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शिखंडिन्

   
Script: Devanagari

शिखंडिन्     

शिखंडिन् n.  (सो. अज.) पांचाल देश के द्रुपद राजा का एक पुत्र, जो पहले ‘शिखंडिनी’ नामक कन्या के रूप में उत्पन्न हुआ था । पश्चात् स्थूणाकर्ण नामक यक्ष की कृपा से यह पुरुष बन गया [म. उ. १९२-१९३] । महाभारत में अन्यत्र यह शिव की कृपा से पुरुष बनने का निर्देश प्राप्त है । इसे ‘याज्ञसेनि’ नामान्तर भी प्राप्त था ।
शिखंडिन् n.  इसके मातापिता इसका स्त्रीत्व छीपाना चाहते थे, जिस कारण उन्होंनें एक पुत्र जैसा ही इसका पालनपोषण किया । इतना ही नहीं, जवान होने पर दशार्ण राजा हिरण्यवर्मन् की कन्या से उन्होनें इसका विवाह संपन्न कराया । इसके पत्‍नी को इसके स्त्रीत्व का पता चलते ही, उसने अपने पिता के पास यह समाचार पहुँचा दिया । अपना जमाई स्त्री है, यह ज्ञात होते ही हिरण्यवर्मन् अत्यंत क्रुद्ध हुआ, एवं इस प्रकार धोखा देनेवाले द्रुपद राजा को जड़मूल से उखाड़ फेंकने के लिए उद्यत हुआ। इसी दुरावस्था में यह घर से भाग कर वन में चला गया, जहाँ स्थूणाकर्ण यज्ञ की कृपा से, पुनः लौटाने की शर्त पर इसे पुरुषत्त्व की प्राप्ति हुई। इसी पुरुषत्व के आधार से इसने अपने श्र्वसुर हिरण्यवर्मन् राजा की चिंता दूर की। पश्चात् स्थूणाकर्ण यक्ष को कुबेर का शाप प्राप्त होने के कारण, शिखंडिन् का पुरुषत्त्व आमरण इसके पास ही रहा [म. उ. १९०-१९३] ; किंतु फिर भी स्त्रीजन्म का इसका कलंक सारे आयुष्य भर इसका पीछा करता रहा।
शिखंडिन् n.  भारतीय युद्ध में यह पांडवपक्ष का ‘महारथ’, एवं एक अक्षौहिणी सेना का सेनाप्रमुख था । यह युद्धनिपुण एवं उच्च श्रेणी का व्यूहरचनातज्ञ था, जो विद्या इसने द्रोणाचार्य से प्राप्त की थी । पांचाल देश के बारह हज़ार वीरों में से, छः हजार वीर इसीके ही सैन्य में समाविष्ट थे [म. द्रो. २२.१६०* पंक्ति. ७-८] । इसके रथ के अश्व भूरे वर्ण के थे, जो इसे तुंबरु ने प्रदान किये थे । इसका ध्वज ‘अमंगल’ वर्ण का था [म. भी. १०८.१९-२०]
शिखंडिन् n.  भारतीय युद्ध के पहले दस दिनों में, भीष्म ने अपने पराक्रम के कारण पांडवसेना में हाहाःकार मचा दिया । उस समय भीष्म ने स्वयं ही शिखंडिन् को आगे कर युद्ध करने की सलाह पांडवो को दी (भीष्म देखिये) । यह जन्म से स्त्री था, जिस कारण धर्मयुद्ध के नियमानुसार इससे युद्ध करना भीष्म निषिद्ध मानता था । भारतीय युद्ध के दसवे दिन, यह भीष्म के सम्मुख खड़ा होते ही, भीष्म ने अपने शस्त्र नीचे रख दिये, जिसे सुअवसर समझ कर अर्जुन ने भीष्म का वध किया [म. भी. ११४.५३-६०]
शिखंडिन् n.  भारतीय युद्ध के अठारहवें दिन हुए रात्रियुद्ध में अश्वत्थामन् ने इसका वध किया [म. सौ. ८.६०] । इसकी मृत्यु का दिन पौष्य अमावस्या माना जाता है (भारतसावित्री) ।
शिखंडिन् n.  महाभारत के कुंभकोणम् संस्करण में, शिखंडिन् भीष्मवध के लिए कारण किस प्रकार बन गया, इसकी चमत्कारपूर्ण कथा दी गयी है । काशिराज की कन्या अंबा ने भीष्मवध की प्रतिज्ञा की थी, जिस हेतु उसने कार्तिकेय के द्वारा एक दिव्य माला प्राप्त की थी । वह माला प्रदान करते समय, कार्तिकेय ने उसे वर दिया था कि, जो मनुष्य वह माला परिधान करेंगा, वह भीष्मवध के कार्य में सफलता प्राप्त करेगा। पश्चात् अंबा ने वह माला द्रुपद के राजभवन में फेंक दी, जो आगे चल कर शिखंडिन् ने परिधान की। इसी दैवी माला के कारण, शिखंडिन् भीष्मवध के कार्य में सफल हुआ [म. द्रो. २.१६० पंक्ति ७-८]
शिखंडिन् (याज्ञसेन) n.  एक आचार्य, जो केशिन् दाल्भ्य राजा का पुरोहित था [कौ. ब्रा. ७.४] । केशिन् दाल्भ्य के द्वारा किये गये यज्ञ में, इसने कई आचार्यों के साथ वादविवाद किया था । यज्ञसेन का वंशज होने के कारण, इसे ‘याज्ञसेन’ पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा ।
शिखंडिन् II. n.  एक शिवावतार, जो सातवे वाराह कल्पांतर्गत वैवस्वत मन्वंतर के अठारहवें युगचक्र में उत्पन्न हुआ था । हिमालय पर्वत में स्थित ‘शिखंडिन्’ नामक शिखर पर यह शिवावतार अवतीर्ण हुआ। इसके निम्नलिखित चार शिष्य थेः-- १. वाचःश्रवस्; २. रुचीक; ३. शावाश्र्व; ४. यतीश्र्वर [शिव. शत. ५]

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