रूपचतुर्दशी - उबटन से स्नान

दीपावली के पाँचो दिन की जानेवाली साधनाएँ तथा पूजाविधि कम प्रयास में अधिक फल देने वाली होती होती है और प्रयोगों मे अभूतपूर्व सफलता प्राप्त होती है ।  


रूपचतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पूर्व अर्थात् तारों से युक्त आसमान के नीचे स्नान करना चाहिए । यदि आपके समीप कोई नदी अथवा सरोवर है , तो प्रयास करें कि इस दिन का स्नान वहीं हो । इस दिन स्नान से पूर्व तिल्ली के तेल से शरीर की मालिश करनी चाहिए , क्योंकि इस दिन तेल में लक्ष्मी और जल में गंगा निवास करती है और प्रातःकाल स्नान करने वाला व्यक्ति यमलोक नहीं जाता है । यद्यपि कार्तिक मास में तेल मालिश का निषेध है , परन्तु वह निषेध कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के अलावा दिनों के लिए है । तदुपनान्त शरीर पर अपामार्ग का प्रोक्षण करना चाहिए तथा तुंबी (लौकी का टुकड़ा ), अपामार्ग (ओंगा या चिचड़ा ), प्रपुन्नाट (चकवड़ ) और कट्फल (कायफल ) इनको अपने सिर के चारों और सात बार घुमाना चाहिए , इससे नरक भय दूर होता है (पद्मपुराण ), तत्पश्चात् निम्नलिखित श्लोक का पाठ करे ।

सितालोष्ठसमायुक्तं सकण्टकलदलान्वितं । हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाणः पुनः पुनः ॥

‘ हे तुंबी , हे अपामार्ग तुम बारबार फिराए ( घुमाए ) जाते हुए , मेरे पापों को दूर करो और मेरी कुबुद्धि का नाश कर दो । ’

स्नान के उपरान्त तुंबी , अपामार्ग आदि को घर के बाहर दक्षिण दिशा में विसर्जित कर देना चाहिए । स्नान के पश्चात् शुद्ध वस्त्र पहनकर तिलक लगाकर निम्नलिखित नाम मंत्रों से यमतर्पण करना चाहिए ।

१ . ॐ यमाय नमः ।

२ . ॐ धर्मराजाय नमः।

३ . ॐ मृत्यवे नमः ।

४ . ॐ अन्तकाय नमः ।

५ . ॐ वैवस्वताय नमः ।

६ . ॐ कालाय नमः ।

७ . ॐ सर्वभूतक्षयाय नमः ।

८ . ॐ औदुम्बराय नमः ।

९ . ॐ दध्नाय नमः ।

१० . ॐ नीलाय नमः ।

११ . ॐ परमेष्ठिने नमः ।

१२ . ॐ वृकोदराय नमः।

१३ . ॐ चित्राय नमः ।

१४ . ॐ चित्रगुप्ताय नमः।

चतुर्दशी होने के कारण यम के चौदह नामें से तर्पण करवाया गया है ।

यमतर्पण काले तिलयुक्त शुद्ध जल से करना चाहिए । प्रत्येक मंत्र के साथ तीन बार तर्पण करना चाहिए । तर्पण जलांजलि से करना चाहिए और दक्षिणाभिमुख होकर करना चाहिए । यह तर्पण सव्य होकर करं ।

हेमाद्रि का कथन है कि यमतर्पण से वर्षभर संचित पाप क्षण भर में दूर हो जाते हैं । जिन व्यक्तियों के पिता जीवित है , वे भी यमतर्पण कर सकते हैं , क्योंकि पद्मपुराण के अनुसार यमतर्पण और भीष्म तर्पण कोई भी मनुष्य कर सकता है ।

स्नान के उपरान्त देवताओं का पूजन करके दीपदान करना चाहिए । दक्षिण भारत में स्नान के उपरान्त ‘कारीट ’ नामक कड़वे फल को पैर से कुचलने की प्रथा भी है । ऐसा माना जाता है कि यह नरकासुर के विनाश की स्मृति में किया जाने वाला कृत्य है । .

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References :

१ . तैले लक्ष्मीर्जले गंगा दीपावल्याश्चतुर्दशीम् । प्रातः स्नानं तु यः कुर्यात् यमलोकं न पश्यति ॥

२ . तैलाभ्यङ्गं तथा शय्या परान्नं कास्यभोजनम् । कार्तिकेय वर्जयेत् यस्तु परिपूर्णव्रती भवेत् ।

३ . नरकस्य , चतुर्दश्यां तैलाभ्यङ्गं च कारयेत् । अन्यत्र कार्तिकस्रायी तैलाभ्यङ्गं विवर्जयेत् ॥

४ . पद्मपुराण , उत्तरखण्ड , अध्याय १२४ , श्लोक ११ .

५ . मदनपारिजात , पृष्ठ संख्या २९६

६ . कमलाकर भट्ट , निर्णय सिंधु , पृष्ठ २९८

७ . पद्मपुराण , उत्तरखण्ड , अध्याय १२४ .

Last Updated : November 01, 2010

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