तत्र तावत्सर्वकार्योपयोगिशिवद्विघटिका प्रारश्र्यते । अथावस्यके पंचांगशुद्धयभावे शिवमुहूर्त्तानि । ईश्वर उवाच ॥ श्रृणु देवि प्रवक्ष्यामि ज्ञानं त्रैलोक्यदीपकम् । ज्योतिस्सारस्य यत्सारं देवानामपि दुर्लभम् ॥१॥
न तिथिर्नच नक्षत्रं न योगकरणं तथा । कुलिकं यमयोगं च न भद्रा नच चंद्रमा : ॥२॥
न शूलं योगिनी राशिर्न होरा न तमोगुण : । व्यतिपाते च संक्रांतौ भद्रायामशुभे दिने ॥३॥
शिवालिखितमित्येतत्सर्वविघ्नोपशांतये । कदाचिच्चलते मेरु : सागराश्व महीच्युता : ॥४॥
सूर्य : पतति वा भूमौ वह्निर्वा याति शीतताम् । निश्वलश्व भवेद्वायुर्नान्यथा मम भाषितम् ॥५॥
तत्रादौ कथयिष्यामि मुहूर्त्तानि च षोडश । गुणत्रयप्रयोगेण चलंत्येव ह्यहर्निशम् ॥६॥
अथ मिश्रप्रकरणं लिख्यते ॥ प्रथम संपूर्ण कार्योंके योग्य दो घडीका शिवलिखित मुहूर्त्त कहते हैं यह मुहूर्त्त पंचांगकी शुद्धि न होनेसे भी शुभ करता है और पंचांगकी शुद्धि सहित तो अतिही श्रेष्ठ है , पूर्वकालमें त्रिपुरासुरको मारनेके समयमें महादेवजीने पार्वतीको कहा था , महादेवजी बोले हे देवि ! त्रिलोकीमें दीपकरूपं ज्ञान और ज्योतिषका सार देवोंको भी दुर्लभ है सो तुमको कहते हैं ॥१॥
जिसमें तिथि , नक्षत्र , योग , करण , कुलिक , यमयोग , भद्रा , अशुभ चंद्रमा , दिशाशूल , योगिनी , राशि , होरा , तमोगुण , व्यतीपात , संक्रांति , अशुभदिन आदिका दोष नहीं लगता है . और संपूर्ण विघ्न शांत होते हैं सो " शिवालिखितनाम " मुहूर्त्त यह है ॥२॥३॥
समय पाकर मेरुपर्वत और समुद्रसहित पृथ्वी भी चल सकती है और सूर्य भी भूमिपर पड सकता है , अग्नि शांत हो सकती है वायु बंद हो सकता है , परन्तु मेरा कहा हुआ यह मुहूर्त्त निष्फल नहीं नाता है ॥४॥५॥
सो ही सोलह मुहूर्त्त तीन गुणोंके प्रयोग करके रातदिन चलते हैं ॥६॥
अथ मुहूर्त्तानि । रौद्रं १ श्वेतं २ तथा मैत्रं ३ चार्वटं च चतुर्थकम् ४ । पंचमं जयदेवं च ५ षष्ठं वैरोचन ६ तथा ॥७॥
तुरगं सप्तम ७ चैव ह्यष्टमं ८ चाभिजित्तथा ॥ रावणं नवमं ९ प्रोक्तं वालवं दशमं १० तथा ॥८॥
विभीषणं रुद्रसंज्ञं ११ द्वादशं च १२ सुनंदनम् । याम्यं त्रयोद्शं १३ ज्ञेयं सौम्यं प्रोक्तं चतुर्दशम् १४ ॥९॥
भार्गवं तिथिसंज्ञं च १५ सविता षोडशं तथा १६ । एतानि प्रोक्तकार्येषु नियोज्यानि यथाक्रमात् ॥१०॥
अथ मुहूर्त्तकर्माणि । रौद्रे रौद्रतरं कार्य्यं श्वेते कुंजरबंधनम् ॥ स्नानदानादिकं मैत्रे चार्वठे स्तंभनं भवेत् ॥११॥
कार्य्यं यज्जयदेवसंज्ञकवरे सर्वार्थकं साधयेत्तद्वैरोचनसंज्ञके भवति व पट्टाभिषेकं क्रमात् ॥ ज्ञात्वैवं तुरगे च नाम्नि विदिते शस्त्रास्त्रकं साधयेत्स्यात्कार्यं ह्यभिजिन्मुहूर्त्तकवरे ग्रामप्रवेशं सदा ॥१२॥
रावणे साधयेद्वैरं युद्धकार्यं च वालवे । विभौषणे शुभं कार्यं यन्त्रकार्यं सुनंदने ॥१३॥
याम्ये भवेन्मारणकार्यमप्यसौ सौम्ये सभायामुपवेशनं स्यात् । स्त्रीसेवनं भार्गवके मुहूर्त्ते सावित्रनाम्रि प्रपठेत्सुविद्याम् ॥१४॥
( मुहूर्तोंके नाम ) रौद्र १ , श्वेत २ , मैत्र ३ , चार्वट ४ , जयदेव ५ , वैरोचन ६ , तुरग ७ , अभिजित् ८ , रावण ९ , वालव १० , विभीषण ११ , सुनंदन १२ , याम्य १३ , सौम्य १४ , भार्गव १५ , सविता १६ , यह सोलह मुहूर्त्तोंके नाम हैं सो क्रमसे जुदे जुदे कामोंमें लेने चाहिये ॥७॥१०॥
( मुहूर्त्तोंके कार्य ) रौद्रमुहूर्त्तमें अतिही क्रूर काम करना शुभ है , श्वेतमुहूर्त्तमें हस्तीका बंधन शुभ है और मैत्रमें स्नान दान आदि करना , चार्वटमें स्तंभनकार्य जयदेवमें संपूर्ण शुभकार्य , वैरोचनमें राज्याभिषेक , तुरगमें शस्त्रअस्त्रका कार्य , अभिजित्में ग्राम आदिका प्रवेश करना शुभ है ॥११॥१२॥
रावणमें वैरका काम , वालवमें युद्धके कार्य ; विभीषणमें शुभ कार्य , सुनंदनमें यन्त्रोंका काय , याम्यमें मारणका कृत्य , सौम्यमें सभाआदिमें बैठना , भार्गवमें स्त्रीसेवन और सवितामुहूर्त्तमें विद्याका आरंभ करना श्रेष्ठ है ॥१३॥१४॥