प्रैयमेध n. आचार्यो का एक सामूहिक नाम, जिन्होंने अंगराज के पुरोहित आत्रेय उद्मय के लिये यज्ञ किया था
[ऐ.ब्रा.८.२२] । तैत्तिरीय ब्राह्मण में तीन प्रैयमेधों का निर्देश प्राप्त है
[तै.ब्रा.२.१.९.१] । उनमें से एक केवल एक समय, सुबह ही ‘अग्निहोत्र’ होम करता था; दूसरा सुबहशाम दो बार, तथा तीसरा सुबह, दोपहर, तथा शाम तीनों समय ‘अग्निहोत्र’ होम करता था। पदचात्, इन तीनों में यह तय पाया गया कि, उक्त होम दिन में केवल दो बार ही किया जाये । तैत्तिरीय ब्राह्मण में भी यह कथा इसी प्रकार दी गयी है । यजुर्वेद संहिताओं में इन्हें सभी यज्ञगायनों का विज्ञ कहा गया है
[का.सं.६.१.] ;
[मै. सं.१.८] । गोपथ ब्राह्मण में इन्हें भारद्वाज कहा गया है
[गो. ब्रा. १.३.१५] । ऋग्वेद के सिंधुक्षित् नामक सूक्तद्रष्टा को प्रियमेधपुत्र के अर्थ से ‘प्रैयमेध’ पैतृक प्रदान किया गया है ।