मन्दपाल n. एक विद्वान महर्षि, जिसे मृत्यु के बाद पितृऋण को न उतारने के कारण स्वर्ग की प्राप्त ने हुयी थी ।
मन्दपाल n. मन्दपाल धर्मज्ञों में श्रेष्ठ तथा कठोरव्रत का पालन करनेवाला था । यह ऊर्ध्वरेता मुनियों के मार्ग आश्रय लेकर सदा वेदों के स्वाध्याय, धर्मपालन तथा तपस्या में संलग्न रहता था । अपनी तपस्या पूर्ण कर देहत्याग कर, जब यह पितृलोक पहुँचा, तब इसे सत्कर्मो के फलानुसार स्वर्ग की प्राप्ति न हुयी । तब इसने देवताओं से इसका कारण पूछा । देवताओं ने बताया, ‘आपके उपर पितृऋण है । जब तक वह पितृऋण तुम्हारे द्वारान उतारा जायेगा, तब तक स्वर्ग की प्राप्ति असम्भव है। इस ऋण को उतारने के लिए तुम्हें सन्तान उत्पन्न करके अपनी वंशपरम्परा को अविच्छन्न बनाने का प्रयत्न करना चाहिये’। यह सुनकर शीघ्र संतान उत्पन्न करने के लिए, इसने शार्ङ्गक पक्षी होकर जरितृ नामवाली शार्ङ्गिका से संबंध स्थापित किया । उसके गर्भ से चार ब्रह्मवादी पुत्रों को जन्म देकर, यह लपिता नामवाली यक्षिणी के पास चला गया । बच्चे अपनी मॉं के साथ ही खाण्डववन में रहे । जब अग्निदेव ने उस वन को जलाना आरम्भ किया, उस समय इसने अग्नि की स्तृति के, तथा अपने पुत्रों की जीवनरक्षा के लिए वर मॉंगा । तब अग्निदेव ने ‘तथास्तु’ कह कर इसकी प्रार्थना स्वीकार की
[म.आ.२२०] । इसने अपने बच्चों की रक्षा करने की बात अपनी दूसरी पत्नी लपिता से कहीं, किन्तु उसने इससे ईर्ष्यायुक्त वचन कहे, एवं इसे अपने पुत्रों के पास जाने से रोक लिया । तब इसने स्त्रियों के सौतिया डाह रुपी दोष का वर्णन करते हुए बताया कि, वह चाहे जितना सत्य कहे, यह उस पर विश्वास नहीं कर सकता । पश्चात् यह अपनी पूर्वपत्नी जरितृ, तथा पुत्रों के पास गया । किन्तु वे इसे पहचान न सके । बाद को इसने जरितृ तथा अपने पुत्रों के साथ देशान्तर में प्रस्थान किया
[म.आ.२२२] ; जरितृ देखिये ।