वडवा n. सूर्य की पत्नी संज्ञा का नामांतर, जो उसे अश्विनी ( वडवा ) का रुप धारण करने के कारण प्राप्त हुआ था । सूर्य ने अश्व का रुप धारण कर इससे संभोग किया, जिससे इसे अश्विनीकुमार नामक जुडवे पुत्र उत्पन्न हुए
[भा. ६.६.४०] ।
वडवा (प्रातिथेयी) n. एक ब्रह्मवादिनी, जो ब्रह्मचर्यव्रत से रहती थी । कई अभ्यासकों के अनुसार, लोपामुदा की बहन गभस्तिनी एवं यह दोनों एक ही हैं ( गभस्तिनी देखिये ) । ब्रह्मयज्ञांगतर्पण में इसका निर्देश प्राप्त है
[आश्व. गृ. ३.३] ।
वडवा II. n. एक अग्नि, जो समुद्र के भीतर वास्तव्य करती है । और्व नामक अग्नि जन्म लेते ही समस्त पृथ्वी को जलाने लगी । तब उसके पितरो ने आ कर उसे समझाया, एवं उसे अपनी क्रोधाग्नि को समुद्र मे डाल देने के लिए कहा । पितरों के आदेश से, और्व ने अपने क्रोधान्गि को समुद्र में डाल दिया । वहॉं आज भी अश्व की मुख जैसी आकृति बना कर, यह समुद्र का जल पीती रहती है
[म. आ. १७१.२१ -२२] । वायु के अनुसार, यह एवं और्व अग्नि दोनों एक ही है
[वायु. १.४७] ; और्व २. देखिये ।