एक स्थान पर किसान पति-पत्नी रहते थे । किसान वृद्ध था, पत्नी जवान । अवस्था भेद से पत्नी का चरित्र दूषित हो गया था । उसके चरित्रहीन होने की बात गाँव भर में फैल गई थी ।
एक दिन उसे एकान्त में पाकर एक जवान ठग ने कहा---"सुन्दरी ! मैं भी विधुर हूँ, और वृद्ध की पत्नी होने के कारण तू भी विधवा समान है । चलो, हम यहाँ से दूर भाग कर प्रेम से रहें ।" किसान-पत्नी को यह बात पसन्द आई । वह दूसरे ही दिन घर से सारा धन-आभूषण लेकर आ गई और दोनों दक्षिण दिशा की ओर वेग से चल पड़े । अभीदो कोस ही गये थे कि नदी आ गई ।
वहाँ दोनों ठहर गये । जवान ठग के मन में पाप था । वह किसान-पत्नी के धन पर हाथ साफ़ करना चाहता था । उसने नदी को पार करने के लिये यह सुझाव रखा कि पहले वह सम्पूर्ण धन-जे़वर की गठरी बाँध कर दूसरे किनारे रख आयेगा, फिर आकर सुन्दरी को सहारा देते हुए पार पहुँचा देगा ।" किसान-पत्नी मूर्ख थी, वह यह बात मान गई । धन-आभूषणों के साथ वह पत्नी के क़ीमती कपड़े भी ले गया । किसान-पत्नी निपट नग्न रह गई ।
इतने में वहाँ एक गीदड़ी आई । उसके मुख में माँस का टुकड़ा था । वहाँ आकर उसने देखा कि नदी के किनारे एक मछली बैठी है । उसे देखकर वह मांस के टुकडों को वहीं छोड़ मछ़ली मारने किनारे तक गई । इसी बीच एक गृद्ध आकाश से उतरा और अपट कर मांस का टुकड़ा दबोच कर ले गया । उधर मछ़ली भी गीदड़ी को आता देख नदी में कूद पड़ी । गीदड़ी दोनों ओर से खाली हाथ हो गई । मांस का टुकड़ा भी गया और मछ़ली भी गई । उसे देख नग्न बैठी किसानकन्या ने कहा----"गीदड़ी ! ग्रुद्ध तेरा मांस ले गया और मछ़ली पानी में कूद गई, अब आकाश की ओर क्या देख रही है ?" गीदड़ी ने भी प्रत्युत्तर देने में शीघ्रता की । वह बोली----"तेरा भी तो यही हाल है । न तेरा पति तेरा अपना रहा और न ही वह सुन्दर युवक तेरा बना । वह तेरा धन लेकर चला जा रहा है ।"
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मगर यह कहानी सुना ही रहा था कि एक दूसरे मगर ने आकर सूचना दी कि "मित्र ! तेरे घर पर भी दूसरे मगरमच्छ़ ने अधिकार कर लिया है ।" यह सुनकर मगर और भी चिन्तित हो गया । उसके चारों ओर विपत्तियों के बादल उमड़ रहे थे । उन्हें दूर करने का उपाय पूछ़ने के लिये वह बन्दर से बोला---"मित्र ! मुझे बता कि साम-दाम-भेद आदि में से किस उपाय से अपने घर पर फिर अधिकार करुँ ।"
बन्दर ----"कृतघ्न ! मैं तुझे कोई उपाय नहीं बतलाऊँगा । अब मुझे मित्र भी मत कह । तेरा विनाश काल आ गया है । सज्जनों के वचन पर जो नहीं चलता, उसका विनाश अवश्य होता है, जैसे घंटोष्ट्र का हुआ था ।"
मगर ने पूछा़----"कैसे ?"
तब बन्दर ने यह कहानी सुनाई----