परावसु n. एक ऋषि, जो रैभ्य मुनि का पुत्र एवं अर्वावसु ऋषि का बडा भाई था । विश्वामित्र ऋषि इसका पितामह था । यह अंगिर का वंशज माना जाता था
[म.शां.२०१.२५] हिंसक पशु के धोखे में, इसने अपने पिता रैभ्य का वध किया
[म.व.१३९.६] । इस वध के कारण, इसे ब्रह्महत्या का पाप लगा, एवं यज्ञ के ऋत्विज का कार्य़ करने के लिये अपात्र बन गया । अपने ब्रह्महत्या का पातक दूर करने के लिये, इसने अपने छोटे भाई अर्वावसु को वेदमंत्रयुक्त अनुष्टान एवं तपस्या करने की आज्ञा दी, एवं यह स्वयं बृहद्द्युम्न राजा का यज्ञ करने चला गया
[म.व.१३९.२] । बृहद्युम्न के यज्ञ से ‘ब्रह्मघातकी’ होने के कारण, इसे निकलवा दिया । किंतु अर्वावसु के प्रयत्न से, यह निर्दोष साबित हुआ
[म.व.१३९.१५] । पश्चात् उपरिचर के अश्वमेध यज्ञ में भी इसे स्थान दिया गया
[म.शां.३२७.७] । एक बार परशुराम से इसकी मुलाकात हो गयी । इक्कीस बार पृथ्वी निःक्षत्रिय करनेवाले परशुराम से इसने व्यंग्य से कहा, ‘पृथ्वी पर क्षत्रिय तो बहुत बाकी है । खुद को निःक्षत्रिय पृथ्वी, करनेवाला कहला कर, तुम व्यर्थ ही आत्मप्रशंसा करते हो’। इसके इस उद्गार के कारण, परशुराम क्रोधित हुआ, एवं क्षत्रियसंहार का कार्य उसने पुनः आरम्भ किया
[म.द्रो. परि.१. क्र. ८] ।