गांधारी n. गांधार देशाधिपति सुबल की कन्या
[म.आ.९०.३१] । इसने बाल्यावस्था में रुद्र की आराधना की थी, जिस कारण इसे सौ पुत्र होंगे ऐसा वरदान मिला । कुरुवंश में संतति का अभाव था । इसी कारण भीष्म आदि लोगों ने धृतराष्ट्र के लिये, गांधारी की मॉंग की
[म.आ.१०३. ९-१०] । तदनुसार सुबल ने धृतराष्ट्र को गांधरी दी । यह महापतिव्रता थी । धृतराष्ट्र अंधा था । इसलिये इसने भी अपनी ऑखों पर पट्टी बॉंध कर अंधत्व अंगिकार किया । यह परपुरुष का दर्शन भी न करती थी
[म.आ.१०३.१३] । वर के अनुसार इसके उदर में गर्भ रहा । इसे समाचार मिला कि, कुंती को युधिष्ठिर उत्पन्न हुआ है । जल्दी पुत्र हो, इसलिये इसने बलपूर्वक अपना गर्भ बाहर निकाला
[म.आ.१०७.१०-११] । उससे मृतप्राय सा मांस का पिंड बाहर आया । इतने में वहॉं व्यास आये । यह सारा हाल देख कर उन्हें इस पर बडी दया आई । उन्होंने गर्भ के सौ टुकडे बनवा दिये । पश्चात् घृतकुंभ मँगवा कर, उसमें गर्भ रखने का आदेश दिया । कहा कि, ‘यथा’। तदनुसार योग्य समयपर गर्भ सजीव हुआ
[म.आ.१०७.१२-१४] । इसी समय कुंती को भीम उत्पन्न हुआ
[म.आ.११४.१४] । गांधारी को दुर्योधन आदि सौ कौरव तथा दुःशला नामक कन्या ये एक सौ एक संताने हुई (धृतराष्ट्र देखिये) । दुर्योधन ने पांडवों से शत्रुता प्रारंभ की, तब गांधारी ने हितोपदेश दिया । उसका कुछ भी परिणाम नही हुआ
[म.उ.१२७] । दुर्योधन की मृत्यु के समय, कृष्ण ने इसे सांत्वना दी
[म.श.६२] । गांधारी ने रणक्षेत्र में आ कर, पुत्रशोक से संतप्त हो, सब के शव (प्रेत) देखे । कृष्ण को शाप दिया कि, छत्तीस वर्षो में तेरे कुल का क्षय होगा । तब कृष्ण ने हँस कर कहा कि, यह मुझे मालूम ही था
[म.स्त्री. २६.४१-४३] । इसके बाद व्यास आदि लोगों ने इसका सांत्वन किया । दुर्योधनवध तथा दुःशासन का रक्तप्राशन, इस विषय पर भीम से इसका संवाद हुआ । तब भीमसेन ने कहा, ‘दुःशासन का लहू दांत तथा ओठों के अंदर बिल्कुल ही नहीं गया’
[म.स्त्री. १४.१४] । एक बार इसकी संतापपूर्ण दृष्टि धर्म के पैरों की अंगुलियों पर पडी । इससे उसकी अंगुलियों के अत्यंत सुंदर नख विद्रूप हो गये
[म.स्त्री. १५.७] । द्रौपदी तथा कुन्ती अपने अपने पुत्रों के लिये शोक कर रहीं थीं । इसने उनकी सांत्वना की
[म.स्त्री.१५-१७] । इसके बाद, गांधारी धृतराष्ट्र के साथ पांडवों के पास ही रहने लगी । युधिष्ठिर अत्यंत सुस्वभावी था । इन्हें किसी भी चीज की कमी नहीं होने देता था । किंतु भीम हमेशा कठोर भाषण करता था । इससे वैराग्य उत्पन्न हो कर, गांधारी धृतराष्ट्र, कुन्ती तथा विदुर के साथ वन में गई । वहॉं इसने पति के साथ देहत्याग किया
[भा. १.१३.२७,९.२२-२६] ;
[म.आश्व.४५] ।
गांधारी II. n. क्रोष्टु की पत्नी । इसे सुमित्र अथवा अनमित्र नामक एक पुत्र था
[ब्रह्म.१४.२,३४] ;
[ह.वं. २.३४.१] ।
गांधारी III. n. अजमीढ की तीसरी पत्नी ।
गांधारी IV. n. कश्यप तथा सुरभि का कन्या ।
गांधारी V. n. कृष्णपत्नी । इसने अंत में अग्निप्रवेश किया
[म.मौ.७] ।