हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|भजन|रसखानि| मानुष हौं तो वही रसखानि ब... रसखानि मानुष हौं तो वही रसखानि ब... या लकुटी अरु कामरियापर , ... गावैं गुनी , गनिका , गन्ध... सेस , महेस , गनेस , दिनेस... खञ्जन -नैन फँसे पिंजरा -छ... कानन दैं अँगूरी रहिबो , ज... आजु री , नन्दलला निकस्यो ... धूरि -भरे अति सोभित स्याम... ब्रह्म मैं ढूँढ़्यौ पुरानन... द्रौपदि औ गनिका , गज , गी... जा दिनतें निरख्यौ नँद -नं... बेनु बजावत , गोधन गावत , ... बैन वही उनकौ गुन गाइ , औ ... भजन - मानुष हौं तो वही रसखानि ब... हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है। Tags : bhajanrasakhaniभजनरसखानि राग बागेश्री - ताल तिताला Translation - भाषांतर मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँवके ग्वारन । जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो, चरौं नित नन्दकी धेनु मँझारन ॥ पाहन हौं तो वही गिरिक, जो धर्यौ कर छत्र पुरन्दर-धारन । जो खग हौं तौ बसेरो करौं मिलि, कालिंदी-कूल-कदम्बकी डारन ॥ N/A References : N/A Last Updated : December 25, 2007 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP