मित्र n. एक वैदिक देवता, जिसका निर्देश ऋग्वेद में प्रायः सभी जगह वरुण के साथ प्राप्त है । ऋग्वेद में इस देवता को महान् आदित्य कहा गया हैं, एवं इसके द्वारा मनुष्यों में एकता लाने का निर्देश प्राप्त है
[ऋ.५.८२] । जिससे प्रतीत होता है कि, मित्र एक सूर्यदेवता एवं विशेषतः सूर्य से संबंधित प्रकाश की देवता है । वैदिक ग्रंथों में सभी स्थानों पर मित्र को दिन के साथ, एवं वरुण को रात्रि के साथ संबंधित किया है । अथर्ववेद के अनुसार, मित्र प्रातःकाल के समय उन सभी वस्तुओं को अनावृत्त कर देता है, जिन्हे वरुण ने अच्छादित किया था
[अ.वे.९.३] । यज्ञवेदी पर मित्र को एक श्वेत, तथा वरुण को एक कृष्णवर्णीय प्राणि बलि अर्पित करने का निर्देश तैत्तिरीय संहिता में प्राप्त है
[तै.सं.२.१.७.९] ;
[मै.सं.२.५] । वैदिक ग्रंथों के समान अवेस्ता में भी मित्र को सौर देवता माना गया है, जहॉं इसका निर्देश ‘मिथ्र’ नाम से किया गया है । वैदिक ग्रंथों के भॉंति अवेस्ता में भी, इसे समस्त प्राणिजाति का मित्र, एवं प्रकृति के एक हितकर शक्ति माना गया है ।
मित्र II. n. बारह आदित्यों में से एक । इसकी माता का नाम आदिति, एवं पिता का नाम कश्यप था
[म.आ.५९.१५] । अन्य आदित्यों के साथ यह अर्जुन के जन्मोत्सव में उपस्थित था । खाण्दववनदाह के समय हुए युद्ध में, इसने इन्द्र की ओर से हाथ में चक्र ले कर, अर्जुन एवं श्रीकृष्ण पर आक्रमण किया था । इसने स्कंद को सुव्रत एवं सत्यसन्ध नामक दो पार्षद प्रदान किये थे
[म.श.४४.,३७] । इसकी पत्नी का नाम रेवती था, जिससे इसे उत्सर्ग, अरिष्ट एवं पिप्पल नामक तीन पुत्र उत्पन्न हुए थे
[भा.६.१८.६] । भविष्य के अनुसार, मार्गशीर्ष माह में प्रकाशित होनेवाले सूर्य को मित्र कहते है, एवं इसके ग्यारहसौ किरण रहते है
[भवि.ब्राह्य.७८.५७] । भागवत के अनुसार यह ज्येष्ठ माह में प्रकशित होता है
[भा.१२.११.३५] ; वरुण देखिये ।
मित्र III. n. लकुलिन् नामक शिवावतार का शिष्य ।
मित्र IV. n. वसिष्ठ तथा ऊर्जा के पुत्रों में से एक ।