बहुजिनसी - ॥ समास नववां - निद्रानिरूपणनाम ॥
‘स्वधर्म’ याने मानवधर्म! जिस धर्म के कारण रिश्तों पहचान होकर मनुष्य आचरन करना सीखे ।
॥ श्रीरामसमर्थ ॥
वंदन कर आदिपुरुष । कहूं निद्रा का विलास । आने पर निद्रा सहज । जायेगी नहीं ॥१॥
निद्रा से व्याप्त काया । आलस से शरीर तोडे जम्हायियां । इस कारण बैठने का । धीरज नहीं ॥२॥
जोरो से जम्हाईयां आतीं । चुट चुट चुटकियां बजतीं । डगमग डगमग झपकिया आती । सहज ही ॥३॥
किसी की आंखें मुंदतीं । किसी की पलकें झुकती । हडबडाकर देखता कोई । चारों ओर ॥४॥
कोई औंधे मुंह गिर गया । उससे फूटी ब्रह्मवीणा । हुडकी वाद्य टूट गया । सुध नहीं ॥५॥
कोई टिककर बैठा । वहीं खरटि भरने लगा । कोई चित हो पसरा । आराम से ॥६॥
कोई उकडू बैठ गया । कोई एक करवट पर सो गया । कोई चक्राकार घूमने लगा । चारों ओर ॥७॥
कोई हांथ हिलाता । कोई पैर हिलाता । कोई दात पीसता । किटकिटाकर ॥८॥
किसी के वस्त्र निकल गये । वे विवस्त्र ही लेटे रहे । किसी का सिर के वस्त्र बिखरे । चारों ओर ॥९॥
कोई सोया अस्तव्यस्त । कोई दिखता जैसे प्रेत । भूतों जैसे फैलाकर दांत । दिखते भीषण ॥१०॥
कोई बडबडाते उठ गया । कोई अंधेरे में घूमने लगा । कोई जाकर सो गया । कूडे के ढेर पर ॥११॥
कोई मटकी उतारता । कोई भूमि टटोलता । कोई उठकर चलने लगता । किसी भी ओर ॥१२॥
कोई प्राणी बडबडाता । कोई सिसक सिसककर रोता । कोई खिलखिलाकर हंसता । सावकाश ॥१३॥
कोई पुकारते उठ गया । कोई चिल्लाते उठ गया । कोई बिचककर रह गया । अपनी जगह पर ॥१४॥
कोई रह रहकर घिसटता । कोई सिर खुजलाता । कोई कांखने लगता । सावकाश ॥१५॥
लार टपकती किसी की । पीक बहती किसी की । लघुशंका करता कोई । सावकाश ॥१६॥
कोई अपान वायु छोडता । कोई खट्टी डकार लेता । कोई खकारकर थूकता । कहीं भी ॥१७॥
कोई विष्ठा कोई वमन करता । कोई खांसता कोई छींकता । एक वह पानी मांगता । नींद भरे स्वर में ॥१८॥
एक दुःस्वप्न से घबरा गया । एक सुस्वप्न से संतुष्ट हुआ । एक बेहोश सा पडा रहा । सुषुप्ति में ॥१९॥
इधर उगने लगा दिन । किसी ने आरंभ किया पठन । कोई करके प्रातः स्मरण । हरिकीर्तन करे ॥२०॥
किसी ने ध्यान मूर्ति का स्मरण किया । कोई एकांत में जप करता । कोई कंठस्थ रटने लगा । नाना प्रकारों से ॥२१॥
नाना विद्या कला नाना । सब सीखते अपना अपना । तानमान गायनकला । कोई गाता ॥२२॥
पीछे निद्रा समाप्त हुई । आगे जागृति प्राप्त हुई । व्यवसाय में बुद्धि अपनी । प्रेरित की ॥२३॥
ज्ञाता तत्त्वों को छोड भागा । तुर्या के पार गया । आत्मनिवेदन से हुआ । ब्रह्मरूप ॥२४॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे निद्रानिरूपणनाम समास नववां ॥९॥
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Last Updated : December 09, 2023
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