पुरुरवस (ऐल) n. प्रतिष्ठान (प्रयाग) देश का सुविख्यात राजा । सुविख्यात सोमवंश की प्रतिष्ठापना करनेवाले राजा के रुप में, यह पुरुरवस् प्राचीन भारतीय इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण राजा माना जाता है । यह एवं इसके ऐल वंश का राज्य यद्यपि प्रतिष्ठान में था, फिर भी यह स्वयं हिमालय प्रदेश का रहनेवाला था । पुरुरवस् राजा सूर्यवंशज के इक्ष्वाकु राजा के समकालीन था । यह स्वयं अत्यंत पराक्रमी था । इसने पृथ्वी के सात द्वीप जीतकर उन पर अपना राज्य शापित कर, सौ अश्वमेध यज्ञ किये थे । इसके राज्य के उत्तर में अयोध्या जैसा बलिष्ठ राज्य था, एवं दक्षिण में युद्धशास्त्र में विख्यात करुष लोग थे । इस कारण इसका राज्य पूर्व एवं उत्तरपूर्व दिशाओं में स्थित गंगाके दोआब, मालवा एवं पूर्व राजपूताना प्रदेशों तक फैला था । पुरुवरस् के मृत्यु के समय, यह सारा प्रदेश ऐल साम्राज्य में समाविष्ट हो गया । पुरुरवस् को ‘ऐल’ (इडा नामक यज्ञीय देवी का वंशज) उपाधि प्राप्त थी । यद्यपि पुरुरवस् का निर्देश वैदिक ग्रंथों में बार बार प्राप्त है, फिर भी इसके ऐल उपाधि इसे पुराणकालीन राजा के रुप में स्थापित करती है । उर्वशी एवं पुरुरवस् का सुप्रसिद्ध ‘प्रणयसंवाद’ वैदिक ग्रंथों में प्राप्त है
[ऋ.१०.९५] ;
[श. ब्रा.११.५.१] । ऋग्वेद में इसे ‘ऐल’ कहा गया है । यह स्वयं क्षत्रिय हो कर भी वैदिक सूत्रकार एवं मंत्रकार था, जिसका निर्देश ऋग्वेद एवं पुराणों में प्राप्त हैं
[ऋ.१०.९५] ;
[मस्त्य. १४५.११५-११६] ;
[ब्रह्मांड.२.३२. १२०-१२१] । अग्नि के द्वारा पुरुरवस् पर अनुग्रह किये जाने का निर्देश भी ऋग्वेद में प्राप्त हैं
[ऋ.१.३४] । पौराणिक ग्रंथों के अनुसार पुरुरवस् बुध राजा को इला से उत्पन्न हुआ था
[म.आ.७०.१६] ;
[मत्स्य. १२. १५] ;
[पद्म सृ.८,१२] ;
[ब्रह्म.१०] ;
[दे. भा. १.१३] ;
[भा.९.१५] ;
[ह. वं.१.११.१७] । यह सोमवंश का मूल पुरुष है । इसको ऐल कहा है
[वायु.९१.४९-५०] । यह काशी का राजा था । इसके द्वारा प्रयाग प्रांत पर भी राज्य करने का उल्लेख मिलता है
[वा.रा.उ.२५] ;
[ह.वं.२.२६.४९] । यह सप्तद्वीप का राजा था, तथा इसने सौ अश्वमेध किये थे
[मत्स्य. २४.१०.-१३] । महाभारत में, इसे त्रयोदश समुद्रद्वीपों का अधिपति कहा गया है
[म.आ.७०.१७] । एक बार देवसभा में नारद ने पुरुरवा के गुणो का गान किया था । यह सुनकर उर्वशी पुरुरवा पर मोहित हो गयी । उसी समय भूतल पर जाने का शाप मित्रावरुणों ने उसे दिया । उर्वशी भूतल पर आई । पृथ्वी पर आते ही केशी नामक दैत्य ने उसे देख लिया, तथा उसका हरण किया । पुरुरवा ने उर्वशी को केशी से मुक्त कराया । पश्चात् इसने उर्वशी के रुप पर मोहीत हो कर, उससे विवाह करने की इच्छा प्रदर्शित की । उर्वशी ने इसकी बात तो मान ली, किंतु उसके साथ तीन विचित्र शर्ते रक्खीः
पुरुरवस (ऐल) n. ब्राह्मण लोगों के साथ पुरुरवस् द्वारा किये विरोध का कथाभाग, ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण माना जाता है । वैवस्वत मनु के समय ब्राह्मणोंतथा क्षत्रियों में सहकार्य था । ऐल पुरुरवस् के समय ब्राह्मण-क्षत्रियों में सहकार्य था । ऐल पुरुरवस् के समय ब्राह्मण-क्षत्रियों में विरोध पैदा हुआ । ऐल पुरुरवस ब्राह्मणों के साथ विरोध करने लगा । ब्राह्मणों की दौलत पुरुरवस् ने हठ से जब्त कर ली । सनत्कुमर ने ब्रह्मलोक से आकर, पुरुरवस् से ब्राह्मणविरोध न करने के लिये कहा । फिर भी पुरुरवस् ने एक न सुनी । ब्राह्मणों ने लोभवश पुरुरवस् ने उर्वशी के मध्यस्थता से गंधर्वलोग की सहायता प्राप्त की । गंधर्वलोक से अग्नि को प्राप्त कर पुरुरवस् ने अपना कार्य फिर शुरु किया
[म.आ.७०.१२०-२१] । इस का तात्पर्य यह होता है कि, स्थानीय लोगों के विरोध की शान्त करने के लिये, पुरुरवस् ने अपने मूलस्थान गंधर्वलोक से सहायता ली, तथा अपना राज्यशासन सुव्यस्थित किया । पुरुरवस् के पितृव्य वेन नामक राजा का भी ब्राह्मणों ने वध किया था । धनलोभ, के कारण अत्याचार करने से इसका नाश होने का निर्देश, कौटिल्य ने भी किया है
[अर्थशास्त्र पृ. २२] ।
पुरुरवस (ऐल) II. n. दीप्ताक्षवंश का एक कुलपांसान राजा । कुलपांसन होने के कारण, अपने सुहृद एवं बांधवों के साथ इसका नाश हुआ
[म.उ.७२.१५] ।