लाट्यायन (श्रौतसूत्र) n. इस ग्रंथ के कुल दस प्रपाठक अध्याय है । उनमें से पहले सात प्रपाटकी में सोंयज्ञो की; आठवे एवं नववे प्रपाठक के पूर्वार्ध में विभिन्न ‘एकाह’ यज्ञों की; नववे प्रपाठक के उत्तरार्ध में ‘अहीन’ यज्ञों की; एवं दसवे प्रपाठक में ‘सत्र’ यज्ञो की जानकारी प्राप्त है । वेवर के अनुसार, इस ग्रंथ का रचनाकाल अन्य वेदों के श्रौतसूत्री से काफी पूर्वकालीन था । इस ग्रंथ पर उपलब्ध भाष्यो में अग्निस्वामिन् का भाष्य विशेष सुविख्यात है ।
लाट्यायन (श्रौतसूत्र) n. ‘लाटयायन श्रौतसूत्र’ में निम्नलिखित पूर्वाचायों का निर्देश प्राप्त है स्थविर गौतम, शौचिवृक्षि, क्षैरकलंभि, कौत्स, वार्षगण्य, भाण्डितायन, लामकायन, राणायनीपुत्र, तथा शाटयनि एवं शालंकायनि परंपरा के विविध आचार्य । इनमें से शौचित्रृक्षि आचार्य का निर्देश पाणिनि के अष्टाध्यायी में भी प्राप्त है
[पा. सू. ४.१.८१.]