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दोहा सुमिर चित्रगुप्त ईश ...
श्री चित्रगुप्त चालीसा - दोहा सुमिर चित्रगुप्त ईश ...
चालीसा, देवी देवतांची काव्यात्मक स्तुती असून, भक्ताच्या आयुष्यातील सर्व संकटे दूर होण्यासाठी मदतीची याचना केली जाते.
दोहा
सुमिर चित्रगुप्त ईश को, सतत नवाऊ शीश ।
ब्रह्मा विष्णु महेश सह, रिनिहा भए जगदीश ॥
करो कृपा करिवर वदन, जो सरशुती सहाय ।
चित्रगुप्त जस विमलयश, वंदन गुरूपद लाय ॥
॥ चौपाई ॥
जय चित्रगुप्त ज्ञान रत्नाकर । जय यमेश दिगंत उजागर ॥
अज सहाय अवतरेउ गुसांई । कीन्हेउ काज ब्रम्ह कीनाई ॥
श्रृष्टि सृजनहित अजमन जांचा । भांति-भांति के जीवन राचा ॥
अज की रचना मानव संदर । मानव मति अज होइ निरूत्तर ॥
भए प्रकट चित्रगुप्त सहाई । धर्माधर्म गुण ज्ञान कराई ॥
राचेउ धरम धरम जग मांही । धर्म अवतार लेत तुम पांही ॥
अहम विवेकइ तुमहि विधाता । निज सत्ता पा करहिं कुघाता ॥
श्रष्टि संतुलन के तुम स्वामी । त्रय देवन कर शक्ति समानी ॥
पाप मृत्यु जग में तुम लाए । भयका भूत सकल जग छाए ॥
महाकाल के तुम हो साक्षी । ब्रम्हउ मरन न जान मीनाक्षी ॥
धर्म कृष्ण तुम जग उपजायो । कर्म क्षेत्र गुण ज्ञान करायो ॥
राम धर्म हित जग पगु धारे । मानवगुण सदगुण अति प्यारे ॥
विष्णु चक्र पर तुमहि विराजें । पालन धर्म करम शुचि साजे ॥
महादेव के तुम त्रय लोचन । प्रेरकशिव अस ताण्डव नर्तन ॥
सावित्री पर कृपा निराली । विद्यानिधि माॅं सब जग आली ॥
रमा भाल पर कर अति दाया । श्रीनिधि अगम अकूत अगाया ॥
ऊमा विच शक्ति शुचि राच्यो । जाकेबिन शिव शव जग बाच्यो ॥
गुरू बृहस्पति सुर पति नाथा । जाके कर्म गहइ तव हाथा ॥
रावण कंस सकल मतवारे । तव प्रताप सब सरग सिधारे ॥
प्रथम् पूज्य गणपति महदेवा । सोउ करत तुम्हारी सेवा ॥
रिद्धि सिद्धि पाय द्वैनारी । विघ्न हरण शुभ काज संवारी ॥
व्यास चहइ रच वेद पुराना । गणपति लिपिबध हितमन ठाना ॥
पोथी मसि शुचि लेखनी दीन्हा । असवर देय जगत कृत कीन्हा ॥
लेखनि मसि सह कागद कोरा । तव प्रताप अजु जगत मझोरा ॥
विद्या विनय पराक्रम भारी । तुम आधार जगत आभारी ॥
द्वादस पूत जगत अस लाए । राशी चक्र आधार सुहाए ॥
जस पूता तस राशि रचाना । ज्योतिष केतुम जनक महाना ॥
तिथी लगन होरा दिग्दर्शन । चारि अष्ट चित्रांश सुदर्शन ॥
राशी नखत जो जातक धारे । धरम करम फल तुमहि अधारे ॥
राम कृष्ण गुरूवर गृह जाई । प्रथम गुरू महिमा गुण गाई ॥
श्री गणेश तव बंदन कीना । कर्म अकर्म तुमहि आधीना ॥
देववृत जप तप वृत कीन्हा । इच्छा मृत्यु परम वर दीन्हा ॥
धर्महीन सौदास कुराजा । तप तुम्हार बैकुण्ठ विराजा ॥
हरि पद दीन्ह धर्म हरि नामा । कायथ परिजन परम पितामा ॥
शुर शुयशमा बन जामाता । क्षत्रिय विप्र सकल आदाता ॥
जय जय चित्रगुप्त गुसांई । गुरूवर गुरू पद पाय सहाई ॥
जो शत पाठ करइ चालीसा । जन्ममरण दुःख कटइ कलेसा ॥
विनय करैं कुलदीप शुवेशा । राख पिता सम नेह हमेशा ॥
॥ दोहा ॥
ज्ञान कलम, मसि सरस्वती, अंबर है मसिपात्र ।
कालचक्र की पुस्तिका, सदा रखे दंडास्त्र ॥
पाप पुन्य लेखा करन, धार्यो चित्र स्वरूप ।
श्रृष्टिसंतुलन स्वामीसदा, सरग नरक कर भूप ॥
॥ इति श्री चित्रगुप्त चालीसा समाप्त ॥
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Last Updated : February 21, 2018
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