Dictionaries | References क कालनिर्णयकोश - मन्वन्तर कालगणनापद्धति Script: Devanagari See also: कालनिर्णयकोश , कालनिर्णयकोश - ग्रंथों का कालनिर्णय , कालनिर्णयकोश - युगगणनापद्धति , कालनिर्णयकोश - व्यक्तियों का कालनिर्णय , कालनिर्णयकोश - सप्तर्षियुग की कल्पना Meaning Related Words Rate this meaning Thank you! 👍 कालनिर्णयकोश - मन्वन्तर कालगणनापद्धति प्राचीन चरित्रकोश | Hindi Hindi | | n. जो स्वायंभुव, स्वारोचिष आदि चौदह मन्वन्तरों की कल्पना पर अधिष्ठित है;मन्वन्तर कालगणना पद्धति n. पौराणिक साहित्य में उपलब्ध अन्य एक कालपरिगणनापद्धति ‘ मन्वन्तर पद्धति ’ नाम से सुविख्यात है । इस परिमाणपद्धति के अनुसार, कुल चौदह मन्वन्तर दिये गये हैं, जिनके अधिपति राजाओं को मनु कहा गया है । चौदह मन्वन्तर मिल कर एक कल्प बन जाता है । मन्वन्तर कालगणना पद्धति के परिमाण पौराणिक साहित्य में निम्नप्रकार दिये गये है : -२ त्रुटि = १/२ निमेष.२ आधा निमेष = १ निमेष.२५ निमेष = १. काष्ठा.३० काष्ठा = १ कला.३० कला = १ मुहूर्त.३० मुहूर्त = १ अहोरात्र.२५ अहोरात्र दिन = १ पक्ष.२ पक्ष = १ महीना.६ महीने = १ अयन.२ अयन = १ वर्ष४३ लक्ष २० हजार वर्ष = १ पर्यायमहायुग = जिसमें कृत, त्रेता, द्वापर एवं कलि के प्रत्येकी एक युग समाविष्ट है ।७१ पर्याय = १ मन्वन्तर.१४ मन्वन्तर = १ कल्प. [भवि. ब्राह्म. २] ;[मार्क. ४३] ;[विष्णु. १.३] ;[मत्स्य. १४२] ;[स्कंद. ६.१५४] ; ७.१.१०५;[पद्म. सृ. ३] ।पौराणिक साहित्य के अनुसार, वराहकल्प में से स्वायंभुव, स्वारोचिष, उत्तम, तामस, रैवत एवं चाक्षुष नामक छः मन्वन्तर अब तक हो चुके है, एवं वर्तमान काल में वैवस्वत मन्वन्तर शुरु है । इस मन्वन्तर के पश्चात् सावर्णि, दक्षसावर्णि, ब्रह्मसावर्णि, धर्मसावर्णि, रुद्रसावर्णि, रौच्य एवं भौत्य नामक सात मन्वन्तर क्रमशः आनेवाले हैं । पौराणिक साहित्य में प्राप्त कल्पना के अनुसार, मनु वैवस्वत को इस सृष्टि का पहला राजा माना गया है, एवं उस साहित्य में निर्दिष्ट सूर्य, सोम आदि सारे वंश उसीसे उत्पन्न माने गये हैं । यदि भारतीय युद्ध का काल १४०० ई. पू. माना जाये, तो मनु वैवस्वत का काल इस युद्ध के पहले ९५ पीढीयाँ अर्थात् (९५ x १८ वर्ष + १४०० =) ३११० ई. पू. साबित होता है । n. $कल्पों की नामावलि - मन्वंतरों के साथ साथ कल्पांतरों की नामावलि भी पौराणिक साहित्य में प्राप्त है, किन्तु अतिशयोक्त कालमर्यादाओं के निर्देश के कारण, ये सारी नामावलियाँ अनैतिहासिक एवं कल्पनारम्य प्रतीत होती हैं । इनमें से मत्स्य में प्राप्त नामावलि विभिन्न पाठभेदों के साथ नीचे दी गयी है : - १. श्वेत (भव, भुव, भवोदभुव); २. नीललोहित (तप); ३. वामदेव (भव); ४. रथंतर (रंभ); ५. रौरव (रौक्म, ऋतु); ६. देव (प्राण, क्रतु); ७. बृहत् (वह्नि); ८. कंदर्प (हव्यवावाहन); ९. सद्य (सावित्र); १०. ईशान (भुव, शुद्ध); ११. तम (ध्यान, उशिक); १२. सारस्वत (कुशिक); १३. उदान (गंधर्व); १४. गरुड (ऋषभ); १५. कौर्म (षडज); १६. नारसिंह (मार्जालिय, मज्जालिय); १७. समान (समाधि, मध्यम); १८. आग्नेय (वैराजक); १९. सोम (निषाद); २०. मानव (भावन, पंचम); २१. तत्पुरुष (सुप्तमाली, मेघवाहन); २२. वैकुंठ (चिंतक, चैत्रक); २३. लक्ष्मी (अर्चि, आकूति); २४. सावित्री (विज्ञाति, ज्ञान); २५. घोरकल्प (लक्ष्मी, मनस्, सुदर्श); २६. वाराह (भावदर्श, दर्श); २७. वैराज (गौरी, बृहत्); २८. गौरी (अंध, श्वेतलोहित); २९. माहेश्वर (रक्त); ३०. पितृ (पीतवासस्); ३१. सित (असित); ३२. विश्वरुप [वायु. २१] ;[लिंग. १.४] ;[मत्स्य. २८९] ;[स्कंद ७.१०५] ।वसंतारंभकाल n. ज्योतिर्विज्ञानीय तत्त्व का आधार ले कर प्राचीन वैदिक साहित्य का कालनिर्णय करने का अद्वितीय प्रयत्न लोकमान्य तिलकजी ने किया । उन्होंने प्रमाणित आधारों पर सिद्ध किया कि, जिस समय कृत्तिका नक्षत्र में वसंतारंभ था, एवं उसी नक्षत्र के आधार पर दिन रात की गणना की जाती थी, उस समय ब्राह्मण ग्रंथों का निर्माण हुआ था । उसी प्रकार, वैदिक मंत्रसंहिताओं की रचना भी मृगशिरा नक्षत्र के काल में की गयी थी । खगोल एवं ज्योतिः शास्त्र के हिसाब से, कृत्तिका एवं मृगशिरा नक्षत्रों में वसंतसंपात क्रमशः आज से ४५०० एवं ६५०० सालों के पूर्व थी । इसी हिसाब से ब्राह्मण ग्रंथ एवं वैदिक संहिता का काल क्रमशः २५०० ई. पू. एवं ४५०० ई. पू. लगभग निश्चित किया जाता है । Related Words कालनिर्णयकोश - मन्वन्तर कालगणनापद्धति कालनिर्णयकोश मन्वन्तर वैवस्वत मन्वन्तर कालनिर्णयकोश - युगगणनापद्धति कालनिर्णयकोश - ग्रंथों का कालनिर्णय कालनिर्णयकोश - व्यक्तियों का कालनिर्णय कालनिर्णयकोश - सप्तर्षियुग की कल्पना सुखाभन , सुखासीन कामगम, कामज भूतनय मनोभुव मरिचिगर्भ कौकुरुंडि अग्नितेज अग्नीध्रक गौतम व्यास वतिन् वैवस्वतमन्वन्तर अप्रतिमौजस् अभिनामिन् जिताजित् आग्नीध्रक नभोग उग्रदृष्टि अंबुधारा वारिप्लव अमृतप्रभ अमृतवत् यामिन सुधिय स्त्रवस् अतिनामन् आपोमूर्ति कामगम ऋतुधामन् अग्नितेजस् विकुंठ , वैकुंठ विताना वेदश्री सत्यनेत्र अत्यद्भुत जानुजंघ दंडीमुंडीश्वर तपोशन भूतरजस मृलिक यदुध्र यूथग देहीं आरोग्य नांदतें, भाग्य नाहीं यापरतें सुवासन हवीन्द्र हस्तीन्द्र विकुंठा विरजामित्र सत्यदर्शिन् वाचावृद्ध मेरुसावर्ण धर्मसावर्णि निश्चर पृथग्भाव स्वधामन् ब्रह्मसावर्णि कौकूस्त सत्यसहस् वैधृति अभूतरजस् ज्योतिर्धामन् ब्रह्मसूनु मुद धर्मसेतु स्वह्न हव्यप सस्मित प्रवहण अग्निबाहु वेदबाहु अटटहास गुहवासिन् देवऋषभ द्यूमत् पुरंजन अमिताभ मेरुसावर्णि , मेरुसावर्ण सुरूप कर्मश्रेष्ठ ऊर्ध्वबाहु विश्वसृज वेदश्रुत सव्यसिव्य वशवर्तिन् वसुभृद्यान वैधृत अतिबाहु दीप्तिमत् तत्त्वदर्शिन् बहुदन्ती लांगलिन लोकाक्षि मेरुसावर्णि Folder Page Word/Phrase Person Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP