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पु.
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एक पक्षी ; सोनकावळा ; कुक्कुडकुंभा .
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भरद्वाज n. एक सुविख्यात वैदिक सूक्तद्रष्टा, जिसे ऋग्वेद के छठवे मण्डल के अनेक सूक्तों के प्रणयन का श्रेय दिया गया है [ऋ.६.१५.३.१६.५, १५.४.३१ ४] । भरद्वाज तथा भरद्वाजों का स्तोत्ररुप में भी, उक्त मण्डल में निर्देश कई बार आया है । अथर्ववेद एवं ब्राह्मण ग्रन्थों में भी इसे वैदिक सूक्तद्र्ष्टा कहा गया है [अ.वे.२.१२.२,४.२९.५] ;[क.स.१६.९] ;[मै.सं.२.७.१९] ;[वा.सं.१३.५५] ;[ऐ. ब्रा.,६.१८.८.३] ;[तै. ब्रा.३.१०.११.१३] ;[कौ. ब्रा.१५.१,२९.३] । भरद्वाज ने अपने सूक्तों में बृबु, बृसय एवं पारावतों का निर्देश किया है [ऋ.८.१०.८] । पायु, रजि, सुमिहळ साय्य, पेरुक एवं पुरुणीथ शातवनेय इसके निकटवर्ती थे । पुरुपंथ राजा का भरद्वाज के आश्रयदाता के रुप में निर्देश प्राप्त है [ऋ.९.६७. १-३, १०.१३७.१] ; सर्वानुक्रमणी;[बृहद्दे.५.१०२] । हिलेब्रान्ट के अनुसार, भरद्वाज लोग सृंजयों के साथ भी संबद्ध थे [वेदिशे माइथालोजी १.१०४] । सांख्यायन श्रौतसूक्त के अनुसार, भरद्वाज ने प्रस्तोक सार्ञ्जय से पारितोषिक प्राप्त क्रिया था [सां.श्रौ.१६.११] । कई विद्वानों के अनुसार, ये सारे लोग मध्य एशिया में स्थित अक्रोसिया एवं ड्रँजियाना में रहनेवाले थे । किंतु इसके बारे में प्रमाणित रुप से कहना कठिन है ।
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एक ऋषि . [ सं . ]
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