इंद्रद्युम्न n. एक राजर्षि
[म.स.८१९] । पुण्य समाप्त हो जाने के कारण मृत्युलोक में आया, तथा अपनी कीर्ति नष्ट हुई या नहीं, यह जानने के लिये मार्कडेय, हिमालय पर रहनेवाले प्रावारकर्ण उलूक, इंद्रद्युम्न सरोवर के नाडीजंघ बक तथा उसी सरोवर में रहनेवाले अकूपार कछवे की तरह के एक से एक वृद्ध लोगों के पास जा कर उसकी कीर्ति उन्हें मालूम है या नहीं यह पूछा । अंत में अकूपार कछुवे ने बताया कि, इंद्रद्युम्न की कीर्ति एक बडे यज्ञकर्ता के नाते प्रसिद्ध है । कीर्ति रहते, एक मनुष्य का अस्तित्व रहता है यह बताने के लिये मार्कडेय ने यह कथा पांडवों को सुनाई
[म.व.१९१] ।
इंद्रद्युम्न II. n. कृतयुग का विष्णुभक्त राजा । इसकी राजधानी उज्जयिनी थी । यह ओढ्र देश के पुरुषोत्तम क्षेत्र में जगन्नाथ जी के दर्शन के लिये गया, तब जगन्नाथ रेत में गुप्त हो गये । तब यह नीलाद्रि पर जा कर प्रायोपवेशन करनेवाला था कि, दर्शन होगा, ऐसी आकाशवाणी हुई । इसने अश्वमेध कर नृसिंह का उत्कृष्ट मंदिर बनवाया । इसने नारद ने लायी हुई नृसिह की मूर्ति की स्थापना ज्येष्ठ शुल्क द्वादशी के दिन स्वाति नक्षत्र के समय की । राजा को स्वप्न में नीलमाधव का दर्शन हुआ । आकाशवाणी हुई कि, समुद्र में जड वाली एक सुंगधित वृक्ष की चार मूर्तियां बनाओ १. विष्णु, बलराम, ३. सुदर्शन (रक्तवर्ण), ४. सुभद्रा (केशरिया), तदनुसार वै. शु. अष्टमी को पुण्यनक्षत्र के समय उसने मूर्तियों की स्थापना की
[स्कंद.२.२७-२९] । समुद्र पर से बह कर आने वाली लकडियों में से विशेष महत्त्वपूर्ण लकडियों से मूर्ति बनाने के लिये इसे दृष्टांत हुआ । एक लकडी से कृष्ण की काले रंग की, बलराम की सफेद रंग की तथा सुभद्रा की पीले रंग की मूर्ति बना कर, इसने जगन्नाथपुरी में उनकी स्थापना की
[नारद.२.५४] ;
[ब्रह्म ४४-५१] ।
इंद्रद्युम्न III. n. मगध देश का राजा । इसकी स्त्री का नाम अहल्या । वह इंद्र नामक ब्राह्मण के साथ व्यभिचार करती थी । उसे अनेक दंड दिये । अंत में उसका स्थूल शरीर जला देने पर भी, उसकी मानसिक तन्मयता नष्ट नहीं हुई
[यो.वा.३.८९-९०] ।
इंद्रद्युम्न IV. n. पांडय देश का राजा । यह एक बार तप कर रहा था तब वहां अगस्त्य ऋषि आये परंतु ध्यानस्थ राजा उन्हें देख न सका इस कारण, मुनि को क्रोध हुआ । उसने, ‘तू मत्त हो गया है इसलिये मदोन्मत्त हाथी हो’ ऐसा उसे शाप दिया जिसे सुन कर राजा ने उनकी प्रार्थना की । तब उसने उश्शाप दिया कि, मगर जब तुझे पानी में पकडेगा तब विष्णु के द्वारा तेरी मुक्ति होगी । देवल मुनि के शाप से हुहु नामक गंधर्व त्रिकूट पर्वत के सरोवर में मगर बनकर रहता था । उसने इस हाथी को पानी में पकडा । विष्णु ने तब उस मगर को मार कर हाथी को मुक्त किया
[पद्म. उ. १३२] ;
[भा. ८-४] ;
[आ.रा.सार.९] ।
इंद्रद्युम्न V. n. (सो. निमि.) इसे ऐंद्रद्युम्न नामक एक पुत्र था ।
इंद्रद्युम्न VI. n. रुक्मी के पक्ष का एक क्षत्रिय । रुक्मिणीस्वयंवर के समय कृष्ण ने इसे सुदर्शन चक्र से मारा
[म.स.६१.६ कुं.] ।
इंद्रद्युम्न VII. n. धर्मराज जब बकदाल्भ्य के यहां गया था तब उसने अन्य ब्राह्मणों सहित इसका सम्मान किया । पांडव इस समय द्वैत वन में थे
[म.व.२७.२२] ।
इंद्रद्युम्न VIII. n. विष्णु पुराण के अनुसार नाभि वंश के सुमति का पुत्र ।