नित्यहोम-विधि
नित्यकर्मके पश्र्चात् पूर्वमुख बैठकर आसन-शुध्दिके बाद आचमन, प्राणायाम करके संकल्प करे । ॐ अद्य आदि देश-कालका उच्चारण कर गोत्र:, प्रवर:, शर्मा (वर्मा / गुप्त: / दास:) अहं नित्यकर्मानुष्ठानसिध्दिद्वारा श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थं श्रीपरमेश्र्वरप्रीत्यर्थं च नित्यहोमं करिष्ये ।
पञ्चभूसंस्कार --
संकल्प करनेके बाद वेदीके निम्रलिखित पाँच संस्कार करने चाहिये --
(१) तीन कुशोसे वेदी अथवा ताम्रकुण्डका दक्षिणसे उत्तरकी ओर परिमार्जन करे तथा उन कुशोंको ईशान दिशामें फेंक दे (दर्भै: परिसमुहा) । (२) गोबर और जलसे लीप दे (गोमयोदकेनोपलिप्य) । (३) स्त्रुवा अथवा कुशमूलसे पश्र्चिमसे पूर्वकी ओर प्रादेशमात्र
(दस अंगुल लंबी) तीन रेखायें दक्षिणसे प्रारम्भ कर उत्तरकी ओर खींचे (वज्रेणोल्लिखु) । (४) उल्लेखान्क्रमसे दक्षिण अनामिका और अँगूठेसे रेखाओंपरसे मिट्टी निकालकर बायें हाथमें तीन बार रखकर पुन: सब मिट्टी दाहिने हाथमें रख ले और उसे उत्तरकी ओर फेंक दे (अनामिकान्ग्ड़ष्ठाभ्यां मृदमुध्द्भत्य) । (५) पुन: जलसे कुण्ड या स्थण्डिलको सींच दे (उदकेनाभ्युक्ष्य) ।
इस प्रकार पञ्चभूसंस्कार करके पवित्र अग्नि अपने दक्षिणकी ओर रखे और उस अग्निसे थोड़ा क्रव्याद-अंश निकालकर नैऋत्यकोणमें रख दे । पुन: सामने रखी पवित्र अग्निको कुण्ड या स्थण्डिलपर निम्न मन्त्रसे स्थापित करे -- ॐ अग्निं दूतं पुरो दधे हव्यवाहमुप ब्रुवे । देवाँ२ आ सादयादिह ।
-- इस मन्त्रसे अग्नि -- स्थापनके पश्र्चात् कुशोंसे परिस्तरण करे । कुण्ड या स्थण्डिलके पूर्व उत्तराग्र तीन कुश या दूर्वा रखे । दक्षिणभागमें पूर्वाग्र तीन कुश या दूर्वा रखे । पश्र्चिमभागमें उत्तराग्र तीन कुश या दूर्वा रखे । उअत्तरभागमें पूर्वाग्र तीन कुश या दूर्वा रखे । अग्निको बाँसकी नलीसे प्रज्वालित करे । इसके बाद अग्निका ध्यान करे ।
अग्निका ध्यान -- ॐ चत्वारि श्रृन्ग्ड़ा त्रयो अस्य पादा द्वे शीर्षे सप्त हस्तासो अस्त । त्रिधा बध्दो वृषभो रोरवीति महो देवो मत्यीं२ आ विवेश ।
ॐ मुखं य: सर्वदेवानां हव्यभुक् कव्यभुक् तथा ।
पितृणां च नमस्तस्मै विष्णवे पावकात्मने ॥
--ऐसा ध्यान करके 'ॐ अग्ने शाण्डिल्यगोत्र मेषध्वज प्राड़्मुख मम सम्मुखो भव' -- इस प्रकार प्रार्थना करके 'पावकाग्नये नम:' इस मन्त्रसे पञ्चोपचार-पूजन करे । गन्ध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य चढ़ाये । तदनन्तर घृतमिश्रित हविष्यान्नसे अथवा घृतसे हवन करे । सम्भव हो तो घृतसे स्त्रुवाद्वारा अग्निके जलते अंशपर तीन आहुति दे --
१-ॐ भू: स्वाहा, इदमग्नये न मम ।
२-ॐ भुव: स्वाहा, इदं वायवे न मम ।
३-ॐ स्व: स्वाहा, इदं सूर्याय न मम ।
(१) ॐ अग्नये स्वाहा, इदमग्नये न मम ।
(२) ॐ धन्वन्तरये स्वाहा, इदं धन्वन्तरये न मम ।
(३) ॐ विश्र्वेभ्यो देवेभ्य: स्वाहा, इदं विश्र्वेभ्यो देवेभ्यो न मम ।
(४) ॐ प्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये न मम ।
(५) ॐ अग्नये स्विष्टकृते स्वाहा, इदंमग्नये स्विष्टकृते न मम ।
-- इस प्रकार गौतम महार्षिप्रोक्त पाँच आहुतियाँ देकर निम्न मन्त्रोंसे आहुतियाँ और दे --
[१] ॐ देवकृतस्यैनसोऽवयजनमसि स्वाहा, इदमन्गये न मम ।
[२] ॐ मनुष्यकृतस्यैनसोऽवयजनमसि स्वाहा, इदमग्नये न मम ।
[३] ॐ पितृकृतस्यनसोऽवयजनमसि स्वाहा, इदमग्नये न मम ।
[४] ॐ आत्मकृतस्यैनसोऽवयजनमसि स्वाहा, इदमग्नये न मम ।
[५] ॐ एनस एनसोऽवयजनमसि स्वाहा, इदमग्नये न मम ।
नित्यहोम-विधि
[६] ॐ यच्चाहमेनो विद्वांश्र्चकार यच्चाविद्वाँस्तस्य सर्वस्यैनसोऽवयजनमसि स्वाहा, इदमग्नये न मम ।
-- इस प्रकार होम सम्पन्न कर पञ्चोपचार -- गन्ध, पुष्प, धूप, दीप तथा नैवेद्यसे अग्निकी उत्तर-पूजा करके न्युनतापूर्तिके लिये प्रार्थना करे --
ॐ सप्त ते अग्ने समिध: सप्त जिह्न: सप्त ऋषय: सप्त धाम प्रियाणि । सप्त होत्रा: सप्तधा त्वा यजन्ति सप्त योनीरा पृणस्व घृतेन स्वाहा ॥ अन्तमें निम्नांकित वाक्य कहकर कृत हवन-कर्म भगवान् को अर्पित करे --
अनेन नित्यहोमकर्मणा श्रीपरमेश्र्वर: प्रीयताम् न मम ।
ॐ तत्सद ब्रह्मार्पणमस्तु ।