वेताल n. पिशाचों का एक समूह, जो रुद्रगणों में शामिल था । ये लोग युद्धभूमि में उपस्थित रह कर मानवी रक्त एवं मांस भक्षण करते थे
[भा. २.१०.३९] । देवता मान कर इनकी पूजा की जाती थी, जहाँ सर्वत्र इन्हें शिव के उपासक ही माना जाता था
[मत्स्य. २५९.२४] ।
वेताल II. n. रुद्रशिव का एक पार्षद, जो उसके द्वारपाल का काम करता था । एक बार शिव एवं पार्वती क्रीडा कर रहे थे, उस समय क्रीडा के उन्मत्त वेश में पार्वती सहजवश द्वार पर आयी। उसे देख कर यह काममोहित हुआ, एवं उनका अनुनय करने लगा। इसका यह धाष्टर्य देख कर पार्वती अत्यंत क्रुद्ध हुई, एवं उसने इसे पृथ्वी पर मनुष्य बनने का शाप दिया। पार्वती के शाप के कारण, इसने ‘वेताल’ के रूप में पृथ्वी पर जन्म लिया। तदुपरांत अपने पार्षद के प्रति भक्तवत्सलता से प्रेरित हो कर, शिव एवं पार्वती भी महेश एवं शारदा नाम से पृथ्वी पर अवतीर्ण हुए
[शिव. शत. १४] ।
वेताल II. n. इस ग्रंथ में इसके भाई का नाम भैरव बताया गया है, एवं इन दोनों को चंद्रशेखर राजा एवं तारावती के पुत्र कहा गया है । अपने पूर्वजन्म में ये भृंगी एवं महाकाल नामक शिवदूत थे, जिन्हें पार्वती के शाप के कारण पृथ्वीलोक में जन्म प्राप्त हुआ था । इनके पिता चंद्रशेखर ने इन्हें राज्य न दे कर इनके अन्य तीन भाइयों को वह प्रदान किया। इस कारण ये अरण्य में तपस्या करने गये, एवं शिव की उपासना करने लगे। आगे चल कर वसिष्ठ की कृपा से, इन्हें संध्याचल पर्वत पर शिव का दर्शन हुआ, एवं कामाख्या देवी की उपासना से इन्हें शिवगणों का आधिपत्य भी प्राप्त हुआ। इनके वंश में उत्पन्न लोगों का ‘वेतालवंश’ भी कालिका पुराण में दिया गया है ।
वेताल II. n. स्कंद की अनुचरी एक मातृका
[म. श. ४५.१३] ।