कैकयी n. केकय देश के राजा अश्वपति की कन्या, एवं राजा दशरथ की कनिष्ठ किंतु अत्यंत प्रियपत्नी । इस्का पुत्र भरत । भरत के लिये के लिये ही इसने राम को वनवस दिलाया, जिससे दशरथ की मृत्यु हुई । राजा दशरथ देवदानवों के युद्ध में, देवताओं की सहायता करने गये । उस समय रथ के पहिये की कील टूट गयी । कैकयी ने अपना हाथ वहॉं लगा कर राजा को बचाया । राजा ने इसे दो बर मॉंगने को कहा
[ब्रह्म.१२३] । इससे पता चलता है, कि यह युद्ध में रही होगी (कलहा देखिये)। राम के यौवराज्यभिषेक के दिन समीप आये । गांव सजाने लगे, तब अभिषेक की बात मंथरा ने इसे बतायी । दशरथ ने कैकेयी के महल में सतत रहते हुए भी, इसे अभिषेक की बात का पता लगने नहीं दिया था । मंथरा के बता देने के बाद, राजा ने इसे, अभिषेक का समाचार भिजवाया । रामयौवरान्यभिषेक का समाचार मंथरा से सुन कर, इसने आनंद प्रदर्शित किया । भरत तथा राम मेरे लिये समान है यों कह कर, समाचार लानेवाले मंथरा को पुरस्कार देना चाहा । मंथरा ने इसके मन में जहर भर दिया । उसने कहा, ‘रोने के समय में क्यों हँसती हो?’
[वा.रा.अयो.७.३] । राम के ऐश्वर्य तथा भरत की हीनदशा का चित्र, मंथरा नें कैकेयी के सामने प्रस्तुत किया । इस कारण सामान्य स्त्रीस्वभावसुलभ इसका मन मत्सर से भडक उठा । देवासुरसंग्राम के समय से बचे हुए वरदानों की याद उसीने दिलायी । मंथरा की सलाह के अनुसार, कैकेयी ने दशरथ को दो वरदानों का स्मरण दिला कर, राम के लिये वनवास तथा भरत के लिये राज्य मॉंगा । राना ने ये दोनों वरदान दिये । यथार्थ बात तो यह थी कि, कैकेयी के पिता ने पहले से ही यह व्यवस्था कर रखी थी । बूढे राजा को लडकी व्याहते समय, कैकर्या कें पिता ने यह शर्त रखी थी कि, इसके पुत्र को राजगद्दी गिले । दशरथ ने यह शर्त स्वीकार भी की थी, परंतु इस बात का कैकेयी को पता न था । भरत ने कैकेयी की बहुत निर्भर्त्सना की, जिसके कारण इसका सारा षड्यंत्र नष्ट हो गया । भरत ने इसका वर्णन निम्नलिखित विशेषणों से किया है