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पिप्पलाद

   { pippalāda }
Script: Devanagari

पिप्पलाद     

Puranic Encyclopaedia  | English  English
PIPPALĀDA   An ancient sage belonging to the tradition of preceptors. (See under Guruparamparā). It is said that this sage got that name because he was in the habit of eating Pippalī in large quantities daily. Praśnopaniṣad tells a story of how the sages Sukeśa, Śaibya, Satyakāma (Kaśyapa), Kauśalya, Bhārgava and Kabandhī went to Pippalāda seeking Ātmajñāna (spiritual knowledge) and how he gave them instructions on the same. Padma Purāṇa gives the following information regarding Pippalāda:--“Once Kuṇḍala, a brahmin residing in Kurukṣetra, got a son named Sukarmā. Sukarmā's parents were old and Sukarmā spent most of his time looking after his sickly aged parents. Kuṇḍala taught his son all the Vedas and Śāstras. At that time in the gotra of Kaśyapa was born a brahmin named Pippalāda. Controlling his senses and abandoning all passions he did severe penance in a forest called Daśāraṇya. The greatness of his penance made the animals of the forest leave their mutual enmity and live in perfect peace. Even the devas were astonished at the power of his penance. Pippalāda did penance sitting as majestic and motionless as a mountain for a thousand years. Ants made a sand-heap over him like a mole-hill. The sage sat inside without any motion; poisonous black cobras circled round him and yet the sage made no movement. Three thousand years went by like that and then the devas showered flowers on him. Brahmā appeared and gave him the boon ‘Sarvakāmasiddhi’ (getting all that is desired) and by the blessing of Brahmā he became a very learned person also. Pippalāda became arrogant with the boon of ‘Sarvakāmasiddhi’ in his possession. One day while he was sitting on a river-bank a swan appeared before him and in clear tones said:--“Pippalāda, why are you so proud of your greatness? I do not believe you have that power of universal attraction. This art is arvācīna (modern); you do not know Prācīna because you are illiterate. You take pride unnecessarily for having done penance for three thousand years. Do you know Sukarmā, the wise son of Kuṇḍala? He is the man who has acquired this power of attraction. There is no mahājñanī (one possessing spiritual knowledge) like him anywhere else in this world. Sukarmā has given no gifts, he has not practised meditation, he has not performed yāgas or yajñas nor has he ever done a pilgrimage. He has not done any of these virtuous deeds and yet he is well-versed in all the śāstras and Vedas. Even though he is a child you do not possess enough knowledge to equal his. Why? Because he is always engaged in the care and welfare of his parents. You take pride in your achievements without reason.” Hearing that Pippalāda went and met Sukarmā. Pippalāda knew that the bird was none other than Brahmā himself. They talked to each other for a long time and then Pippalāda admitted that Sukarmā was a greater man than himself. [Chapters 60-62, Padma Purāṇa] .

पिप्पलाद     

हिन्दी (hindi) WN | Hindi  Hindi
noun  एक पौराणिक ऋषि   Ex. पिप्पलाद बहुत बड़े गुरु भक्त थे ।
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
SYNONYM:
पिप्पलाद ऋषि
Wordnet:
benপিপ্পলাদ ঋষি
gujપિપ્પલાદ
kasپِپپلاد , پِپپلاد ریٚش
kokपिप्पलाद
marपिप्पलाद
oriପିପ୍ପଲାଦ ଋଷି
panਪਿਪਲਾਦ
sanपिप्पलादऋषिः
urdپِپّلاد , پِپّلادرِشی

पिप्पलाद     

पिप्पलाद n.  उपनिषद्‍कालीन एक महान ऋषि. एवं अथर्व वेद का सर्व प्रथम संकलकर्ता । यह व्यास की अर्थवन् शिष्य परंपरा में से देवदर्श (वेदस्पर्श) का शिष्य था (व्यास देखिये, ब्रह्म.उ.१) । पिप्पलाद का शब्दार्थ, पीपल के फल खाकर जीनेवाला (पिप्पल+अद्‍) होता है । अथर्ववेद की पिप्पलाद नामक एक शाखा उपलब्ध है । इस शाखा का प्रवर्तक शायद यही होगा । इसके माता-पिता के नाम के बारे में, भिन्न-भिन्न जानकारी प्राप्त है । दधीचि ऋषि को प्रातिथेयी (वडवा अथवा गभस्तिनी) नामक पत्नी से यह उत्पन्न हुआ । किस्तु कई ग्रथों में इसके माता का नाम सुवर्चा अथवा सुभद्रा दिया गया है । इनमें से सुभद्रा दधीचि ऋषि की दासी थी । सम्भवतः यह उत्पन्न हुआ । किन्तु कई ग्रथों में इसके माता का नाम सुवर्चा अथवा सुभद्रा दिया हैं । इनमें से सुभद्रा दधीचि ऋषि की दासी थी । सम्भवतः यह दधिचि का दासीपुत्र था । अन्य कई ग्रंथों में, इसे याज्ञवल्क्य एवं उसकी बहन का पुत्र कहा गया हैं । फिर भी यह दधीचि ऋषि के पुत्र के रुप यें विख्यात है । दधीचि की मृत्यु के समय, उसकी पत्नी प्रातिथेयी गर्भवती थी । अपने पति की मृत्यु का समाचार सुनकर उसने उदरविदारण कर अपना गर्भ बाहर निकाला तथा उसे पीपल वृक्ष के नीचे रखकर, दधीचि के शव के साथ सती हो गयी । उस गर्भ का रक्षा पीपल वृक्ष ने की । इस कारण इस बालक को पिप्पलाद नाम प्राप्त हुआ । पशु-पक्षियों ने इसकी रक्षा की, तथा सोम ने इसे सारी विद्याओं में पारंगत कराया । बाल्यकाल में मिले हुए कष्टों का कारण, शनि ग्रह को मानकर, इसने उसे नीचे गिराया । त्रस्त होकर शनि इसकी शरण में आया । इसने शनिग्रह को इस शर्त पर छोडा कि, वह बारहवर्ष से कम आयु वाले बालकों को तकलीफ ने दे । कई ग्रन्थों में बारह वर्ष के स्थान पर सोलह वर्ष का निर्देश भी प्राप्त है । इसीलिये आज भी शनि की पीडा से छुटकारा पाने के लिए पिप्पलाद, गाधि एवं कौशिक ऋषियों का स्मरण किया जाता है [शिव. शत. २४-२५] । एक वार अपने पिता पर क्रोधित होकर इसने एक कृत्या निर्माण कर, उसे याज्ञवल्क्य पर छोडा । याज्ञवल्क्य शंकर की शरण में गया । इस कृत्या का नाश किया तथा याज्ञवल्क्य एवं पिप्पलाद में मित्रता स्थापित करायी [स्कंद. ५.३.४२] । यही कथा ब्रह्मपुराण में कुछ अलग ढंग से दी गयी है। अपनी माता-पिता की मृत्यु का कारण देवताओं को मानकर, उनसे बदला लेने के लिए इसने शंकर की आराधना की, तथा एक कृत्या का निर्माण करके इसे देवों पर छोडा । यह देखकर शंकर ने मध्यस्थ होकर देवों तथा इसके वीच मित्रता स्थापित करायी । बाद में, अपनी माता-पिता को देखने की इच्छा उत्पन्न होने के कारण, देवों ने स्वर्ग में इसे दधीचि के पास पहुँचाया । दधीचि इसे देखकर प्रसन्न हुआ तथा इससे विवाह करने के लिए आग्रह किया । स्वर्ग से वापस आकर इसने गौतम की कन्या से विवाह किया [ब्रह्म.११०.२२५] । एकबार, जब यह पुष्पभद्रा नदी में स्नान करने जा रहा था, तब वहॉं अनरण्य राजा की कन्य पद्मा को देखकर इसने उसकी मॉंग की । शापभय से अनरण्य राजा ने अपनी कन्या इसे प्रदान की । जिससे इसे दस पुत्र हुये [शिव.शत. २४-२५] । दधीचि के देहत्याग के स्थान पर कामधेनु ने अपनी दुग्धधारा छोडी । इसीसे इस स्थान को ‘दुग्धेश्वर’ कहते थे । यहॉं पिप्पलाद तपश्चर्या करता था । एकबार जब यह अपनी तपस्या में निमग्न था तब वहॉं कोलासुर आकर इसका ध्यानभंग करने के हेतु इसे पीडित करने लगा । तत्काल, इसके पुत्र कहोड ने एक कृत्या का निर्माण करके उससे कोलासुर का वध कराया । इसी से इस स्थान को ‘पिप्पलादतीर्थ’ नाम प्राप्त हुआ [पद्म. उ.१५५, १५७] । नर्मदा-तट पर इसने तपस्या की थी । इसी से उस स्थान को ‘पिप्पलाद-तीर्थ’ कहते हैं [स्कंद.५.३.४२] । शरशय्या पर पडे हुए भीष्म के पास अन्य ऋषिगणों के साथ यह भी वहॉं आया था [म.शा. ४७.६६ पंक्ति ६]
पिप्पलाद n.  अथर्ववेद की कुल दो संहितायें उपलब्ध हैं । उनमें से एक की रचना शौनक ने की है, एवं दूसरी का रचयिता पिप्पलाद है । पिप्पलाद विरचित अथर्ववेद की संहिता ‘पैप्पलाद संहिता’ नाम से प्रसिद्ध है । यह संहिता बीस काण्डों की है, तथा उस संहिता का प्रथम मंत्र ‘शन्नो देवीः’ है । पतंजलि के व्याकरण ‘महाभाष्य’ में एवं ब्रह्मयज्ञान्तर्गत तर्पण में, इसी मंत्र का उद्धरण प्राप्त है । व्हिटने के अनुसार, ‘पैप्पलाद संहिता’ में ‘शौनक संहिता’ की अपेक्षा, ‘ब्राह्मण पाठ’ अधिक हैं, तथा अभिचारादि कर्म भी अधिक दिय गये हैं । [व्हिटने कृत अथर्ववेद अनुवाद-प्रस्तावना पृ.८०] । अथर्ववेदसंहिता का संकलन करते समय पिप्पलाद ने ऐन्द्रजालिक मंत्रों का संग्रह किया था । कुछ दोनों बाद पैप्पलाद शाखा के नौ खण्ड हुए जिनमें शौनक तथा पैप्पलाद (काश्मीरी) प्रमुख थे । अथर्ववेद के पैप्पलाद शाखा के मूलपाठ को शार्बे तथा ब्लूमफील्ड ने हस्तलिपि के फोटो-चित्रों में सम्पादित किया है, जिसका कुछ अंश प्रकाशित भी हो चुका है ।
पिप्पलाद n.  पिप्पलाद का ‘पैप्पलाद ब्राह्मण’ नामक एक ब्राह्मणग्रंथ उपलब्ध है, जिसके आठ अध्याय है । उसके अतिरिक्त ‘पिप्पलाद श्राद्धकल्प’ एवं ‘अगस्त्य कल्पमूत्र’ नामक पिप्पलादशाखा के और दों ग्रंथ भी उपलब्ध हैं ।
पिप्पलाद n.  प्रश्नोपनिषद में एक तत्त्वज्ञानी के नाते इसका निर्देश प्राप्त है । मोक्ष शास्त्र को पैप्पलाद कहने की प्रथा थी (गर्भोपनिषद्‍) । प्रश्नोपनिषद, अथर्ववेद का एक उपनिषद है । पिप्पलाद के पास सुकेशा भारद्वाज, शैव्य सत्यकाम, सौर्ययणि गार्ग्य, कौसल्य, आश्वलायन, भार्गव वैदर्भी तथा कबंधिन् कात्यायन आदि ऋषि ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने आये थे । उन्हें एक वर्ष तक आश्रम में रहने के बाद, प्रश्न पूछने की अनुज्ञा प्राप्त हुयी । उन्होंने जिस क्रम से प्रश्न पूछे वह ब्रह्मज्ञान की स्वरुपता समझने के लिये पर्याप्त हैं । कबंधिन् कत्यायन ने प्रथम प्रश्न किया, ‘किस मूलत्तत्व से सृष्टि पैदा हुयी? पिप्पलाद ने कहा, ‘प्रजापति ने ‘रयि’ (अचेतन) एवं प्राणों (चेतन) के मिथुन से सृष्टि का निर्माण किया’ भार्गव वैदर्भी ने दूसरा प्रश्न किया ‘उत्पन्न सृष्टि की धारणा किन देवताओं द्वारा होती है । पिप्पलाद ने उत्तर दिया, ‘प्राण देवता द्वारा सृष्टि की धारणा होती है’। कौसल्य आश्वलायन ने तीसरा प्रश्न किया ‘प्राण की उत्पत्ति कैसे होती हैं? पिप्पलाद ने उत्तर दिया, ‘आत्मा से’ सौर्यायणि गार्ग्य ने चौथा प्रश्न किया’ ‘स्वप्न में जागृत तथा निद्रित कौन रहता हैं?’ उत्तर मिला, ‘निद्रा में आत्मा केवल जागृत रहती है, शेष निद्रा में विलीन हो जाते हैं । शैब्य सत्यकाम ने पाचवॉं प्रश्न किया, ‘प्रणव का ध्यान करने से मानव की इच्छा कहॉं तक सफल होती है?" उत्तर मिला, ‘सदैव प्रणव ध्यान करनेवाला मनुष्य आत्मज्ञान प्राप्त कर अमरता को प्राप्त होता है । सुकेशा भारद्वाज ने छठॉं प्रश्न किया, ‘पोषश कल पुरुष’ (परमात्मा) का रुप क्या है?’ पिप्पलाद ने उत्तर दिया, “वह हर एक व्यक्ति के शरीर में निवास करता है, जिसके कारण वह सर्वव्यापी है। बहती गंगा जिस प्रकार समुद्र में विलीन हो जाती है उसी प्रकार समस्त सृष्टि उसी में विलीन हो जाती है । केवल पुरुष शेष रहता है । इस ज्ञान की प्राप्ति पर मानव को अमरता प्राप्त होती है । वही परब्रह्म है ।" इन छै संवादों में पिप्पलाद द्वारा व्यक्त किये गये विचारों में उनके क्रमबद्ध तत्त्वज्ञान का प्रत्यक्ष परिचय प्राप्त है ।
पिप्पलाद II. n.  परिक्षित् राजा के पास आया हुआ एक ऋषि [मा.१.१९.१०]

पिप्पलाद     

कोंकणी (Konkani) WN | Konkani  Konkani
noun  एक पुराणीक रुशी   Ex. पिप्पलाद खूब व्हडलो गुरू भक्त आशिल्लो
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
Wordnet:
benপিপ্পলাদ ঋষি
gujપિપ્પલાદ
hinपिप्पलाद
kasپِپپلاد , پِپپلاد ریٚش
marपिप्पलाद
oriପିପ୍ପଲାଦ ଋଷି
panਪਿਪਲਾਦ
sanपिप्पलादऋषिः
urdپِپّلاد , پِپّلادرِشی

पिप्पलाद     

मराठी (Marathi) WN | Marathi  Marathi
noun  एक ऋषी   Ex. पिप्पलाद हे गुरूभक्त होते.
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
Wordnet:
benপিপ্পলাদ ঋষি
gujપિપ્પલાદ
hinपिप्पलाद
kasپِپپلاد , پِپپلاد ریٚش
kokपिप्पलाद
oriପିପ୍ପଲାଦ ଋଷି
panਪਿਪਲਾਦ
sanपिप्पलादऋषिः
urdپِپّلاد , پِپّلادرِشی

पिप्पलाद     

A Sanskrit English Dictionary | Sanskrit  English
पिप्पलाद  mfn. mfn. eating the fruit of the Peepal tree, [BhP.]
given to sensual pleasures, ib.
पिप्पलाद  m. m.N. of an ancient teacher of the [AV.] ; [PraśnUp.] ; [MBh.] &c.
पिप्पलाद  m. m. pl. his school (also °दक)

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