Dictionaries | References क कालनिर्णयकोश - युगगणनापद्धति Script: Devanagari See also: कालनिर्णयकोश , कालनिर्णयकोश - ग्रंथों का कालनिर्णय , कालनिर्णयकोश - मन्वन्तर कालगणनापद्धति , कालनिर्णयकोश - व्यक्तियों का कालनिर्णय , कालनिर्णयकोश - सप्तर्षियुग की कल्पना Meaning Related Words Rate this meaning Thank you! 👍 कालनिर्णयकोश - युगगणनापद्धति प्राचीन चरित्रकोश | Hindi Hindi | | n. जो सत्य, त्रेता, द्वापर, कलि आदि युगों की कल्पना पर अधिष्ठित है।युगगणनापद्धति n. पौराणिक साहित्य में प्राप्त युगगणना पद्धति के अनुसार, ब्रह्मा का एक दिन एक हजार पर्यायों में विभाजित किया गया है, जिनमें से हर एक पर्याय निम्नलिखित चार युगों से बनता है : -एक उपपत्ति n. सुप्रसिद्ध इतिहासकार जयचंद्र विद्यालंकार के अनुसार, यद्यपि पौराणिक साहित्य में निर्दिष्ट युगों की कल्पना शास्त्रीय एवं ऐतिहासिक है, फिर भी वहाँ दी गयी हर युग की कालमर्यादा अतिशयोक्तिपूर्ण है । इसी कारण जयचंद्रजी ने कृतयुग, त्रेतायुग, एवं द्वापरयुग के पौराणिक कालविभाजन की समीक्षा राजनैतिक दृष्टि से करने का सफल प्रयत्न किया है । इस समीक्षा में उन्होंने वैवस्वत मनु से ले कर भारतीय युद्ध तक ९४ पीढीयों का परिगणन करनेवाले पार्गिटर के सिद्धान्त को ग्राह्य माना है, एवं उसी सिद्धान्त को भारतीय युद्ध तक कृत, त्रेता एवं द्वापरयुग समाप्त होने के जनश्रुति से मिलाने का प्रयत्न उन्होंने किया है । इन दोनों सिद्धान्तों को एकत्रित कर वे सगर राजा (४० वीं पीढी) के साथ कृतयुग की समाप्ति, राम दाशरथि (६५ वीं पीढी) के साथ त्रेतायुग का अंत, एवं कृष्ण (९५ वीं पीढी) के देहावसान के साथ द्वापरयुग की समाप्ति ग्राह्य मानते हैं । [वायु. ९९ - ४२९] । उनका यहीं सिद्धांत निम्नलिखित तालिका में ग्रथित किया गया है : -युग - कृतयुगपीढीयाँ - १ - ४० पीढीयाँऐतिहासिक कालमर्यादा - प्रारंभ से सगर राजा तककालमर्यादा - ४० x १६ = ६४० वर्षयुग - त्रेतायुगपीढीयाँ - ४१ - ६५ पीढीयाँऐतिहासिक कालमर्यादा - सगर राजा से राम दाशरथि तककालमर्यादा - २५ x १६ = ४०० वर्षयुग - द्वापरयुगपीढीयाँ - ६६ - ९५ पीढीयाँऐतिहासिक कालमर्यादा - रामदशरथि से कृष्ण तककालमर्यादा - ३० x १६ = ४८० वर्षयुग - कलियुगपीढीयाँ - -ऐतिहासिक कालमर्यादा - भारतीय युद्ध के पश्चात्कालमर्यादा - (१०५० वर्ष)कुल पीढीयाँ - ९५पहले तीन युगों की कालमर्यादा - १,५२० वर्षजयचन्द्रजी के अनुसार, कृत, त्रता एवं द्वापर युगों की कुल कालावधि क्रमशः ६५०, ४००, एवं ४७५ साल मानी गयी है । भारतीय युद्ध का काल १४२० ई. पू. निर्धारित करते हुए वे कृतयुग, त्रेतायुग, एवं द्वापरयुग का कालनिर्णय निम्नप्रकार करते हैं : -कृतयुग - २९५० ई. पू. - ५३०० ई. पू.त्रेतायुग - २३०० ई. पू. - १९०० ई. पू.द्वापारयुग - १९०० ई. पू. - १४२५ ई. पू.पौराणिक साहित्य में निर्दिष्ट वंशावलियाँ संपूर्ण न हो कर उनमें केवल प्रमुख राजा ही समाविष्ट किये गये हैं । इस बात पर ध्यान देते हुए, केवल उपलब्ध राजाओं के पीढीयों के परिगणन के आधार पर कालनिर्णय का कौनसा भी सिद्धांत व्यक्त करना अशास्त्रीय प्रतीत होता है । फिर भी पौराणिक जानकारी को तर्कशुद्ध एवं ऐतिहासिक चौखट में बिठाने का एक प्रयत्न इस नाते जयचंद्रजी का उपर्युक्त सिद्धान्त महत्त्वपूर्ण प्रतीत होता है । Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP