुग्रीव के पास जाओ । वह तुम्हें सहायता करेगा, क्यों कि, सुग्रीव को रावण कें मंदिर की जानकारी है ।" इतना कह कर यह गुप्त हो गया (म. व. २६३; वा.रा.अर. ६९-७३।
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A figure expressive of exceeding carnage.
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