तत्र तावद्गृहारंभकाल : । अथात : संप्रवक्ष्यामि गृहकालविनिर्णयम् यथाकालं शुभं ज्ञात्वा तदा भवनमारभेत् ॥१॥
पौषफाल्गुनवैशाखमाघश्रावणकार्त्तिका : । मासा : स्युर्गृहनिर्माणे पुत्रारोग्यशुभप्रदा : ॥२॥
चैत्रे व्याधिमवाप्नोति यो नवं कारयेद् गृहम् । वैशाखे धनरत्नानि ज्येष्ठे मृत्युस्तथैव च ॥३॥
आषाढ भृत्यरत्नानि षशुवर्गमवाप्नुयात् । श्रावणे मित्रलाभं तु हानिं भाद्रपदे तथा ॥४॥
युद्धं चैवाश्विने मासि कार्त्तिके धनधान्यकम् । धनवृद्धिर्मार्गशीर्षे पौषे तस्करतो भयम् ॥५॥
माघे त्वग्निभयं विद्याल्लक्ष्मीवृद्धिश्व फाल्गुने । शुक्लपक्षे भबेत्सौख्यं कृष्णे तस्करतो भयम् ॥ अथ सौरमानेन विशेष : । धनु ९ र्मिथुन ३ कन्यायां ६ मीने १२ च यदि भानुमान् । न कर्त्तव्यं तदा गेहं कृते दु : खमवाप्यते ॥६॥
अथ वास्तुप्रकरणं लिख्यते ॥ प्रथम नवीन घरके आरंभके कालका निर्णय लिखते हैं क्योंकि शुभ समय जानके घरका आरंभ करना चाहिये ॥१॥
पौष , फाल्गुन , वैशाख , माघ , श्रावण , कार्तिक इन महीनोंमें नवीन घर करे तो पुत्र आरोग्य शुभ होता है ॥२॥
चैत्रमें घर बनानेसे रोग होता है , वैशाखमें धन रत्न प्राप्त होता है , ज्येष्ठमें मृत्यु हो ॥३॥
आषाढंमें नौकर रत्न गो आदि पशुओंका लाभ , श्रावणमें मित्रोंका लाभ और भाद्रपदमें हानि होती है ॥४॥
आश्विनमें युद्ध , कार्त्तिकमें धनधान्य , मार्गशिरमें धनकी वृद्धि और पौषमें चोरोंका भय होता है ॥५॥
माघमें अग्निका भय , फाल्गुनमें लक्ष्मीकी वृद्धि होती है शुक्लपक्षमें सुख और कृष्णपक्षमें चोरोंका भय होता है , परन्तु धन , मिथुन , कन्या , मीनके सूर्यमें यदि नवीन घर करावे तो दु : ख होता है ॥६॥
अथ गृहारंभे ग्राह्यास्तिथय : । द्वितीयाचतृतीया च षष्ठी चपंचमीतथा । सप्तमी दशमी चैव द्वादश्येकादशी तथा ॥७॥
त्रयोदशी पंचदशी तिथय : स्यु : भुभावहा : । अथ निषिद्धतिथिफलम् । दारिद्रयं प्रतिपत्कुर्याच्चतुर्थां धनहारिणी ॥८॥
अष्टम्युच्चाटनी चैव नवमी शत्रुवर्द्धिनी । दर्शे राजभयं ज्ञेयं भूते चौरभयं तथा ॥९॥
अथ गृहारंभनक्षत्राणि । त्र्युत्तरेऽपि च रोहिण्यां पुष्ये मैत्रे करद्वये । धनिष्ठाद्वितये पौष्णे गृहारम्भ : प्रशस्यते ॥१०॥
विश्वकर्मप्रकाशे विशेष : । मृदुध्रुवस्वातिपुष्यधनिष्ठाद्वितये करे । मूले पुनर्वसौ सौम्यवारे प्रारम्भणं शुभम् ॥११॥
अथ त्याज्यवारादि । आदित्यभौमवर्ज्यारतु सर्वे वारा : शुभावहा : । केचिच्छनिं प्रशंसंति चौरभीतिस्तु जायते ॥१२॥
( गृहारंभकी तिथि ) २।३।६।५।७।१०।१२।११।१३।१५ यह तिथियें घरके आरंभमें श्रेष्ठ हैं । निषिद्ध तिथियोंका फल ॥ प्रतिपदामें घरका आरंभ करे तो दरिद्री हो , चौथ धनको हरे , अष्टमी उच्चाटन करे , नौमी शत्रुओंको बढावे , अमावास्या राजाका भय करे , चौदश चोरोंका भय करे ॥७॥८।९॥
( घरके आरंभके नक्षत्र ) उत्तरा ३ . रो , पुष्य , अनु . ह . चि . ध . श . रे . ( विश्वकर्मप्रकाशमें विशेष ) मृ . स्वा . मू . पुन . इन नक्षत्रोंमें गृहारंभ करना शुभ है ॥१०॥११॥
( त्याज्यवारादि ) आदित्य मंगलके विना संपूर्ण वार शुभ हैं , परंतु शनिवारमें करनेसे चोरोंका भय होता है ॥१२॥
त्यान्ययोगादि । वज्रव्याघातशूलेषु ष्यतिपातातिगंडयो : विष्कम्भे गंडपरिघे वर्ज्ययोगे न कारयेत् ॥१३॥
मासदग्धं वारदग्धं तिथिदग्धं च वैधृतिम् । उत्पातैर्दूषितं भञ्च वर्जयेद्दर्शसंज्ञकम् ॥१४॥
अथ निषिद्धतिथ्यादिफलम् । रिक्ता तिथौ दरिद्रत्वं दर्शे गर्भनिपातनम् । कुयोगे धनधान्यादिनाश : पातश्व मृत्युद : ॥१५॥
बैधृति : सूर्वनाशाय नक्षत्रैक्ये तथैव च । पापवारे दरिद्रत्वं शिशूनां मरणं भवेत् ॥१६॥
कुयोगास्तिथिवारोत्थास्तिथिभोत्था भवारजा : । विवाहादिषु ये वर्ज्यास्ते वर्ज्या वास्तुकर्मणि ॥१७॥
अथ गृहारंभे ग्राह्या मुहूर्ता : । श्वेत मैत्रेऽथ माहेंद्रे गन्धर्व्वाभिजिद्रौहिणे । तथा वैराजसावित्रे मुहूत्तें गृहमारभेत् ॥१८॥
चन्द्रादित्यबलं लब्ध्वा लग्ने शुभनिरीक्षिते । निषिद्धेष्वपि कालेषु स्वानुकूले शुभे दिने ॥१९॥
( त्याज्ययोग ) वज्र , व्याघात , शूल , व्यतिपात , अतिगंड , विष्कंभ , गंड , परिघ इन योगोंमें गृहारंभ नहीं करे ॥१३॥
मासदग्ध , वारदग्ध , तिथिदग्ध , वैधृतियोग और भूकंप आदि उत्पातोंके दिनका नक्षत्र , अमावास्या जरूर वर्जदेने चाहिये ॥१४॥
और रिक्ता तिथि दरिद्रत्व करे , अमावास्या गर्भका नाश करे , निषिद्ध ओग धनधान्यका नाश करें , और व्यतिपात मृत्यु करे ॥१५॥
वैधृति तथा जन्मनक्षत्र सर्व नाश करे , पाप वार दरिद्र करे और बालकोंकी मृत्यु करे ॥१६॥
तिथि वारोंसे होनेवाले निषिद्धयोग और तिथि नक्षत्रसे होनेवाले दोष जो विवाहमें त्यागे गये हैं सो भी नवीन घरके आरंभमें त्यागदेने चाहिये ॥१७॥
और श्वेत , मैत्र , माहेन्द्र , गांधर्व , अभिजित् , रौहिण , वैराज , सावित्र इन मुहूर्त्तोंमें गृहारंभ शुभ है ॥१८॥
चन्द्रमा सूर्य बलवान् हो और लग्नको शुभ ग्रह देखता हो तथा शुभ दिन हो तो निषिद्ध कालमें भी गृहारंभ श्रेष्ठ है ॥१९॥