विवेकवैराग्यनाम - ॥ समास नववां- येत्नसिकवणनाम ॥

इस ग्रंथमें प्रत्येक छंद ‘मुख्य आत्मनुभूति से’ एवं सभी ग्रंथों की सम्मति लेकर लिखा है ।   


॥ श्रीरामसमर्थ ॥
दुर्बल दुराचारी विपदग्रस्त है । आलसी खाऊ ऋणग्रस्त । मूर्खता से सपूर्ण व्यवस्थित । कुछ भी नहीं ॥१॥
खाने को नहीं भोजन को नहीं । पहनने को नहीं परिधान को नहीं । बिछाने को नहीं ओढ़ने को नहीं । झोपड़ी नहीं अभागी ॥२॥
सगे नहीं संबंधी नहीं । इष्ट नहीं मित्र नहीं । देखें तो कहीं पहचान नहीं । आश्रय के बिना परदेसी ॥३॥
वह अब कैसे करे । क्या जी में धरे । जिये अथवा मरे । किस तरह ॥४॥
ऐसे पूछा किसीने । उत्तर दिया किसी ने । सावधानी से श्रोताओं ने । श्रवण करना चाहिये ॥५॥
छोटा बड़ा काम कोई । किये बिन होता नहीं । देख अभागे रख सावधानी । सदेव होगा ॥६॥
अंतरंग में नहीं सावधानता । यत्न पूरा नहीं होता । सुख संतोष की वार्ता । कैसी वहां ॥७॥
इस कारण आलस छोड़ें । यत्न साक्षेप से जोड़ें । दुश्चितता का तोड़ें । आसरा बलपूर्वक ॥८॥
प्रातःकाल में उठें । प्रातः स्मरामि करें । नित्य नियम से स्मरण करें । कंठस्थ अभ्यास ॥९॥
पिछला स्मरण अगला पठन । नियम धरें निकट । वाचालता से बड़बड़ । करें ही नहीं ॥१०॥
दिशा की ओर दूर जायें । शुचिष्मंत बनकर आयें । आते समय कुछ तो लायें । रिक्त खोटा ॥११॥
धुत वस्त्र सुखायें निचोड़कर । करें चरणक्षालन । देवदर्शन देवार्चन । यथोचित ॥१२॥
कुछ फलाहार करें । आगे व्यवसाय करें । लोग अपने पराये । कहते जायें ॥१३॥
सुंदर अक्षर लिखें । स्पष्ट अचूक पढ़ें । विवर विवर कर जानें । अर्थातर ॥१४॥
निश्चित सटीकता से पूछें । विशद करके कहें । प्रत्यय बिन बोले । वही पाप ॥१५॥
सावधानता रहे । नीतिमर्यादा रखें । जन माने ऐसे करें । क्रियासिद्धि ॥१६॥
आनेवालों का समाधान । हरिकथा निरूपण । सर्वदा करें आचरण । प्रसंग देखकर ॥१७॥
ताल तर्ज मुद्रा शुद्ध । अर्थप्रमेय अन्वय शुद्ध । गद्यपद्य दृष्टांत शुद्ध । अन्वययुक्त ॥१८॥
गाना बजाना नाचना । हस्तन्यास दिखलाना । सभारंजक वचन । अवांतर कथा छंद बंद ॥१९॥
बहुतों का समाधान रखें । बहुतों को मान्य वही बोलें । बेरंग ना आने दें । कथा में ॥२०॥
लोगों को उदंड न चिढ़ायें । लोगों का हृदगत जानें । तभी फिर सहज होये । नामघोष ॥२१॥
भक्ति ज्ञान वैराग्य योग । नाना साधनों के प्रयोग । जिससे टूटे भवरोग । मनन मात्र से ॥२२॥
जैसा बोल बोलें । वैसी ही चाल चलें । तब फिर महंत लीलायें सहजता से । शरीर में दृढ होये ॥२३॥
युक्ति बिन सजाया योग । वह दुराशा का रोग । संगति के लोगों का भोग । खड़ा हुआ ॥२४॥
ऐसे ना करें सर्वथा । जनों को ना पहुंचायें व्यथा । हृदय में चिंतन समर्था । रघुनाथ का करें ॥२५॥
उदास वृत्ति को माने जन । विशेष कथानिरूपण । रामकथा ब्रह्मांड का छेदन । कर ले जायें उस पार ॥२६॥
अच्छे महंत की संगति में गायन । वहां वैभव को क्या न्यून । नभ में जैसे तारांगण । वैसे लोग ॥२७॥
अकलबंध नहीं जहां । सर्व ही अस्तव्यस्त वहां । एक अकल के बिन यहां । क्या है ॥२८॥
बढ़ाकर अकल का व्याप । होयें ब्रह्मांड से विशाल । वहां कैसा आयेगा द्वाड । अभागापन ॥२९॥
यहां आशंका मिटी । बुद्धि यत्न में प्रवेश हुई । कुछ एक आशा बढ़ गई । अंतःकरण में ॥३०॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे येत्नासिकवणनाम समास नववां ॥९॥

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Last Updated : December 08, 2023

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