अजमीढ n. (सो.पूरु.) विकुंठन तथा दाशार्ही सुदेवा का पुत्र । उसे को कैकेय्यी, नागा, गांधारी, विमला तथा ऋक्षा आदि पत्नीयॉं थी । इसकी २४०० पुत्र हुए । उन मे वंश चलाने वाला संवरण था । संवरण वैवस्वती तपती का पुत्र कुरु ।
[म.आ.९०.३८.४०] ।
अजमीढ II. n. (सो.पूरु) सुहोत्र और ऐक्ष्वाकी का ज्येष्ठ पुत्र । इसकी पत्नी के नाम धूमिनी, नीली और केशिनी, धूमिनी का ऋक्ष, नीली के दुःपन्त तथा परमेष्ठिन, केशिनी के जह्रु, जन तथा रुपिन् ऐसे पुत्र थे । ये सब पांचाल थे
[म.आ.८९.२६-२९] । वायुमें हस्ति के तीन पुत्र में इस ज्येष्ठ कहा है । इसकी नीलिनी, धूमिनी और केशिनी तीन पत्नियॉं थीं । इसका वंश चलाने वाले तीन पुत्र थे । उनके नाम ऋक्ष, बृहदिषु (बृहद्वसु) और नील । बृहदिपु से अजमीढ वंश प्रारंभ होता है ।
[वायु.९९.१७०] अजमीढ से, पांचाल देश में, पांचालवंशीय पुरुवंश का स्वतंत्र राज आरंभ हुआ । इस कारण इस वंश का नाम अजमीढवंश हो गया । पांचाल के दोन भाग हुए । दक्षिण पांचाल तथा उत्तर पांचाल । दक्षिण पांचाल में अजमीढपुत्र बृहदिषुअ तथा उत्तर पांचाल में अजमीढपुत्र नील राज करनें लगे । बृहदिषु से भल्लाटपुत्र जनमेजय तक के वंश का उल्लेख,अनेक पुराणों में मिलता है । इस में प्रायः वीस पुरुष है । जनमेजय के पश्चात, उत्तर पांचाल का नीलवंशीय पृषतपुत्र राजा द्रुपदु, दक्षिण पांचाल का शासक बन गया । द्रुपद की कन्या द्रौपदी, पांडवो की पत्नी थी तथा पुत्र धृष्टद्युम्न, भारतीय युद्ध में पांडवों का सेनापति था । भारतीय युद्ध के लिये, द्रुपद ही पांडव पक्ष का प्रधान तथा कुशल नियोजक माना जाता है । दक्षिण पांचाल की राजधानी कांपिल्य थी तथा उत्तर पांचाल की राजधानी अहिच्छत्र । नीलवंशीय पृषतपुत्र द्रुपद के समय दोनों पांचाल राक एकत्रित हुए । द्रोण तथा द्रुपद के युद्ध के पश्चात्, उत्तरपांचाल का अधिपति द्रोण हो गया । भारतीय युद्ध के पश्चात,पांचाल राज का नाम कही नही मिलता । मूलतः क्षत्रिय होते हुए भी आगे चल कर,इस वंश के लोग ब्राह्मण हुए
[वायु.९१.११६] अजमीढ, अंगिरा गोत्र में प्रवर और मंत्रकार है
[ऋ.४.४३-४४] ।