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विश्र्वरूप n. वरुणसभा का एक राक्षस [म. स. ९.१४] ।
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विश्र्वरूप (त्रिशिरस् त्वाष्ट्र) n. एक आचार्य, जो देवों का पुरोहित था । किन्तु प्रारंभ से हीं यह देवों से भी अधिक असुरों पर प्रेम करता था, जिससे प्रतीत होता है कि, यह स्वयं देव न हो कर असुर ही था ।
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विश्र्वरूप (त्रिशिरस् त्वाष्ट्र) n. इस साहित्य में इसे त्रिशिरस् (तीन सिरोंवाला) दैत्य कहा गया है [ऋ. १०.८] । यह त्वष्ट्ट का पुत्र था, जिस कारण इसे ‘त्वाष्ट्र’ कहा गया है [ऋ. १०.७६] । यद्यपि यह असुरों से संबंधित था, फिर भी इसे देवों का पुरोहित कहा गया, है [तै. सं. २.५.१] । इंद्र के द्वारा किये गये इसके वध की कथा तैत्तिरीयसंहिता में प्राप्त है । यद्यपि यह देवों का पुरोहित था, फिर भी यज्ञ का अधिकतर हविर्भाग यह असुरों को देता था । इस कारण इंद्र ने अपने वज्र से इसके तीनों सिर काट कर इसका वध किया। इसका वध करने के कारण, इंद्र को ब्रह्महत्या का पातक लग गया। अपने इस पातक के इंद्र ने तीन भाग किये, एवं वे पृथ्वी, वृक्ष एवं स्त्रियों में बाँट दिये। इस कारण, पृथ्वी में सड़ने का, वृक्षों में टूटने का, एवं स्त्रियों में रजस्त्राव होने का दोष निर्माण हुआ। इसी कारण रजस्वला स्त्री से संभोग करना त्याज्य माना गया एवं ऐसे संभोग से दोषयुक्त संतति उत्पन्न होने लगी [तै. सं. ५.५.१] । आगे चल कर, त्रित ने इसका वध किया, एवं इंद्र की ब्रह्महत्या के पातक से मुक्तता की [श. ब्रा. १.२.३.२] ।
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विश्र्वरूप (त्रिशिरस् त्वाष्ट्र) n. इन ग्रंथों में इसे प्रजापति त्वष्ट्ट का द्वितीय पुत्र माना गया है, एवं इसे वृत्र से समीकृत किया गया है [भा. ६.५] ;[म. उ. ९.४] ;[शां. २०१.१८] । इसकी माता का नाम विरोचना (वैरोचनी, रचना अथवा यशोधरा) था, जो असुरराज प्रह्लाद की कन्या, एवं विरोचन दैत्य की छोटी बहन थी [भा. ६.६.४४] ;[वायु. ८४.१९] ;[ब्रह्मांड. ३.१.८१] ;[गणेश. १.६६.१२] ।
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