अथ नानामुहूर्त्तप्रकरणम् ॥ तत्रादौ नूतनांबरालंकारधारणम् । हस्तादिपंचके ५ पुष्ये धनिष्ठारेवतीद्वयो : । त्र्युत्तरे ३ च पुनर्वस्वौ रोहिण्यां च शुभे तिथौ ॥१॥
बुधे शुक्रे गुरौ बारे नूतनांबरधारणम् । सौवर्ण सूप्यरत्नाडिभुषणानां धृति : शुभा ॥२॥
अथ स्त्रीणां रक्तवस्त्रसुवर्णचूडादिपरिधानम् ॥ हस्तादिपंचपूषाश्चिधनिष्टासु च कांचनम् । रक्तं परिदधेद्वस्त्रं भौमार्कगुरुभार्गवे ॥३॥
अथ सौभाग्यवत्या निषेध : । रौहिण्यां त्र्युत्तरे पुष्ये पुनर्वस्वो : कदाचन । न दध्यात्सुभगा भूषाबस्त्राण्यन्ये कुजेऽपि न ॥४॥
अथ चूडीधारणे विशेष : । अस्तं गते भृगुसुते शयने च विष्णोर्जन्माद्यचाप ९ झष १२ गे दिनपे न दध्यात् । रिक्तेंदुभानुजदिनेंऽशकवर्जिते च शंखं च रक्तपटकं युवति : कथं चित् ॥५॥
अथ चूडाचक्रम् । यावद्भास्करभुक्तिभानि दिवसे धिष्ण्यानि संख्या ततो वह्नि ३ भूत ५ गुणा ३ ब्धि ४ सप्त ७ नयनं २ पृथ्वी १ करें २ दु : १ क्रमात् । सूर्यारौ कविसौम्यराहुरविजा जीव : शशी केतव : क्ररेऽप्तच्च शुभे शुभं च कथित चक्रे च चूडाह्वये ॥६॥
अथ नानामुहूर्त्तप्रकारण चौथा लिखते हैं - ( नवीनवस्त्रादिधारणमुहूर्त्त ) ह . चि . स्वा . अनु . पुष्प . ध . रे . अश्वि . उत्तरा ३ . पुनर्वसु . रो . यह नक्षत्र तथा शुभतिथि ॥१॥
बुध . शुक्र . गुरु वार नवीन वस्त्र . सुवर्ण . चांदी . रत्नोंकी आभूषण धारणमें श्रेष्ट हैं ॥२॥
( स्त्रियोंके रक्तवस्त्र चूडा आदिका मु० ) ह , चि . स्वा . वि . अनु . रे . अ . ध . इन नक्षत्रोंमें और मंगल . आदित्य , गुरु . शुक्रवारमें स्त्रियोंको कांचन आदिका चूडा तथा रक्तवस्त्र धारण करना योग्य है ॥३॥
( सौभाग्यवती स्त्रीको निषेध ) रो . उत्तरा ३ , पुष्य , पुनर्वसु . और मंगलवारमें सौभाग्यवती स्त्रियोंको आभूषण वस्त्र धारण नहीं करना चाहिये ॥ ( चूडीधारणमें विशेष ) शुक्रके अस्तमें और विष्णुके शयनकालमें अर्थात् चातुर्मास्यमें और जन्मके १ या धन ९ , मीन १२ के सूर्यमें और रिक्ता । ४ । ९ १४ तिथि सोम शनिवारमें और शनिके नवाशमें ( शंख ) अर्थात् हस्तिदंत लाख आदिकी चूडी या नवीन रक्तवस्त्र स्त्रीको धारण करना योग्य नहीं है ॥५॥
( चूडाचक्र ) सूर्यके नक्षत्रसे दिनके नक्षत्रतक गिने जिनमें प्रथमके तीन ३ नक्षत्र सूर्यके हैं सो अशुभ जानना फिर ५ मंगलके सो भी अशुभ हैं , अनंतर ३ शुक्रके शुभ हैं , ४ बुधके शुभ हैं , ७ राहुके अशुभ हैं , २ शनिके अशुभ , १ गुरुका श्रेष्ठ , २ चन्द्रमाके शुभ , और १ केतुका है सो अशुभ जानना ॥६॥
अथ स्त्रीणां वालबंधमुहूर्त्त : । पौष्णादिभद्वयदिवाकर शकरेषु मूला निलश्रवणशीतकरोत्तरेषु । सौम्यामरेज्यभृगुभानुदिनेंऽगनानां मानार्थभोगसुखद : खलु वालबंध : ( १ ) अथ मुहूर्त्तं विनाऽपि कुत्रचिद्वस्त्रधारणम् । राज्ञा प्रीत्याऽर्पितं वस्त्रं विवाहे चोत्सवादिषु । तथा विप्राज्ञया धार्य निंद्ये धिष्ण्येऽपि वासरे ॥७॥
अथ नवीनवस्त्रक्षालनम् ॥ पुवर्वसुद्वयेऽश्विन्यां धनिष्ठाहस्तपंचके । हित्वाऽर्कार्किवुधान् रिक्तां षष्ठीं श्राद्धदिनं तथा । व्रतं पर्व च वस्त्राणि क्षालयेद्रजकादिना ॥८॥
अथ सूचीकर्म । मृर्गाश्चत्राऽनुराधाऽश्विपुष्यांत्यं रोहिणी कर : । ज्येष्ठा सद्वासरा : सार्का : सूचीकमणि संमता : ॥९॥
अथ शय्यानिर्म्याणमुहूर्त्त : । रोहिणी चोत्तरा ज्ञेया हस्त : पुष्य : पुनर्वसु : । अनुराधाऽश्विनी शस्ता खट्वानिर्माणकर्मणि ॥१०॥
शुभे योगे शुभे वारे विदध्यात्खट्विकां नर : । मृताशौचे पंचकेषु रिक्ताऽमाविष्टिवैधृतौ ॥११॥
पितृपक्षे श्रावणे च भाद्रे मास्यशुभे दिने । वजयैद्भौममंदे च खटवानिर्माणकं सदा ॥१२॥
( स्त्रियोंके बालबंधमु . ) रे . अ . ह . आ . मू . कृ . श्र . मृ . उ . ३ इन नक्षत्रोंमें बुध गुरु शुक्र रवि इन वारोंमें स्त्रियोंके बालबंधनेसे [ शिर गुंथानेसे ] मान , धन , भीग , सुख , सौभाग्य प्राप्त होता है ( कई जगह मुहूर्त्तविना भी वस्त्रधारण ) राजाका दिया हुआ और विवाह आदि उत्सवमें तथा ब्राह्मणकी आज्ञा करके निषिद्ध दिनमें भी वखघारण कर लेना योग्य है ॥७॥
( वस्त्र क्षालन मु . ) पु . पु . अ . ध . ह . इन ५ नक्षत्रोंमें और शनि रवि बुधवारके विना अन्य वारोंमें रिक्ता ४।९।१४ षष्ठी ६ के विना तिथियोंमें श्राद्धदिन , व्रत पर्व आदिके विना शुभ दिनमें धोबीके पाससे वस्त्र धुलाना चाहिये ॥८॥
( सूचीकर्ममु . ) मृ . चि . अनु . अ . पुष्य . रे . रो . ह . ज्ये . यह नक्षत्र रवि . गुरु शुक्र , बुध , सोम यह वार वस्त्र सिलानेमें योग्य हैं ॥२९॥
( खाट बनानेका मु . ) रो . उ . ३ ह . पु . पु . अ . इन नक्षत्रोंमें और शुभयोग शुभवारोंमें खाटबनाना शुभ है ॥१०॥
परन्तु मृत सृतकमें , या पंचकोंमें रिक्ता ४ । ९ । १४ अमावास्या तिथिमें और भद्रा , वैधृति , श्राद्धपक्षमें , श्रावण , भाद्रपद मासमें तथा मंगल . शनिवारमें खाट कदापि नहीं बनाना चाहिये ॥११॥१२॥