इंद्रजित् n. लंका के राजा रावण तथा मंदोदरी का ज्येष्ठ पुत्र । नाम मेघनाद, तथापि इन्द्र को जीतने के कारण, इसका इंद्रजित् नाम पडा । इसी नाम से इसका उल्लेख सर्वत्र किया जाता है
[म. व. २७०.१२] ;
[आ.रा.सा.५३] ;
[वा.रा.उ. २९-३०] । जन्मते ही इस ने मेघ सी गर्जना की थी, इसलिये मेघनाद नाम रखा गया था
[अध्या. रा. उ. १२] ।
इंद्रजित् n. मेघनाद स्वभावतः भयंकर था । युवक होते ही इसने शुक्राचार्य की सहायता से निकुंभिला में अश्वमेध तथा अग्निष्टोम, बहुसुवर्णक राजसूय, गोमेध, वैष्णव, माहेश्वर से सात यज्ञ किये जिससे उसे शिवप्रसाद से दिव्यरथ, धनुष्यबाण, शस्त्र, तामसी माया इत्यादि प्राप्त हुई । इसने और भी यज्ञ करने का मन में विचार किया था, परंतु रावण देवताओं से द्वेष करता था, इसलिये देवताओं को हविर्भाग देना इष्ट न था । इस कारण इंद्रजित को और यज्ञ करते न बने
[वा.रा.उ.२५] ।
इंद्रजित् n. देवताओं को जीतने के लिये रावण स्वर्गलोक गया था । वहां रावण के मातामह का वध हुआ तथा पराजय के चिन्ह दिखाई देने लगे । मेघनाद ने आगे बढ कर युद्ध किया । पहले तो उसने इंद्रपुत्र जयंत को पराजित किया तथा इंद्र को शस्त्रास्त्रों से जर्जर कर, उसे बांध लिया तथा लंका ले आया । सारे देवता ब्रह्मदेव को साथ ले कर लंका गये तथा मेघनाद को, इंद्र को छोड देने के लिये कहने लगे । तब इसने अमरत्व मांगा । आकारवाले सारे पदार्थ नाशवान हैं इसलिये अमरत्व दुर्लभ है ऐसा ब्रह्मदेव ने कह कर दूसरा वर मांगने को कहा, इस पर उसने वर मांगा----“जब भी मैं अग्नि में हवन करुं तब अग्नि में से अश्वसहित दिव्य रथ निकला करे तथा जब तक उस रथ पर आरुढ रहूं तब तक मैं विजयी एवं अमर रहूं” । यह वर दे कर ब्रह्मदेव इंद्र को मुक्त करा कर इंद्रपद पर स्थापित किया । उस दिन से मेघनाद का इन्द्रजित् नाम पडा
[वा.रा.उ.२९-३०] ।
इंद्रजित् n. रावण ने सीता को लंका में लाया । तब उसका पता लगाने के लिये राम की आज्ञा से मारुति लंका में आया । उसने अशोकवन विध्वंस कर, रावण पुत्र अक्ष तथा अनेक राक्षसों को मारा । रावण के दुःख के निवारणांर्थ इंद्रजित् ने वहॉं जा कर, मारुति को ब्रह्मास्त्र से बद्ध कर रावण की सभा में लाया । वास्तव में ब्रह्मास्त्र का मारुति पर कुछ भी परिणाम नहीं हुआ था यह बात इंद्रजित को भी समझ गयी थी । मारुति ने रावण की सभा देखने, तथा उसका भाषण सुनने के उद्देश्य से मैं बद्ध हुआ हूं ऐसा दर्शाया । धर्मबल की सहायता से इंद्रजित् ने यह भी जान लिया था कि, मारुति को अमरत्व प्राप्त है । रावण की सभा में हनुमान को जला देने की सलाह उसके मंत्रियों ने दी परंतु बिभीषण ने सलाह दी कि, वानरों को पूछं प्रिय होती है, अतः हनुमानजी की पूंछ जलाई जाये
[वा.रा.सुं. ४८.५२] ।
इंद्रजित् n. बिभीषण ने रावण को सलाह दी कि, सीता को राम के पास पहुंचा कर राम से मित्रता कर लें । यह बात किसी को नहीं रुची । उस समय इंद्रजित् ने बिभीषण की बहुत भर्त्सना की । इस पर बिभीषण ने इंद्रजित् को युद्ध से परावृत्त होने का उपदेश दिया ।
इंद्रजित् n. सीता की खोज लगाने पर मारुति किष्किंधा गया । रामचंद्रजी सुग्रीव की वानरसेनासहित लंका आये तब इंद्रजित् ही प्रथम युद्ध करने आगे आया । अंगद से उसका युद्ध हुआ, जिसमें यह अदृश्य हो कर लडता रहा तथा रामलक्ष्मण को नागपाश में बांध कर, सारी वानर को मूर्च्छित कर लंका चला गया
[वा. रा. यु.४५] ।
इंद्रजित् n. देवांतक, नरांतक आदि रावणपुत्र, कुंभकर्ण, महापार्श्व, महोदर इ. जब मारे गये, तब रावण बहुत दुखित हुआ । उस समय इंद्रजित् उसे सांत्वना दे कर युद्ध करने चल पडा । पहले यह शस्त्रास्त्रों को अभिमंत्रित करने निकुंभिला गया । युद्धभूमि पर आ कर राम की सेना को गुप्त रुप से कष्ट देने लगा तथा इस युद्ध में उसने सडसठ करोड वानरों को एक प्रहर में मार डाला राम एवं लक्ष्मण को मूर्च्छित कर, लंका वापस चला गया
[वा.रा.यु. ७३] ।
इंद्रजित् n. मकराक्ष की मृत्यु के बाद, रावण ने इसे फिर से, युद्ध करने के लिये भेजा । राम की सेना को बहुत कष्ट दिये । मायावी सीता को निर्माण कर उसे रथ पर बैठाया, जो दीनवाणी में राम राम कह रही थी । फिर उसका उसने वध किया, जिससे राम तथा अन्य लोग दुखित हुए
[वा.रा.यु.८१] ।
इंद्रजित् n. बिभीषण ने सबको सांत्वना दी कि, यह सारी घटना मायावी है । तपश्चात् इंद्रजित् निकुंभिला जा कर हवन करने लगा । इस कार्य में कोई विघ्न उपस्थित न हो इसलिये उसने बहुत से राक्षसों को रक्षा करने को रखा । बिभीषण की सूचनानुसार रामचंद्रजी ने लक्ष्मण तथा हनुमान को, वानर सेना दे कर, निकुंभिला भेजा । उन लोगों ने राक्षसोंका संहार कर यज्ञभंग किया । इंद्रजित् का यज्ञ पूर्ण होनेवाला ही था अतः उसने ध्यान नहीं दिया, परंतु जब वानरों ने उसके शरीर को छिन्नविच्छिन्न करना प्रारंभ किया, तब विवश होकर वह क्रोधित हो कर उठा, तथा वानरों को उसने मार भगाया । अदृश्य होने के लिये वहॉं उसका वटवृक्ष था । उस बाजू वह जाने लगा, तब बिभीषण ने हनुमानादि वानरों को उसे रोकने के लिये कहा । बिभीषण के कारण यह सारा हो रहा है जान कर, इंद्रजित् उसका वध करने के लिये प्रवृत्त हुआ । स्वकीयों से युद्ध करने प्रवृत्त हुए बिभीषण की उसने निर्भर्त्सना की ।
इंद्रजित् n. यह संवाद चल ही रहा था कि, लक्ष्मण ने बीच में पड इंद्रजित से युद्ध चालू कर दिया । पहले सारथी को मार गिराया । तब इंद्रजित स्वतः सारथ्य तथा युद्ध दोनों करने लगा । उसी समय प्रमाथी, रभत, शरभ तथा गंधमादन इन चार वानरों ने इसके चार घोडे मार डाले । तब इंद्रजित दूसरे रथ पर बैठ कर आया देख बिभीषण ने लक्ष्मण को सावधानी से युद्ध करने कहा । इंद्रजित् तथा लक्ष्मण का घमासान युद्ध तीन दिनों तक हुआ । इंद्रजित् मरता नहीं है इसलिये लक्ष्मण ने ऐद्रास्त्र हाथ में ले, प्रतिज्ञा की कि यदि श्रीराम धर्मात्मा तथा सत्य प्रतिज्ञ होंगे, तो इस बाण से इंद्रजित का किरीटकुंडलयुत सिर जमीन पर आ गिरा
[म. व. २७२-२७३] । राक्षस सेना पीछे हट गयी तथा भाग कर लंका में जा इंद्रजित् की मृत्यु का समाचार रावण को दिया । वानरों ने उसका सिर उठा लिया और राम को दिखाने के लिये सुबल पर्वत की ओर ले गये
[वा.रा.यु. ८६-९२] । सासससुर की आज्ञा से इंद्रजित् की स्त्री सुलोचना ने सहगमन किया
[आ.सार.११] ।
इंद्रजित् II. n. दनुपुत्र दानवों में से एक ।