चक्रों के फल --- हे नाथ ! अब विचार और आचार से मङ्गल रुप वाले चक्र फलों को सुनिए । सदगुरु के मुखपङ्कज से निकला हुआ प्रसाद रुप महामन्त्र यदि भाग्यवश मिल जावे तो सिद्धि अवश्य होती है इसमें संशय नहीं । उसके अभाव में सिद्धि का मन्त्र दृष्ट फल और अदृष्ट फल प्रदान करने के लिए उन्मुख करता करता है ॥३० - ३१॥
यदि महागुरु के स्थान पर स्वप्न में कोई मन्त्र प्राप्त हो जावे तो वह महान् चमत्कारी होता है ह्रदय में प्रसन्नता को बढा़ता है । किं बहुना , प्राप्त होने मात्र से वह साधक को मुक्ति प्रदान करता है ॥३२॥
स्वप्न लब्ध मन्त्र का जो परित्याग करता है , वह मेरी आज्ञा का वशवर्ती न हो कर घोरान्धकार युक्त रौरव नरक में निवास करता है ॥३३॥
उस मन्त्र मे विषय में चक्र सारादि का विचार व्यर्थ भाषण के सदृश है । स्वप्नलब्ध चाहे अरि मन्त्र ही क्यों न हो महा पुण्यदायक होता है और वह सभी उत्तमोत्तम मन्त्रों से भी श्रेष्ठ है ॥३४॥
करोड़ों जन्मों में किए गये पुण्य के प्रभाव से मनुष्य को महाविद्या का आश्रय प्राप्त होता है और करोड़ों कुलों में उत्पन्न होकर करोड़ों पुण्यों के फल से साधक को स्वप्न में मन्त्र की प्राप्ति होती है , जो निश्चय ही भुक्ति और मुक्ति के लिए होती है । इसलिए
स्वप्नलब्ध मन्त्र का चक्र पर विचार नहीं करना चाहिए । यदि चक्र पर विचार करे तो निश्चय ही मरण होता है ॥३५ - ३६॥
यदि स्वप्न में कोई चमक्तार युक्त मन्त्र का दर्शन हो तो ऊपर कहे गये चक्रों द्वारा विचार किया जा सकता है । क्योंकि इस
( अकथह ) चक्र में विचारे गये वर्ण आठों प्रकार की सिद्धियाँ प्रदान करते हैं ॥३७॥
वायु , मुक्ति धन , योगसिद्धि ऋद्धि , धन , शुभ , धर्म और देह की पवित्रता , अकाल में होने वाली मृत्यु से मुक्ति और अभीष्ट सिद्धि , गौरीचरणाम्भोज के दर्शन , भुक्ति , मुक्ति और शिव सायुज्य इतने फल चक्र से विचार किए गए वर्ण से प्राप्त होते हैं , इसमें संशय नहीं ॥३८ - ३९॥
यदि साधकोत्तम दीक्षा के समय सभी प्रकार का विचार करे तो इन चक्रादिकाल का गणना से फल होता है । गणना करने करने से अच्छे बुरे सभी प्रकार के फल की प्राप्ति होती है , इसमें संशय नहीं ॥४० - ४१॥
निश्चय ही चक्रराज के विचार से अकस्मात् सिद्धि महान् व्रत और विवेक की प्राप्ति होती है । सभी देवता गण चक्रमन्त्र से अभिमन्त्रित जल की प्रशंसा करते हैं । साधक को वाक्य की सिद्धि होती है । वह प्राणायामादि के द्वारा समस्त सिद्धीयाँ प्राप्त कर लेता है । सब लोग उसे प्रणाम करते हैं और वह सभी से बलवान होकर पृथ्वी पर विचरण करता है ॥४१ - ४३॥
हे नाथ ! इस प्रकार मङ्ग देने वाले षोडश चक्रों का वर्णन हमने किया । इन चक्रों के विषय में बहुत क्या कहें इनके दर्शन मात्र से सायुज्य पदवीं प्राप्त होती हैं । इसलिए सभी मन्त्र ग्रहण काल में सर्व चक्रादि से मङ्गकारी मन्त्र का विचार करना चाहिए ॥४४ - ४५॥