तुर (कावषेय) n. एक वैदिक ऋषि । ओल्डेनबर्ग के मत में, वैदिक काल के अंतिम चरण में यह पैदा हुआ था
[त्सी. गे. ४२.२३९] । एक तत्त्वप्रतिपादक के जरिये इसका निर्देश ब्राह्मणों मे प्राप्त है
[श. ब्रा. १०.६.५९] । कारोंती नदी पर, अग्नि की वेदिका इसके द्वारा बनाई जाने का उल्लेख शांडिल्य ने किया है
[श. ब्रा.९.५.२.१५] । जनमेजय पारीक्षित (प्रथम) का यह पुरोहित था । इसीने उसे राज्याभिषेक किया
[ऐ. ब्रा.४.२७,७. ३४, ८.३१] । इसका शिष्य यज्ञवचस राजस्तंबायन
[बृ.उ.६.५.४] । पंचविशब्राह्मण में
[पं. ब्रा. २४.१४.५] उल्लेखित तुर तथा यह एक ही होगा । इसने दूसरे जनभेजय पारीक्षित से सर्पसत्र करवाया
[भा.९.२२.३५] । दूसरे जनमेजय पारीक्षित के साथ भागवत ग्रंथ में जोडा गया इसका संबंध केवल नामसाम्य के कारण हुआ है । वास्तव में यह प्रथम जनमेजय पारीक्षित का पुरोहित था । इसलिये इसने उसे राज्याभिषेक किया था ।