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परिक्षित् n. -एक कुरुवंशीय वैदिक राजा । अथर्ववेद में इसके राज्य की समृद्धी एवं शान्ति का गौरवपूर्ण निर्देश किया गया है [अ. वे.२०.१२७.७-१०] । अथर्ववेद के जिन मंत्रों में इसकी प्रशस्ति है, उन्हें ब्राह्मण ग्रंथों में ‘पारिक्षित्य मंत्र’ कहा गया हैं [ऐ. ब्रा.६.३२.१०] ;[कौ. ब्र.३०.५] ;[गो. ब्रा.२.६.१२] ;[सा.श्रौ..१२-१७] ;[सां. ब्रा.३०.५] । वैदिक साहित्य में जनमेजय राजा का पैतृक नाम ‘पारिक्षित’ दिया गया हैं । वह उपाधि उसे वैदिक साहित्य में निर्दिष्ट ‘परिक्षित्’ राजा के पुत्र होने से मिली होगी । महाकाव्य में इसे ‘प्रतिश्रवस्’ का पितामह एवं ‘प्रतीप’ का प्रपितामह कहा गया है । त्सिमर के अनुसार, अथर्ववेद में निर्दिष्ट ‘प्रातिसुत्वन’ एवं ‘प्रतिश्रवस’ दोनों एक ही थे [त्सि.आ.ले. १३१] । इस राजा की प्रशंसा करने के लिये, अन्य देवताओं, विशेषतः अग्नि के साथ, इसकी स्तुति की गयी है ।
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परिक्षित् [parikṣit] m. m.
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N. N. of a king, son of Abhimanyu and father of Janamejaya.
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परि-क्षित् mfn. mfn. dwelling or spreading around, surrounding, extending (as अग्नि, heaven and earth &c.), [RV.] ; [AV.] ; [AitBr.]
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