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बभ्रुवाहन

   { babhruvāhana }
Script: Devanagari

बभ्रुवाहन     

Puranic Encyclopaedia  | English  English
BABHRUVĀHANA   A son of Arjuna.
1) Birth.
When the Pāṇḍavas were residing in Indraprastha after marrying Pāñcālī, Nārada went to see them once. With a view to avoiding any quarrel between the Pāṇḍavas over the one wife they jointly possessed, Nārada suggested that each should take Pāñcālī for a year in turn and he who violated the arrangement should go to the forest for a year. Once Arjuna went to the house of Yudhiṣṭhira who was with Pāñcāli and for thus violating the arrangement Arjuna had to go to the forest for a year. During this exile while he was staying at Gaṅgādvāra he married the serpent girl, Ulūpi and got a son called Irāvān of her. After that he went to a country called Maṇalūr. At that time that country was being ruled by a king called Citrāṅgada. Prabhañjana one of the forefathers of Citrāṅgada had, by hard penance for a progeny, acquired from Śiva a boon and each of his successors got a son each to maintain the line. But when it came to Citrāṅgada to his surprise he got a girl instead of a son. But he got her up as a son and named her Citrāṅgada. It was when she was ready for marriage that Arjuna went there. The king received Arjuna with respect and after enquiring about his welfare requested him to marry his daughter. Arjuna married her and stayed there for three months. Leaving that place Arjuna went to Pañcatīrtha and there he gave salvation to the celestial maidens who were lying in the tīrthas as crocodiles. When he went back to Maṇalūr Citrāṅgadā had delivered a son whom he named Babhruvāhana. Promising them that he would take them later to Hastināpura, he left the place.
2) His fate to kill his own father.
It was by a ruse that Arjuna made Bhīṣma fall. Arjuna put Śikhaṇḍī before his chariot and Bhīṣma refused to take arms against a eunuch and accepted defeat. But Gaṅgādevī witnessing the battle between Bhīṣma, her son, and Arjuna from above could not bear this foul play and so cursed that Arjuna would die at the hands of his son. Ulūpi the serpent wife of Arjuna heard this curse and went to her father Kauravya who in turn went to Gaṅgā and begged for a relief from the curse. Gaṅgādevī then said that Arjuna would be killed by Babhruvāhana but would be brought to life by Ulūpi by placing the Mṛtasañjīvanī stone on the dead man's breast.
3) The killing of Arjuna.
The Mahābhārata battle was over. When Yudhiṣṭhira was performing the Aśvamedha yāga Arjuna conducted a victory march with the yāga horse. On his way he reached Maṇalūr. At once Ulūpi called Babhruvāhana and asked him to challenge Arjuna. Babhruvāhana with his bow and arrows attacked Arjuna and in the grim battle that followed Arjuna fell dead. Seeing this Citrāṅgadā came to the place of battle weeping and abused Ulūpi for persuading Babhruvāhana to kill his own father. Ulūpi immediately went to the serpent world and brought the Mṛtasañjīvanī stone and as she placed it on Arjuna's breast he came to life as if waking up from a sleep. When he saw Citrāṅgadā, Babhruvāhana and Ulūpī he smiled and asked them why they had all come there. Ulūpī then explained to him the story of the curse and extremely pleased over the end of the curse Arjuna took them all to Hastināpura. [Chapters 218 to 210 of Ādi Parva] ;[Chapters 79 to 82 of Aśvamedha Parva, M.B.] .
4) Other details.
(1) On reaching Hastināpura Śrī Kṛṣṇa gave Babhruvāhana as a present a chariot drawn by divine horses. [Śloka 6, Chapter 88, Aśvamedha Parva, M.B.] .
(2) The different names given to him in the Purāṇas are as follows: Citrāṅgadāsuta, Maṇippūrpati, Dhanañjayasuta and Maṇipureśvara.

बभ्रुवाहन     

बभ्रुवाहन n.  मणिपुरनरेश चित्रवाहन की पुत्री चित्रांगदा के गर्भ से अर्जुनद्वारा उत्पन्न एक शूरवीर शासक [म.आ.२०७.२१-२३] । चित्रवाहन ने अर्जुन को अपनी कन्या देने से पूर्व वह शर्त रक्खी थी कि, ‘इसके गर्भ से जो भी पुत्र होगा, वह यही रह कर इस कुलपरम्परा का प्रवर्तक होगा । इस कन्या के विवाह का यही शुल्क आपको देना होगा ।’ ‘तथास्तु’ कह कर अर्जुन ने वैसा ही करने की प्रतिज्ञा की ।
बभ्रुवाहन n.  चित्रांगदा के पुत्र हो जाने पर उसक नाम बभ्रुवाहन रख्खा गया । उसे देख कर अर्जुन ने राजा चित्रवाहन से कहा---‘महाराज! इस बभ्रुवाहन को आप चित्रांगदा के शुल्क के रुप में ग्रहण किजिये, जिससे मैं आप के ऋण से मुक्त हो जाऊँ ’। इस प्रकार बभ्रुवाहन धर्मतः चित्रवाहन का पुत्र माना गया [म.आ.२०६.२४-२६] । चित्रवाहन राजा उसी प्रभंजन राजा का वंशज था, जिसने पुत्र न होने पर शंकर की तपस्या कर पुत्रप्राप्ति के लिये वर प्राप्त किया था (प्रभंजन देखिये) । चित्रवाहन के उपरांत यह मणिपूर राज्य का अधिकारी बना, जिसकी राजधानी मणलूरपूर थी [म.आ.३.८१] ; परि. १, क्र.११२ । युधिष्ठिर के राजसूर्य यज्ञ के समय, इसने सहदेव को करभार दिया था [म.स.परि.१] ;[क्र.१५. पंक्ति ७३]
बभ्रुवाहन n.  युधिष्ठिर द्वारा किये गये अश्वमेध के अश्व के साथ, घूमता घूमता अर्जुन इसके राज्य में आया था । इसने यज्ञ का अश्व देख कर उसे अपने अधिकार में कर लिया । पर जैसेहि इसे पता चला कि, यह मेरे पिता का ही अश्व है, इसने अश्व को धनधान्य तथा द्रव्यादि के साथ अर्जुन के पास लौटा दिया । अर्जुन ने बभ्रुवाहन के इस कार्य की कटु आलोचना की, तथ इसकी निर्बलता तथा असहाय स्थिति पर शोक प्रकट करते हुए इसके द्वारा दिये गये द्रव्यादि को लौटा दिया । अर्जुन के व्यंग वचनों को सुन कर, इसने अपने मंत्री सुबुद्धि के साथ यज्ञ के अश्व को पकड कर नगर भेज दिया, तथा अपने सेनापति सुमति के साथ ससैन्य अर्जुन पर धावा बोल दिया । इस युद्ध में बभ्रुवाहन ने अपने अभूतपूर्व शौर्य का प्रदर्शन किया, तथा अर्जुन को रण में परास्त कर उसका वध किया । इसी युद्ध में कर्णपुत्र वृषकेतु का भी इसने वध किया [जै.अ.३७] । विजयोल्लास में निमग्न बभ्रुवाहन राजधानी वापस लौटा, तथा अपनी वीरता की कहानी के साथ अर्जुन की मृत्यु का समाचार इसने चित्रांगदा को कह सुनाया । यह समाचार सुनते ही, इसके मॉं शोक में विलाप करती हुयी पति के शव के साथ सती होने को तत्पर हुयी । इस प्रतिक्रिया को देख कर, अपनी माता-पिता का हत्यारा अपने को मान कर, यह स्वयं ही आत्महत्या के लिये प्रस्तुत हुआ ।
बभ्रुवाहन n.  उक्त स्थिति को देख कर, इसकी सौतेली मॉं उलूपी, जो अर्जुन की नागपत्नी थी, वह भी दुःखित हुयी । उसने इसे तथा चित्रांगदा को सात्वना देते हुए उसे बतायी कि, यदि यह शेषनाग के पास जा कर मृतसंजीवन मणी को ले आये, तो अर्जुन पुनः जीवित हो सकता है । इसपर यह शेषनाग से मणि लाने गया, किंतु अन्य सर्पो के बहकाने पर शेषनाग ने इसे मणि देने से इन्कार कर दिया । अन्त में, शेषनाग को युद्ध में परास्त कर, यह उस मणि को लेकर अपने नगर वापस आया । मनि को लेकर यह अर्जुन के शवके पास गया । किंतु इसने वहॉं देखा कि, अर्जुन का कटा हुआ सर किसी के द्वारा चुरा लिया गया है । यह बडा हताश हुआ, किन्तु कृष्ण ने अपने पुण्यप्रभाव से पुनः उस सर को वापस लाया । इस प्रकार अर्जुन मणि के द्वारा जीवित किया गया । दोनों पिता-पुनः मिले, तथा अर्जुन अश्वमेध अश्व के साथ चल पडा [जै.अ.२१-४०] । महाभारत में अर्जुन एवं बभ्रुवाहन के बीच हुए युद्ध की कथा कुछ अलग ढंग से दी गयी है। इस ग्रन्थ में अर्जुन की मृत्यु नहीं दिखायी गई है, बल्कि दिखाया गया है कि, बभ्रुवाहन ने अपनी सौतेली माता उलूपी के द्वारा प्राप्त किये हुए मायावी अस्त्रों के द्वारा अर्जुन को युद्ध में मूर्च्छित किया (उलूपी देखिये) । यह घटना सुन कर चित्रांगदा ने उलूपी की निर्भत्सना की, तथा उसे बुरा भला कहा । उलूपी ने अपनी गल्ती स्वीकार कर बभ्रुवाहन को मृतसंजीवक मणि दी, तथा कहा ‘इसे ले जा कर अर्जुन के वक्षस्थल पर रक्खो । वह पुनः जीवित हो जायेगा’ [म.आश्व.८१.९-१०] । मणि के स्पर्श से अर्जुन पुनः जीवित हो उठा । पितापुत्र दोनों गले मिले । पश्चात्, अर्जुन ने बडे सम्मान के सथ बभ्रुवाहन को युधिष्ठिर के होनेवाले अश्वमेध के लिये निमंत्रित किया, एवं यह अपनी दोनों माताओं के साथ यज्ञ में सम्मिलित हुआ [म.आश्व.९०.१]
बभ्रुवाहन II. n.  कृतयुग का एक राजा । एक बार यह, मृगया के हेतु वन को गया था, जहॉं सुदेव की प्रेतात्मा ने अपने पूर्वजन्म की कथा इससे कही थी [गरुड.२.९]

बभ्रुवाहन     

A Sanskrit English Dictionary | Sanskrit  English
बभ्रु—वाहन  m. m.N. of a son of अर्जुन, king of महोदय, [MBh.] ; [Pur.]
ROOTS:
बभ्रु वाहन

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