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नलकूबर n. देवों के धनाध्यक्ष कुबेर का पुत्र [म.स.१०.१८] । इसे मणिग्रीव नामक ज्येष्ठ बंधु था । एकबार ये दोनों भाई अपने स्त्रियों के साथ गंगानदी के तट पर कैलास पर्वत के उपवन में क्रीडा कर रहे थे । सुरापान की नश अके कारण, इन में से किसी के शरीर पर वस्त्र न था । उसी मार्ग से नारद जा रहे थे । नारद को देखते ही शाप के भय से, इसकी स्त्रियों ने बाहर आ कर अपने अपने वस्त्र परिधान कर लिये । परंतु नलकूबर तथा मनिग्रीव इतने बेहोश थे कि, उन्होंने देवर्षि की कुछ भी मर्यादा न रखी । नग्नस्थिति में इन्हें देखते ही इन दोनों मर्यादा न रखी । नग्नस्थिति में इन्हें देखते ही इन दोनों को अच्छा सबक सिखाने का विचार नारद ने किया । अपने शरीर पर वस्त्र है या नहीं, इसका भी होश जिन्हें नहीं है, उनके लिये वृक्षयोनि ही ठीक है, ऐसा विचार नारद ने किया, एवं इन्हे सौ वर्षातक वृक्ष होने का शाप दिया । नारद की कृपा से, उस स्थिति में भी इन्हें अपने पूर्वजन्म का स्मरण रहा , तथा कृष्ण के सान्निध्य से इनकी मुक्ति हो गयी । कृष्णावतार में नंदगोप के घर के द्वार में स्थित ‘अर्जुनवृक्षों’ का जन्म इन्हें प्राप्त हुआ था । एक बार नटखट कृष्ण की शैतानी से तंग आकर, यशोदा ने कृष्ण को ऊखल से बॉंध दिया । कृष्ण ऊखल को खींचतें खींचते धीरे धीरे चलने लगा ।चलते चलते ऑंगन में खडे अर्जुनवृक्ष की जोडी के बीच, वह ऊखल अटक गया । फिर कृष्ण ने ऊखल जोर से खींचते ही दोनो वृक्ष आमूलाग्र गिर पडे तथा नल कूबर एवं मणिग्रीव वृक्षयोनि नि से मुक्त हो गये [भा.१०.९-१०] ;[ह.वं.२.७.१४-१९] ; पौलस्त्य देखिये । एक बार इसकी प्रेयसी रंभा इसे मिलने जा रही थी । राह में, रावण ने रंभा पर बलात्कार किया । फिर इसने रावण को शाप दिया, ‘तुम्हें न चाहनेवाली किंसी भी स्त्री बलात्कार करते ही तुम्हारी मृत्यु हो जायेगी’ [वा.रा.उ.२६] ; रावण देखिये ।
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नल—कूबर m. m.
N. of a son of कुबेर, [MBh.]
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noun कुबेर का एक पुत्र
Ex. नारद के श्राप से नलकूबर और उसका भाई अर्जुनवृक्ष हो गए थे ।
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noun कुबेरचा एक पुत्र
Ex. नारदच्या शापाने नलकूबर आणि त्याचा भाऊ हे दोघे अर्जुनवृक्ष झाले होते.
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