ऋषि वंश III. - आत्रेय वंश n. अत्रिऋषि के द्वारा स्थापित किये गये इस वंश की जानकारी पौराणिक साहित्य में प्राप्त है
[ब्रह्मांड. ३.८.७३-८६] ;
[वायु. ७०.६७ - ७८] ;
[लिंग. १.६३.६८ - ७८] । पौरव राजवंश से संबंधित इस वंश की जानकारी ब्रह्म एवं हरिवंश में प्राप्त है
[ब्रह्म. १३.५ - १४] ;
[ह. वं. ३१.१६५८, १६६१ - १६६८] । इस वंश के ऋषि एवं गोत्रकारों की नामावलि मत्स्य में दी गयी है
[मत्स्य. १९७] । पौराणिक साहित्य में आत्रेय वंश के आद्य संस्थापक अत्रि ऋषि एवं प्रभाकर को एक माना गया है, एवं उसे सोम का पिता कहा गया है । इस वंश के निम्नलिखित ऋषि विशेष सुविख्यात माने जाते हैं : - १. प्रभाकर आत्रेय ( अत्रि ऋषि, ) जिसका विवाह पौरव राजा भद्राश्व ( रौद्राश्व ) एवं धृताची के दस कन्याओं के साथ हुआ था; २. स्वस्त्यात्रेय, जो प्रभाकर के दस पुत्रों का सामूहिक नाम था, एवं उनसे ही आगे चलकर, आत्रेयवंश के ऋषियों का जन्म हुआ था; ३. दत्त आत्रेय; ४. दुर्वासस् । निम्नलिखित आत्रेय ऋषियों का निर्देश सूक्तद्रष्टा के नाते प्राप्त है : - १. अत्रि; २. अर्चनानस्; ३. श्यावाश्व; ४. गविष्ठिर; ५. बल्गूतक ( अविहोत्र, कर्णक ); ६. पूर्वातिथि । पार्गिटर के अनुसार, श्यावाश्व एवं बल्गूतक ये दोनों एक ही व्यक्ति के नाम थे ।
ऋषि वंश III. - आत्रेय वंश n. निम्नलिखित ऋषियों का निर्देश आत्रेय वंश के गोत्रकार के नाते प्राप्त है : - १. श्यावाश्व; २. मुद्गल ( प्रत्वस् ); ३. बलारक ( वाग्भूतक ववल्गु ); ४. गविष्ठिर
[मत्स्य. १४५.१०७ - १०८] ।