खांडिक्य n. (सू. निमि.) भागवतमत में मितध्वज पुत्र । यह क्षत्रिय था । इसे खांडिल्यजनक कहा गया है केशिध्वज इसक चचेरा भाई था । खांडिक्य कर्ममार्ग में अत्यंत प्रवीण था । केशिध्वज आत्मविद्याविशारद था । एक दूसरे को जीतने की इनकी इच्छा हुई । केशिध्वज ने खांडिक्य को राज्य के बाहर भगा दिया । यह मंत्री तथा पुरोहित के साथ अरण्य में चला गया
[भा.९.१३.२१] । इधर ज्ञाननिष्ठ केशिध्वज ने कर्मबंधन से मुक्त होने के लिये, बहुत से यज्ञ किये । एक बार वह यज्ञ कर रहा था, तब निर्जन वन में एइक व्याघ्र ने उसकी गाय को मारा । उसने ऋत्विजों से इसका प्रायश्चित्त पूछा, जिन्होंने उसे कशेरु के पास भेजा । कशेरु ने भृग के पास तथा भृग ने शुनक के पास प्रायश्चित पूछने को कहा । अंत में शुनक के कहने पर वह अरण्य में खांडिक्य के पास गया । खांडिक्य ने उसे देखते ही उसकी निर्भर्त्सना की एवं उसके वध के लिये तत्पर हुआ । परंतु केशिध्वज ने सारी स्तिति निवेदन की । तब खांडिक्य ने यथाशास्त्र धेनुवध का प्रायश्चित बताया । केशिध्वज ने तदनुसार यज्ञभूमि के स्थान पर जा कर, यज्ञ सफल बनाया । खांडिक्य को गुरुदक्षिणा देना शेष रहा गया । अतः केशिध्वज खांडिक्य के पास आया । खांडिक्य पुनः उसका वध करने को उद्यत हुआ । केशिध्वज ने बताया कि, ‘वह वध करने नहीं आया है । अपितु गुरुदक्षिणा देने आया है । आप गुरुदक्षिणा मॉंग’। खांडिक्य ने सब दुःखों से मुक्ति पाने का मार्ग उससे पूछा । केशिध्वज ने इसे देह की नश्चरता तथा आत्मा के चिरंतनत्व का महत्व समझाया, तथा कहा कि, ‘सारे दुखों का नाश योग के सिवा किसी अन्य मार्ग से नहीं हो सकता’। तदनंतर खांडिक्य ने योगमार्ग का कथन करने के लिये कहा । केशिध्वज ने उसे परब्रह्म का उपदेश कर, मोक्षपद के पाद ले जानेवाला योग बताया
[विष्णु.६.६-७] ;
[नारद, १.४६-४७] ; केशिन् दार्भ्य देखिये।