हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|अनुवादीत साहित्य|रामदासकृत हिन्दी मनके श्लोक|मंत्रों का नाम| ॥ समास नववां - साधकलक्षण निरूपणनाम ॥ मंत्रों का नाम ॥ समास पहला - गुरुनिश्चयनाम ॥ ॥ समास दूसरा - गुरुलक्षणनाम ॥ ॥ समास तीसरा - शिष्यलक्षणनाम ॥ ॥ समास चौथा - उपदेशनाम ॥ ॥ समास पांचवां - बहुधाज्ञाननाम ॥ ॥ समास छठवां - शुद्धज्ञाननिरूपणनाम ॥ ॥ समास सातवा - बद्धलक्षणनाम ॥ ॥ समास आठवां - मुमुक्षुलक्षणनाम ॥ ॥ समास नववां - साधकलक्षण निरूपणनाम ॥ ॥ समास दसवां - सिद्धलक्षणनाम ॥ मंत्रों का नाम - ॥ समास नववां - साधकलक्षण निरूपणनाम ॥ ‘संसार-प्रपंच-परमार्थ’ का अचूक एवं यथार्थ मार्गदर्शन इस में है । Tags : hindimanache shlokramdasमनाचे श्लोकरामदासहिन्दी ॥ समास नववां - साधकलक्षण निरूपणनाम ॥ Translation - भाषांतर ॥ श्रीरामसमर्थ ॥ पीछे मुमुक्षु के लक्षण । संकेत से किये कथन । अब सुनो होकर सावधान । साधक वह कैसा ॥१॥अवगुणों का करके त्याग । जिसने धरा सत्संग । उसे कहिये तब । साधक ऐसे ॥२॥ जो संतों को शरण गया । संत जनों से आश्वस्त हुआ । तब वह साधक कहा गया । ग्रंथातर में ॥३॥ उपदेश किया आत्मज्ञान । टूटा संसारबंधन । दृढता के कारण करे साधन । इसका नाम साधक ॥४॥ धरे प्रीति श्रवण में । चाहत अद्वैतनिरूपण में । खोजे अर्थांतर मनन में । इसका नाम साधक ॥५॥ होते ही सारासार विचार । सुने होकर तत्पर । संदेह छेदकर दृढोत्तर । आत्मज्ञान देखे ॥६॥ नाना संदेह निवृत्ति । होने के लिये धरे सत्संगति । आत्मशास्त्रगुरूप्रचीति । में लाये ऐक्यता ॥७॥ देहबुद्धि विवेक से दूर करे । आत्मबुद्धि सुदृढ धरे । श्रवण मनन निरंतर करे । इसका नाम साधक ॥८॥ भूलकर दृश्यभान । धरे दृढता से आत्मज्ञान । विचार से रखे समाधान । इसका नाम साधक ॥९॥ तोडकर द्वैत की उपाधि । अद्वैत वस्तु साधन से साधे । लगाये एकता की समाधि । इसका नाम साधक ॥१०॥आत्मज्ञान जीर्ण जर्जर । उसका करे जीर्णोद्धार । विवेक से पाये भवपार । इसका नाम साधक ॥११॥ उत्तम लक्षण साधु के । अंगीकार करे निरूपण में । स्वरूपाकार होता बलपूर्वक से । इसका नाम साधक ॥१२॥ असत्क्रिया छोड़ दी । और सत्क्रिया बढाई । स्वरूप स्थिति दृढ की । इसका नाम साधक ॥१३॥ अवगुण त्यागे दिवसेदिवस । करे उत्तम गुणों का अभ्यास । स्वरूप में लगाये निजध्यास । इसका नाम साधक ॥१४॥ दृढ निश्चय के बल पर ही । ना विचलित हो दृश्य रहने पर भी । मिला रहे स्वरूप में ही । इसका नाम साधक ॥१५॥प्रत्यक्ष माया अलक्ष्य करे । अलक्ष्य वस्तु पर लक्ष्य करे । आत्मस्थिति की धारणा धरे । इसका नाम साधक ॥१६॥जो इन जनों के लिये गुप्त रहा । मन से कभी ना अनुमानित हुआ। वही जिसने दृढ किया । इसका नाम साधक ॥१७॥ जो बोलते समय बाचा धरे । देखते समय अंधत्व लाये । उसे साधे नाना तरह से । इसका नाम साधक ॥१८॥ साधने जाओ तो साधे ना । लक्ष्य करने पर जो लक्ष्य आये ना । उसका ही अनुभव मन में लाना । इसका नाम साधक ॥१९॥ जहां मन का होता अस्त । जहां तर्क ही पाता पंगुत्व । वही अनुभव करे बलपूर्वक । इसका नाम साधक ॥२०॥स्वानुभव के ही योग से । तत्काल ही वस्तु साधे । वही वस्तु होता स्वभाव से । इसका नाम साधक ॥२१॥ जाने अंग अनुभव के । दृढ करे चिन्ह योगियों के । रहे कुछ भी ना हो के । इसका नाम साधक ॥२२॥ दूर कर के उपाधि । असाध्य वस्तु साधन से साधे । स्वरूप में करे दृढ बुद्धि । इसका नाम साधक ॥२३॥ देवभक्त के मूल । खोजकर देखे सकल । साध्य ही होता तत्काल । इसका नाम साधक ॥२४॥ विवेक बल से गुप्त हुआ । अपने आप में लय हुआ । दिखता परंतु नही देखा । किसी को भी ॥२५॥ मैंपन पीछे छोड़ा । स्वयं अपने को खोजा । तुर्या को भी पार किया । इसका नाम साधक ॥२६॥ आगे उन्मनी के अंत में । स्वयं से स्वयं अखंड मिले । अखंड अनुभव पर जो दृष्टि रखे । इसका नाम साधक ॥२७॥द्वैत का बंधन तोड़ा । भास के भास का खंडन किया । देह में रहकर विदेही हुआ । इसका नाम साधक ॥२८॥ जिसकी अखंड स्वरूपस्थिति । नहीं देह की अहंकृति । सकल संदेहनिवृत्ति । इसका नाम साधक ॥२९॥ पंचभूतों का विस्तार । जिसे लगे स्वप्नाकार । निर्गुण में जिसका निर्धार । इसका नाम साधक ॥३०॥ स्वप्न में जो भय लगा । वह जागृति में न लगा । सकल मिथ्या निर्धार किया । इसका नाम साधक ॥३१॥ माया का जो प्रत्यक्षपन । जनों को लगे यह प्रमाण । स्वानुभव से अप्रमाण । साधक ने किया ॥३२॥ निद्रा त्यागकर जाग गया । वह स्वप्न भय से छूट गया । त्यागकर माया वैसे ही गया । साधक स्वरूप में ॥३३॥ऐसे अंतरस्थिति सुदृढ की । बाह्य निस्पृहता अंगीकृत की । संसार उपाधि त्याग दी । इसका नाम साधक ॥३४॥छूटा काम के चंगुल से । हुआ दूर क्रोध से । मद मत्सर त्यागा ऐसे । एक ओर ॥३५॥ त्यागा कुलाभिमान को । लजाया लोकलज्जा को । बलवत्तर किया परमार्थ को । विरक्ति बल से ॥३६॥ अविद्या से बच निकला । प्रपंच से छूट गया । लोभ के हांथ से निकल गया । अकस्मात् ॥३७॥ बडप्पन को पटक दिया । वैभव को झटक दिया । महत्त्व को झिंजोड दिया । विरक्तिबल से ॥३८॥ भेद का आसरा तोडा । अहंकार त्याग कर गिराया । पैर पकड़कर पटक दिया । संदेहशत्रु ॥३९॥ विकल्प का किया वध । प्रहार से भवसिंधु मृत । सकल भूतों का विरोध । तोड़ दिया ॥४०॥ भवभय को मारा चांटा । काल के टांगे तोड़ा । मस्तक चीरकर फोड़ा । जन्म मृत्यु के ॥४१॥ देहसंबंध पर हमला किया । संकल्प से विद्रोह किया । कल्पना का घात किया । अकस्मात् ॥४२॥निजभय को ताड़ित किया । लिंगदेह को पराजित किया । पाखंड मत को पछाड़ दिया । विवेकबल से ॥४३॥ गर्व पर गर्व किया । स्वार्थ का अनर्थ किया । अनर्थ का भी निर्दलन किया । नीतिन्याय से ॥४४॥ मोह को बीच में ही तोड़ा । दुःख दुःधड़ किया । शोक का खंडन कर छोड़ा । एक ओर ॥४५॥ द्वेष को देश निकाला दिया । अभाव का गला दबाया । डर से उदर कापनें लगा । कुतर्क का ॥४६॥ बलवान हुआ ज्ञानविवेक से । दृढ हुआ निश्चय जिससे । किया संहार वैराग्यबल से । अवगुणों का ॥४७॥ अधर्म को स्वधर्म से लूटा । कुकर्मों को सत्कर्मों से दुत्कारा । कुचल कर रास्ता दिखलाया । अविचार को विचार से ॥४८॥ तिरस्कार को चीर दिया । द्वेष को छील कर त्याग दिया । विषाद को अविषाद से डाल दिया । पैरों तले ॥४९॥ क्रोध पर प्रहार किया । कापट्य को भीतर कूट किया । सख्य अपना मान लिया । विश्वजनों में ॥५०॥ प्रवृत्ति का किया त्याग । सहृदयों का छोड़ा संग । निवृत्तिपथ से ज्ञानयोग । साध्य किया ॥५१॥ विषय ठगों को ठगाया । कुविद्या को घेर लिया । स्वयं को छुडाया । आप्त तस्करों से ॥५२॥ पराधीनता पर कुपित हुआ । ममता पर संतप्त हुआ । दुराशा को त्याग दिया । एकाएक ॥५३॥ स्वरूप में लगाया मन । यातना को दी यातना । साक्षेप और प्रयत्न । प्रतिष्ठित किये ॥५४॥ अभ्यास का संग किया । साक्षेप के साथ निकला । प्रयत्न का संग भला । साधन पथ पर ॥५५॥ सावध दक्ष वह साधक । देखे नित्यानित्यविवेक । संग त्यागकर एक । सत्संग धरे ॥५६॥ बलपूर्वक हटाया संसार । विवेक से फेंका संसारभार । शुद्धाचार से अनाचार । भ्रष्ट किया ॥५७॥ विस्मरण को भुला दिया । आलस का आलस किया। सावधान नहीं दुश्चित हुआ । दुश्चित पन से ॥५८॥ अब रहने दो यह कथन । निरूपण से जो त्यागे अवगुण । वह साधक ऐसा यह प्रमाण । से जानिये ॥५९॥बल से ही समस्त त्याग कीजिये । इसलिये साधक कहिये। अब सिद्ध वह जानिये । अगले समास में ॥६०॥ यहां संशय उठा । निस्पृह वही साधक हुआ । संसारिक से त्याग नहीं होता । तो क्या वह साधक नहीं ॥६१॥ ऐसा श्रोता कहे उत्तर । इसका कैसा प्रत्योत्तर । अगले समास में तत्पर । होकर सुनो ॥६२॥ इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे साधकलक्षण निरूपणनाम समास नववां ॥९॥ N/A References : N/A Last Updated : December 01, 2023 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. 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