मैत्रेयी n. एक सुविख्यात ब्रह्मवादिनी स्त्री, जो याज्ञवल्क्य महर्षि की दो पत्नियों में से एक थी
[बृ.उ.४.५.१] । बृहदारण्यक उपनिषद में इसका अनेक बार उल्लेख प्राप्त है, जहॉं इसके एवं याज्ञवल्क्य ऋषि के संवाद उद्धृत किये गये हैं
[बृ.उ.२.४.१-२,४.५.१५] । यह संभवतः ब्रह्मवाह के पुत्र याज्ञवल्क्य की पत्नी होगी ।
मैत्रेयी n. याज्ञवल्क्य महर्षि ने संन्यास लेने पर, उसकी जायदाद में से उसके अध्यात्मिक ज्ञान का हिस्सा मैत्रेयी ने मॉंगा । उस समय मैत्रेयी एवं याज्ञवल्क्य के बीच हुए संवाद का निर्देश ‘बृहदारण्यक उपनिषद’ में प्राप्त है
[बृ.उ.४.५.१-६] । मैत्रेयी ने कहा, ‘मुझे अध्यात्मिक ज्ञान की आकांक्षा इसलिए है किं, साक्षात् सुवर्णमय पृथ्वी प्राप्त होने पर भी मुझे अमरत्व प्राप्त नही होगा, जो केवल अध्यात्मज्ञान से प्राप्त हो सकता है । जिस संपत्ति से मुझे अमरत्व प्राप्त नहीं होगा, उसे ले कर मैं क्या करुं’ (येनांह नामृता स्यागों, किमहं कुर्यागों) । फिर याज्ञवल्क्य ने इसे जवाब दिया, ‘जो तुम कह रही हो वह ठीक है । तुम्हारे इन विचारों से मैं प्रसन्न हूँ । इसी कारण, मैं तुम्हे आत्मज्ञान सिखाना चाहता हूँ । आत्मा का अध्ययन एवं मनन करने से ही संसार के हर एक वस्तु का ज्ञान प्राप्त होता है । इसी कारण, इस सर्वश्रेष्ठ ज्ञान का साक्षात्कार मैं तुम्हें करना चाहता हूँ’। इस संवाद में आत्मा शब्द का अर्थ ‘विश्व का अन्तीम सत्य’ लिया गया है । बृहदारण्यक उपनिषद में अन्यत्र याज्ञवल्क्य एवं मैत्रेयी के बीच हुए अन्य एक संवाद का निर्देश प्राप्त है
[बृ.उ.४.५.११-१५] । मैत्रेयी याज्ञवल्क्य से पूछती है, ‘मनुष्य जब बेहोश होता है, तब उसकी आत्मा का क्या हाल होता है ? वह परमात्मा से विलग होता है, या वैसा ही रहता है’? उसपर याज्ञवल्क्य ने जवाब दिया, ‘बेहोश अवस्था में भी आत्मा एवं परमात्मा एक ही रहते है, क्यों कि, आत्मा ‘अगृह्य’ ‘अशीर्य’ एवं ‘असंग’ रहता हैं’। याज्ञवल्क्य के द्वारा आत्मज्ञान की प्राप्त होने पर, अपनी सारी जायदाद अपनी सौत कात्यायनी को दे कर, यह याज्ञवल्क्य के साथ वन में चली गयी ।