आशौचमें संध्यापासनकी विधी

प्रस्तुत पूजा प्रकरणात भिन्न भिन्न देवी-देवतांचे पूजन, योग्य निषिद्ध फूल यांचे शास्त्र शुद्ध विवेचन आहे.


आशौचमें संध्यापासनकी विधी

महर्षि पुलस्त्यने जननाशौच एवं मरणाशौचमें संध्योपासनकी अबाधित आवश्यकता बतलायी है। किंतु आशौचमें इसकी प्रक्रिया भिन्न हो जाती है। शास्त्रोंने इसमें मानसी संध्याका विधान किया है। इसमें उपस्थान नही होता। यह संध्या आरम्भसे सूर्यके अर्घ्यतक ही सीमित रहती है। यहाँ दस बार गायत्रीका जप आवश्यक है। इतनेसे संध्योपासनका फ़ल प्राप्त हो जाता है।
एक मत यह है कि इसमें कुश और जलका भी प्रयोग न हो। निर्णीत मत यह है कि बिना मन्त्र पढे प्राणायाम करे, मार्जन-मन्त्रोंका मनसे उच्चारण कर, मार्जन करे। गायत्रीका सम्यक उच्चारण कर सूर्यको अर्घ्य दे। फ़िर पैठीनसिके अनुसार सूर्यको जलांजलि देकर प्रदक्षिणा और नमस्कार करे। आपत्तिके समय, रास्तेमें और अशक्त होनेकी स्थितिमें भी मानसी संध्या की जाती है।

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Last Updated : November 27, 2018

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