कुशिक n. (सो. अमा.) विश्वामित्र का पूर्वज
[ऋ. ३.३३.५] । वैदिक ग्रंथों में इसके अनेक उल्लेख प्राप्य है
[ऋ. ३.२६. २,२९. १५,३०. २०,४२.९] ;
[ऐ. ब्रा७. १८] ;
[सां. श्रौ. १५.२७] । शुनःशेप की कथा में इसका नाम है । यह भरतकुल का पौरोहित्य करता था । यह विशेषतः इन्द्राराधना करता था । इसीलिये इन्द्र को कौशिक कहते हैं
[ऋ.१.१०.११] ;
[मै. सं.४.५.७] ;
[श. ब्रा.३.३.४.१९] ;
[तै.आ.१.१४] । यह कुश का पुत्र था । भागवत मत में इसे कुशांबु, विष्णु मत में कुशांब तथा वायु मत में कुशास्त्य नाम है । इसका पुत्र गाधि तथा पौत्र विश्वामित्र । यह विश्वामित्रकुल का एक गोत्रकार है । इसे इषीरथपुत्र कहा गया है
[वेदार्थदीपिका ३] । कुशिक महोदयपुर में रहता था । एक बार इसका श्वशुर, च्यवन इसके पास रहने के लिये आया । उसका हेतु था, किं इनके कुल का नाश कर दिया जावे । क्यों कि, आगे चल कर इसके वंश में संकर होनेवाला था । कुशिक ने स्त्री के साथ च्यवन की उत्कृष्ट सेवा की, तथा अपने वंश को ब्राह्मणत्व प्राप्त करने का वरदान प्राप्त किया । उस प्रकार हुआ भी
[म.अनु. ८७-९० कुं] ;
[विष्णुधर्म.१.१४] । इन्द्र के समान पुत्र हो, इस हेतु से कुशिक ने तपस्या की । इसलिये इन्द्र ने इसके उदर से गाधि के रुप में जन्म लिया
[ह.वं १.२०] ;
[म.श्गां.४८] । कुशिककुल कें मंत्रकार-अघमर्षण,अष्टक, देवरात, देवश्रवस्, धनंजय, पुराण, बल, भूतकील, मधुच्छंदस, माम्बुधि, लोहित, विश्वामित्र, शालंकायन, शिशिर
[मत्स्य. १४५.११२-११३] । अघमर्ण, कत, कोल, पूरण, उद्नल, रेणु, ये ब्रह्मांड में अधिक है
[ब्रह्मांड २.३२.११७-११८] ।
कुशिक (सौभर) n. सूक्तद्रष्टा
[ऋ.१०.१२७] ।
कुशिक II. n. लकुलिन् नामक शिवावतार का शिष्य ।