शिकवणनाम - ॥ समास पांचवां - देहमान्यनिरूपणनाम ॥
परमलाभ प्राप्त करने के लिए स्वदेव का अर्थात अन्तरस्थित आत्माराम का अधिष्ठान चाहिये!
॥ श्रीरामसमर्थ ॥
मिट्टी के देव पत्थर के देव । सोने के देव चांदी के देव । कांसे के देव पीतल के देव । तांबे के देव चित्रलेप ॥१॥
रुई के लकडी के देव मूंगे के देव । बाण तंदूल नर्मदा देव । शालिग्राम काश्मिरी देव । सूर्यकांत सोमकांत ॥२॥
ताम्र के सिक्के सुवर्ण के सिक्के । कोई पूजते देवतार्चन में । चक्रांकित चक्रतीर्थ से । ले आते ॥३॥
उदंड उपासना के भेद । कितने करें विशद । अपनी अपनी पसंद की वेध । लगी जनों को ॥४॥
मगर उन सभी का ही कारण । मूल में देखें स्मरण । उस स्मरण का अंश जान । नाना देवतायें ॥५॥
मूलतः द्रष्टा देव वह एक । उसके हुये अनेक । समझकर देखने पर विवेक । बूझने लगे ॥६॥
देह से अलग भक्ति फले ना । देह से अलग देव पाये ना । इस कारण मूल भजन का । देह ही है ॥७॥
देह को मूलमें ही किया व्यर्थ । फिर भजन के लिये कैसा ठांव । इस कारण भजन का उपाय । देहात्मयोग से ॥८॥
देह बिन देव कैसे भजें । देह बिन देव कैसे पूजें । देह बिन महोत्सव कैसे करें । किस प्रकार ॥९॥
इत्र गंध पत्र पुष्प । फल ताम्बूल धूप दीप । नाना भजनों का साक्षेप । कहां करें ॥१०॥
देव का तीर्थ कैसे लें । देव को गंध कहां लगायें । मंत्रपुष्प भी अर्पण करें । किस जगह ॥११॥
इस कारण देह बिन अडता । सारा संकट ही आ पडता । देह के कारण ही होता । भजन कुछ तो ॥१२॥
देव देवी भूत देवता । वहां मूलका सामर्थ्य होता । अधिकारानुसार नाना देवता । भजते जायें ॥१३॥
नाना देवों का भजन किया । वह मूलपुरुष को प्राप्त हुआ । इसकारण सम्मान करना । चाहिये सभी का ॥१४॥
माया वल्लरी खूब फैली । नाना देहफलों से लदी । समझ मूल की समझ में आई। फलों में ॥१५॥
इस कारण आलस ना करें । देखना वह यहीं देखें । प्रतीत आने पर रहें । समाधान से ॥१६॥
प्राणी संसार छोडते । देव को ढूंढते फिरते । नाना अनुमान में पड़ते । जहां वहां ॥१७॥
लोगों की रीति अगर देखें । लोग देवार्चन करते । अथवा क्षेत्रदेव देखते । ठाई ठाई ॥१८॥
अथवा नाना अवतार । सुनकर करते निर्धार । परंतु वे सारे सविस्तार । होकर गये ॥१९॥
एक ब्रह्माविष्णुमहेश । सुनकर कहते ये विशेष । गुणातीत जगदीश । को देखना चाहिये ॥२०॥
देव का नहीं स्थान मान । कहां करें भजन । यह विचार देखने पर अनुमान । होते रहता ॥२१॥
न होने पर देव के दर्शन । कैसे होंगे पावन । धन्य धन्य वे साधुजन । सारा ही जानते ॥२२॥
भूमंडल में देव नाना । उनकी भीड लांघ पाये ना । मुख्य देव वह समझेना । करो कुछ भी ॥२३॥
कर्तृत्व अलग करें । फिर उस देव को देखें । तभी कुछ पता चले । गुप्त गूढ ॥२४॥
वह दिखेना ना भासेना । कल्पांत में भी नाश पाये ना । सुकृत बिन विश्वास होये ना । वहां मन का ॥२५॥
उदंड कल्पित करे कल्पना । उदंड इच्छा करती वासना । अंतरंग में तरंग नाना । उदित होते ॥२६॥
इसकारण कल्पनारहित । वही वस्तु शाश्वत । अंत नहीं अतः अनंत । कहिये उसे ॥२७॥
यह ज्ञानदृष्टि से देखें । देखकर वहीं रहें । निजध्यास से तद्रूप होयें । संग त्याग कर ॥२८॥
नाना लीला नाना लाघव । वे क्या जानेंगे बेचारे जीव । संत संग से स्वानुभव । की स्थिति सुदृढ होती ॥२९॥
ऐसी सूक्ष्म स्थिति गति । समझने पर चूके अधोगति । सद्गुरु से ही सद्गति । तत्काल होती ॥३०॥
इति श्रीदासबोधे गुरुशिष्यसंवादे देहमान्यनिरूपणनाम समास पांचवां ॥५॥
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Last Updated : December 09, 2023
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