मानसिक शुध्दिका मन्त्र

प्रस्तुत पूजा प्रकरणात भिन्न भिन्न देवी-देवतांचे पूजन, योग्य निषिद्ध फूल यांचे शास्त्र शुद्ध विवेचन आहे.


मानसिक शुध्दिका मन्त्र --
ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:॥
अतिनीलघनश्यामं नलिनायतलोचनम् ।
स्मरमि पुण्डरीकाक्षं तेन स्नातो भवाम्यहम् ॥
इसके बाद मूर्तिमान् भगवान् माता-पिता एवं गुरुजानोंका अभिवादन करे, फिर परमपिता परमात्माका ध्यान करे ।
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कर्म और उपासनाका समुच्चय (तन्मूलक संकल्प) -- इसके बाद परमात्मासे प्रार्थना करे कि 'है परमात्मन् ! श्रुति और स्मृति आपकी ही आज्ञाएँ है । आपकी इन आज्ञाओंके पालनके लिये मैं इस समयसे लेकर सोनेतक सभी कार्य करुँगा । इससे आप मुझपर प्रसन्न हों, क्योंकि आज्ञापालनसे बढ़कर स्वामीकी और कोई सेवा नहीं होती' --
त्रैलोक्यचैतन्यमयादिदेव ! श्रीनाथ ! विष्णो ! भवदाज्ञयैव।
प्रात: समुत्थाय तव प्रियार्थ संसारयात्रामनुवर्तयिष्ये ॥
सुप्त: प्रबोधितो विष्णो ! ह्रषीकेशेन यत् त्वया ।
यद्यत् कारयसे कार्यं तत् करोमि त्वदाज्ञया ॥
(व्यास)
आपकी यह भी आज्ञा है कि काम करनेके साथ-साथ मैं आपका स्मरण करता रहूँ । तदनुसार यथासम्भव आपका स्मरण करता हुआ और नाम लेता हुआ काम करता रहूँगा तथा उन्हें आपको समर्पित भी करता रहूँगा । इस कर्मरुप पूजासे आप प्रसन्न हों ।

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Last Updated : November 25, 2018

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