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संवर्त आंगिरस n. एक ऋषि, जो ब्रह्मपुत्र अंगिरस् ऋषि के तीन पुत्रों में से एक था । इसके अन्य दो भाइयों के नाम बृहस्पति एवं उतथ्य थे [म. आ. ६०.४-५] । महाभारत में अन्यत्र इसके भाइयों के नाम बृहस्पति, उतथ्य, पयस्य, शान्ति, घोर, विरूप एवं सुधन्वन् दिये गये है [म. अनु. ८५.३०-३१] । इसे ‘वीतहव्य’ नामांतर भी प्रापत था [यो. वा. ५.८२-९०] ।
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संवर्त आंगिरस n. एक वैदिक सूक्तद्रष्टा एवं प्राचीन यज्ञकर्ता के नाते ऋग्वेद में इसका निर्देश प्राप्त है [ऋ. १०. १७२, ८.५४.२] । ऐतरेय ब्राह्मण इसे मरुत्त आविक्षित राजा का पुरोहित कहा गया है [ऐ. ब्रा. ८.२१] ; मरुत्त आविक्षित ३. देखिये ।
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संवर्त आंगिरस n. अपने भाई बृहस्पति से यह शुरू से ही अत्यंत ईर्ष्या रखता था, जिस कारण ‘मरुत्त-बृहस्पति संघर्ष’ में इसने सदा ही मरुत्त की ही सहायता की। यहाँ तक कि, बृहस्पति के द्वारा अधुरा छोड़ा गया मरुत्त राजा का यज्ञ भी इसने यमुना नदी के किनारे ‘प्लक्षावतरणतीर्थ’ में यशस्वी प्रकार से पूरा किया [म. शां. २९.१७] । मरुत्त के साथ इसका स्नेहसंबंध होने के अन्य निर्देश भी प्राप्त है [म. आश्र्व. ६-७] ।
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संवर्त आंगिरस n. यह महान् तपस्वी था, एवं जिस स्थान पर इसने तपस्या की थी, वह आगे चल कर ‘संवर्तवापी’ नाम से सुविख्यात हुआ [म. व. ८३.२८] । इसकी अत्यधिक तपस्या के कारण समस्त देवता भी इसके अधीन रहते थे । मरुत्त के यज्ञ के लिए सुवर्ण की आवश्यकता होने पर, इसने हिमालय के सुवर्णमय मुंजवत् पर्वत से विपुल सुवर्ण शिवप्रसाद से प्राप्त किया [म. आश्र्व. ८] ;[मार्क. १२६. ११-१३] । इसने मरुत्त के यज्ञ के समय, साक्षात् अग्नि देव को जलाने की धमकी दे दी थी [म. आश्र्व. ९.१९] । इंद्र का वज्र इसने स्तंभित किया था, एवं इस प्रकार उसे मरुत्त के यज्ञ में आने पर विवश किया था, [म. आश्र्व. १०] ।
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