वैखानस n. एक ऋषिविशेष, जो ‘व्यपोहिनी’ नामक यज्ञसंस्कार की दीक्षा ले कर उत्पन्न हुए थे । पुराणों में निम्नलिखित ऋषियों का निर्देश ‘वैखानस संप्रदायी’ ऋषि के नाते प्राप्त हैः-- १. नहुषपुत्र पृथु
[मत्स्य. २४.५१] , २. अगत्स्य,
[मत्स्य. ६१.६७] ; ३. ययातिभ्राता यति
[ब्रह्मांड. ३.६८.१४] ;
[ब्रह्म. १२.३] ;
[ह. वं. १.३०.३] ;
[मत्स्य. २४.५१] ।
वैखानस II. n. एक वैदिक ऋषिसमुदाय, जिसमें सौ ऋषि समाविष्ट थे
[ऋ. ९.६६] । ये ब्रह्मा के नाखून से उत्पन्न हुए थे
[तै. आं. १.२३] । पंचविंश ब्राह्मण के अनुसार रहस्य देवमलिम्लुच ने मुनिमरण नामक स्थान में इनका वध किया था
[प. ब्रा. १४.४.७] ;
[तै. आ. १.२३.३] । इस ऋषिसमूह में पुरूहन्मन् नामक ऋषि समाविष्ट था
[तै. आ. १४.९.२९] ।
वैखानस III. n. एक धर्मशास्त्रकार, जिसका धर्मशास्त्रविषयक ग्रंथ ‘वैखानस धर्मप्रश्र्न’ नाम से सुविख्यात है । यह ग्रंथ कृष्ण यजुर्वेदान्तर्गत धर्मसूत्र ग्रंथ माना जाता है, एवं अनंतशयनग्रंथावलि में मुद्रित किया गया है
[क्र. २८] ; इ. स. १९१३ ।
वैखानस III. n. इस ग्रंथ में वानप्रस्थाश्रम ग्रहण करने का धार्मिक विधि विस्तारपूर्वक दिया गया है, एवं वानप्रस्थियों के लिए सुयोग्य आचार भी बताये गये है । इस ग्रंथ में अनुलोम एवं प्रतिलोम विवाह से उत्पन्न संतानों के लिए सुयोग्य व्यवसाय भी बताये गये है । इसके साथ ही साथ निम्नलिखित विषयों की चर्चा भी इस ग्रंथ में प्राप्त हैः-- चार वर्ण एवं चार आश्रम के लोगों के कर्तव्य; संध्या, वैश्र्वदेव, स्नान, आचमन आदि के धार्मिक विधि, चार वर्णों के लोगों के लिए सुयोग्य व्यवसाय, आदि। ‘वैखानस धर्मप्रश्र्न’ के अनेक उद्धरण मनुस्मृति में प्राप्त हैं
[मनु. ६.२१] । इसके अतिरिक्त इसके नाम पर ‘वैखानस श्रौतसूत्र’ नामक ग्रंथ भी उपलब्ध है ।
वैखानस IV. n. चंपक नगरी एक राजा, जिसने मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के व्रत का पुण्य अपने पितरों को दे कर उनका उद्धार किया
[पद्म. उ. ३९] ।