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भृग्वंगिरस्

   
Script: Devanagari

भृग्वंगिरस्     

भृग्वंगिरस् n.  अथर्ववेद जाननेवाले ऋषिसमुदाय के लिए प्रयुक्त सामूहिक नाम [गो.ब्रा.१.३.१] ;[श.ब्रा.१.२.१.१३] । यह ऋषि समुदाय प्रायः भृगु एवं अंगिरस् वंशीय ऋषियों से बना हुआ था । ऋग्वेद में कई स्थानों पर इनका निर्देश अथर्वन् लोगो के साथ किया गया है [ऋ.८.३५.३, १०.१४.६] । किंतु भृगु, अथर्वन् एवं अंगिरस् ये विभिन्न वंश के लोग थे, ऐसा भी निर्देश ऋग्वेद में प्राप्त है [ऋ.१.१३.६] । गोपथ ब्राह्मण के अनुसार, अथर्वन, एवं अंगिरस् ये भृगु के नेत्र माने गये है । यही कारण है कि, भृग्वंगिरस्, अथर्ववेद का ही नामांतर माना जाता है [गो. ब्रा.१.२.२२] । अथर्वन् सांस्कारिक ग्रंथों में भी ‘भृग्वंगिरसः’ यह शब्द अथर्ववेद के लिए प्रयुक्त हुआ हैं [ब्लूमफिल्ड अथर्ववेद ९.१०.१०७] । याज्ञवल्क्य स्मृति में भृग्वंगिरस् देवं अथर्वागिरस् ये शब्द ‘अथर्ववेद’ अर्थ से प्रयुक्त हुये है, एवं हरएक राजपुरोहित इस वेदविद्या में प्रवीण होना चाहिये, ऐसा कहा गया है । मनु के अनुसार, अथर्ववेद में मंत्रविद्या को अधिकतर प्राधान्य दिये जाने के कारण, उस वेद को एवं उसे जाननेवाले लोगों को समाज गिरी हुयी नजर से देखा करता था [मनु.११.३३] । शतपथ ब्राह्मण में वसिष्ठ को ‘अथर्वनिधि’ कहा गया है, एवं अथर्ववेद का निर्देश ‘क्षत्र’ नाम से किया गया है [श.ब्रा.१४.८.१४.४]

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