बृबु (तक्षन) n. ऋग्वेद निर्दिष्ट एक उदार दाता, जो पणि लोग का अधिपति था
[ऋ.६.४५.३१-३३] । बृबु तक्षन् एवं प्रस्तोक सार्ञ्जय राजाओं से भरद्वाज ऋषि को विपुल उपहार प्राप्त होने का निर्देश ऋग्वेद एवं सांख्यायन श्रौतसूत्र में प्राप्त है
[सां.श्रौ.१६.११.११] । यह स्वयं पणि अतएव हीन जति का होने के कारण, इसके द्वार कोई ऋषि दान न लेता था । किंतु भरद्वाज ऋषि अपने परिवार के साथ निर्जन अरण्य में रहता था, एवं उसे जीविका का कोई भी साधन उपलब्ध नहीं था । इस कारण बृबु से गायों का दान (प्रतिग्रह) लेते हुए भी, उए भरद्वाज को कोई दोष न लगा
[मनु.१०.१०७] संभवतः मनुस्मृति में निर्दिष्ट बृधु तक्षन् एवं बृबु तक्षन् एक ही व्यक्ति होंगे । बृबु स्वयं एक पणि था । किंतु‘पाणियों का उन्मूलन करनेवाला’ ऐसा भी आशय ऋग्वेद के निर्देश से ग्रहण किया जा सकता है । यदि ऐसा ही है, तो ‘पणि’ का अर्थ ‘व्यापारी लोग’ हो कर, बृबु उनका राजा होना संभवनीय है ।