धनत्रयोदशी - महत्व

दीपावली के पाँचो दिन की जानेवाली साधनाएँ तथा पूजाविधि कम प्रयास में अधिक फल देने वाली होती होती है और प्रयोगों मे अभूतपूर्व सफलता प्राप्त होती है ।  


पंचदिनात्मक दीपावली पर्व का पहला दिन धनत्रयोदशी है । सम्भवतः आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वन्तरि के प्राकट्य का दिन होने के कारण कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को ‘धनत्रयोदशी’ कहा जाता है । पौराणिक मान्यता है कि समुद्र-मन्थन के दौरान भगवान् धन्वन्तरि इसी दिन समुद्र से हाथ में अमृतकलश लेकर प्रकट हुए थे । इसलिए आज भी कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को भगवान् धन्वन्तरि के प्राकट्योत्सव के रूप में मनाया जाता है । इस दिन प्रातःकाल उठकर भगवान धन्वन्तरि के निमित्त व्रत करने एवं उनके पूजन करने का संकल्प लिया जाता है और दिन में धन्वन्तरि का पूजन किया जाता है । आयुर्वेद चिकित्सकों के लिये यह विशेष दिन है । आयुर्वेद विद्यालयों, महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों तथा चिक्कित्सालयों में इस दिन भगवान् धन्वन्तरि की विशेष पूजा-अर्चना होती है ।
यह आयुर्वेद के प्राकट्य का भी दिन है । भगवान् धन्वन्तरि के एक हाथ में अमृतकलश और दूसरे हाथ में आयुर्वेदशास्त्र है । इस कारण इस दिन आयुर्वेद के ग्रन्थों का भी पूजन किया जाता है । आयुर्वेद को ‘उपवेद’ की संज्ञा दी गई है ।
धनत्रयोदशी का दूसरा महत्त्व यम के निमित्त दीपदान से सम्बन्धित है । यमराज मृत्यु के देवता हैं । वे कर्मफल का निर्णय करने वाले हैं । धनत्रयोदशी के दिन उन्हें प्रसन्न करने के लिए उनके निमित्त दीपदान किया जाता है । यह दीपदान प्रदोषकाल में करना चाहिए । ऐसा करने से अकाल मृत्यु का भय दूर होता है ।
धनत्रयोदशी का तीसरा महत्त्व गोत्रिरात्र व्रत है । स्कन्दपुराण के अनुसार यह व्रत कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या के दिन तक किया जाता है । इस प्रकार यह त्रिदिवसीय व्रत है । इसमें व्रत का आरम्भ सूर्योदय व्यापिनी त्रयोदशी तिथि से होता है । इस बार यह व्रत 4 नवम्बर को है । इसमें भगवान् श्रीकृष्ण एवं गायों की पूजा की जाती है । प्रथम दिन इस त्रिदिवसीय व्रत का संकल्प लेना चाहिऐ और चौथे दिन अर्थात् कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को इस व्रत का विसर्जन कर गोवर्धन उत्सव मनाना चाहिए ।
इस वर्ष गोवत्स द्वादशी ३ नवम्बर को है । फलतः गोवत्स द्वादशी का व्रत इस बार धनत्रयोदशी के दिन ही होगा । आधुनिक समय में धनत्रयोदशी को धन से जोड़ा गया है और यह माना जाता है कि यह दिन धन के संकलन का एवं स्वर्णादि बहूमूल्य धातुओं के संग्रह का दिन है । इसी चलते मध्याह्न में सोने-चॉंदी के बर्तन, सिक्के एवं आभूषण खरीदने का रिवाज विद्यमान है ।

त्योहारों पर रंगोली निर्माण की परम्परा भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है । इस पंचदिनात्मक दीपावली महापर्व के सभी दिनों में घर के सभी प्रमुख स्थलों की धुलाई करके दोपहर में रंगोली का निर्माण करना चाहिए । रंगोली में फूल-पत्तियों के साथ-साथ कलश, स्वस्तिक आदि मंगल चिह्नों का भी निर्माण करना चाहिए । इसके अतिरिक्त अशोक, आम आदि वृक्षों के पत्तों तथा फूलों से बन्दनवार का निर्माण करना चाहिए और उसे घर के प्रवेश द्वारों तथा प्रमुख कक्षों के प्रवेश द्वारों पर लगाना चाहिए ।.

एक अन्य मान्यता के अनुसार धन्वन्तरि आयुर्वेद की एक परम्परा के ही प्रवर्तक हैं । अन्य परम्पराओं में इन्द्र, भरद्वाज, अश्विनीकुमार, सुश्रुत, चरक आदि हैं । भाव मिश्र ने अपने ग्रन्थ ‘भावप्रकाश’ मे ऐसी चार परम्पराओं का उल्लेख किया है । इन सभी परम्पराओं में धन्वन्तरि एवं अश्विनी कुमार की परम्परा ही प्रमुख है । ज्ञातव्य रहे  कि अश्विनी कुमार सूर्य एवं संज्ञा के पुत्र हैं । वे देवताओं के चिकित्सक हैं । ब्रह्माजी ने दक्ष प्रजापति को आयुर्वेद की शिक्षा दी थी । दक्ष प्रजापति से अश्विनी कुमारों ने शिक्षा प्राप्त की थी । ‘अश्विनीकुमारसंहिता’ के रचयिता सूर्यपुत्र अश्विनी कुमार ही हैं ।

‘आरोग्य देवता’, ‘देव-चिकित्सक’ एवं ‘आयुर्वेद के जनक’ के रूप में तीनों लोकों में विख्यात भगवान् धन्वन्तरि के प्राकट्य का दिन है धनत्रयोदशी । कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी इसी कारण भगवान धन्वन्तरि के प्राकट्योत्सव अथवा जयन्ती के रूप में मनायी जाती है । क्षीरसागर के मन्थन के दौरान भगवान् धन्वन्तरि एक हाथ में अमृत कलश लिए हुए और दूसरे हाथ में आयुर्वेदशास्त्र को लेकर प्रकट हुए थे । भगवान् धन्वन्तरि की गणना भगवान् विष्णु के 24 अवतारों में होती है । वे उनके अंशावतार माने जाते है ।

भगवान धन्वन्तरि ने देवादि के जीवन के लिए आयुर्वेदशास्त्र का उपदेश महर्षि विश्वामित्र के पुत्र सुश्रुत को दिया । सुश्रुत ने जनकल्याण के लिए ‘सुश्रुतसंहिता’ का निर्माण करके इसका प्रचार-प्रसार पृथ्वीलोक पर किया ।
स्वयं धन्वन्तरि भगवान् विष्णु के निर्देशानुसार काशिराज के वंश में अगले जन्म में उत्पन्न हुए और उन्होंने लोककल्याणार्थ ‘धन्वन्तरिसंहिता’ की रचना की ।

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Last Updated : November 01, 2010

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