हिरण्यकेशिन् n. एक सुविख्यात आचार्य, जो कृष्ण यजुर्वेद के तैत्तिरीय शाखान्तर्गत हिरण्यकेशिन् नामक शाखा का सूत्रकर्ता माना जाता है । इसके द्वारा प्रणीत शाखा खाण्डवीय शाखा का पोटविभाग माना जाता है । इसका सही नाम सत्यषाढ था, जिस कारण इसके द्वारा प्रणीत श्रौतसूत्र ‘सत्याषाढ श्रौतसूत्र’ नाम से प्रसिद्ध है । आद्य कल्प में यह ब्रह्मदत्त नाम से सुविख्यात था
[वैजयंती. १२-१४] । स्कंदोपपुराण के अनुसार, इसने सह्याद्रि के पूर्व में स्थित परशुराम क्षेत्र में हरणकाशि नदी के तट पर कड़ी तपस्या की, जिस कारण यह अनेकाने सूत्रग्रंथों की रचना कर सका ।
हिरण्यकेशिन् n. इसके द्वारा विरचित ‘सत्याषाढ श्रौतसूत्र’ सुविख्यात है, जिसके निम्नलिखित उपभाग समाविष्ट हैः- १. सत्याषाढ धर्मसूत्र [अ. २६-२७]; २. सत्याषाढ गृह्यसूत्र [अ. १९-२०]; ३. शुल्बसूत्र [अ. २५] । इस सूत्र पर महादेव दिक्षित् के द्वारा ‘वैजयंती’ नामक भाष्य प्राप्त है । इस सूत्रग्रंथ का अंतिम भाग भरद्वाज सूत्रों से लिया गया है । इस सूत्र का आपस्तंब सूत्रों से काफ़ी साम्य प्रतीत होता है ।
हिरण्यकेशिन् (लोग) n. इस शाखा के लोग सह्याद्रि के पश्चिम् में स्थित चिपलून आदि गॉंवों में रहते है । इन लोगों का निर्देश पाँचवी शताब्दी इ. स. के. कोंगणी राजाओं के ताम्रपट में प्राप्त है । इससे प्रतीत होता है कि, हिरण्यकेशिन् आचार्य, एवं इसके द्वारा विरचित सूत्रों का रचनाकाल पाँचवी शताब्दी इ. स. पूर्व में कहीं होगा
[इन्डि. अँन्टि. ४.१३६] ।